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________________ गीता दर्शन भाग-20 क्योंकि अब जीवन की विराट धारा जंगल और पहाड़ पर नहीं है। नहीं है। कभी बंबई भी मांडू हो जाएगी। वह तो जैसे ही और वे युग गए, जब अंतर्मुखता का आदर था। तो बाजार में कम्युनिकेशन के साधन बदले कि सब बदल जाता है। जो बैठा था, उसकी भी आंख जंगल की तरफ थी। बैठता था बाजार | यह मैंने इसलिए कहा कि जिस तरह ये बाहर के यात्रा-पथ हैं, में, इरादे उसके भी जंगल जाने के थे। और नहीं जा पाता था, तो | ऐसे ही अंतर के चेतना के भी यात्रा-पथ हैं। उपनिषद के जमाने में पीड़ित अनुभव करता था। और कभी-कभार जब मौका पाता था, | अंतर्मुखी व्यक्ति के पास से अधिक लोगों को गुजरने का मौका तो किसी जंगल के वासी के पास चरणों में जाकर, सिर रखकर | था। आज अंतर्मुखी के पास से अधिक लोग नहीं गुजरेंगे। सांत्वना ले आता था। अब हालत उलटी है। अब वहां कोई नहीं पगडंडियां रह गईं, कभी कोई जाता है। अब तो बहिर्मखी के पास जाएगा। वह कट गया रास्ता। | से अधिक लोग गुजरेंगे। यात्रा-पथ बदल गया है। जैसे, मैं अभी एक गांव में ठहरा हुआ था। इंदौर के पास एक | विज्ञान ने, समृद्धि ने, संख्या ने, सभ्यता ने सब दिशाओं से जगह है, मांडू। मैं हैरान हुआ। मैंने इतिहास की किताबों में पढ़ा था | बहिर्मुखता को इतना प्रबल कर दिया है कि धर्म अगर अंतर्मुखी होने कि मांड की आबादी कभी नौ लाख थी। ज्यादा दिन पहले नहीं. की जिद्द करे, तो वह जिद्द महंगी पड़ेगी। वह जिद्द महंगी पड़ रही है। सात सौ साल पहले। मांडू पहुंचा, तो बस स्टैंड पर जो तख्ती लगी | | इसलिए जो धर्म अंतर्मुखी होने का ध्यान रखे हुए हैं, वे पिछड़ गए। थी, उस पर लिखा था, नौ सौ सत्ताइस आबादी। सात सौ साल | खयाल करें, हिंदू धर्म पृथ्वी पर पुराने से पुराना धर्म है। कहें कि पहले नौ लाख की आबादी की बस्ती सात सौ साल के भीतर नौ | | जिसका पीछे कोई छोर नहीं मिलता; सनातन है। लेकिन पिछड़ सौ सत्ताइस की आबादी रह गई! नौ सौ ! क्या हुआ इस मांडू को? | | गया। क्योंकि हिंदू धर्म के पास संन्यासी अभी भी अंतर्मुखी हैं। जहां कभी नौ लाख लोग रहते थे, उस जमाने के बड़े से बड़े | क्रिश्चियनिटी फैली सारे जगत में। कोई और कारण नहीं है। महानगरों में एक था। उस गांव की मस्जिद जाकर मैंने देखी, तो क्रिश्चियनिटी के पास जो उपदेशक हैं. वे बहिर्मखी हैं। और कोई मस्जिद में दस हजार लोग एक साथ नमाज पढ़ सकें, इतनी बड़ी | | कारण नहीं है। आज सिर्फ कैथोलिक क्रिश्चियनिटी के पास बारह गी। धर्मशाला जाकर देखी, तो दस हजार लोग इकट्ठे ठहर लाख संन्यासी हैं। सारे जगत में फैले हैं। कुछ बुरा नहीं है। सकें, इतनी-इतनी बड़ी धर्मशालाएं हैं। सब खंडहर! नौ लाख क्रिश्चियनिटी फैल जाए, उससे कुछ हर्ज नहीं है। कोई वहां से लोगों के खंडहर! नौ सौ आदमी रहते हैं अब। हो क्या गया! पहुंचे, इससे कोई अंतर नहीं पड़ता। कोई कहां से पहुंचे, इससे कोई __ मैंने पूछा कि बात क्या हो गई! इतना एकदम से परिवर्तन कैसे | भेद नहीं है। मैंने उदाहरण के लिए कहा। हुआ? पता चला कि आवागमन के मार्ग बदल गए! सात सौ साल | मैं यह कह रहा हूं कि अगर अंतर्मुखी धर्म अपने को अंतर्मुखी पहले जब ऊंट ही आवागमन का बुनियादी साधन था, तो मांडू अड्डा रखने की जिद्द रखेंगे, तो सिकुड़ते चले जाएंगे। दुनिया वहां से नहीं था ऊंटों के गुजरने का। फिर ऊंट ही खो गए, वह मार्ग ही बदल गजरती अब। दनिया जहां से गजरती है, धर्म को वहां खड़ा होना गया। अब मांडू से कोई यात्री ही नहीं गुजरते, तो मांडू में जो बसे थे| | चाहिए। अब अगर मांडू में हम जाकर तीर्थ बना लेंगे, तो ठीक है; बाजार, वे उजड़ गए! बाजार उजड़ गए, तो मस्जिदें और मंदिर उजड़ | बन सकता है। लेकिन मांडू के तीर्थ से अब ज्यादा लोग नहीं गए। धर्मशालाओं में कौन ठहरेगा! वह सब समाप्त हो गया। | गुजरेंगे। अब मांडू की मस्जिद में दस हजार लोग नमाज नहीं पढ़ नौ लाख की आबादी तिरोहित हो गई स्वप्न की तरह, क्योंकि सकते। नौ सौ की आबादी में दस पढ़ लें, तो बहुत। पास से जो जत्थे गुजरते थे व्यापारियों के, उन्होंने कहीं और से | | अंतर्यात्रा का जो पथ है मनुष्य की चेतना का, वह बहिर्मुखी है गुजरना शुरू कर दिया। उन्होंने नए वाहन चुन लिए। | आज। सदा रहेगा, ऐसा नहीं है। सौ वर्ष में स्थिति बदल जाएगी। पुरानी दुनिया के सारे बड़े नगर नदियों के किनारे बसे हैं, क्योंकि हमेशा बदल जाती है। पीरियाडिकल है। जैसे रात के बाद दिन नदियां जीवन का साधन थीं। उतने पानी के बिना बड़े नगर नहीं बस आता है, दिन के बाद रात आती है, ऐसे अंतर्मुखता के बाद सकते थे। अब नया कोई नगर नदी के किनारे बसे, न बसे, कोई बहिर्मुखता आती है, बहिर्मुखता के बाद अंतर्मुखता आती है। भेद नहीं पड़ता। आज के जमाने के सारे बड़े नगर समुद्रों के किनारे । लेकिन ध्यान रहे, अभी पूरब को अंतर्मुख होने में बहुत समय बसे हैं। बहुत दिन तक बसे रहेंगे, इस भ्रम में रहने की कोई जरूरत लगेगा, क्योंकि अभी पूरब पूरी तरह बहिर्मुखी नहीं हुआ। अभी
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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