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गीता दर्शन भाग-28
मुश्किल है, जिसे ऐसा कुछ भी न मिला हो, जो उसने चाहा था; | भी न मिले, तो भी सब मिला हुआ है। उसे नींद की झपकी भी लग कुछ न कुछ तो मिल ही गया होगा। उतना अनुभव के लिए काफी जाए, तो परम आनंद है। उसे रोटी का एक टुकड़ा भी मिल जाए, है। लेकिन मिलकर क्या मिला?
तो अमृत है। परमात्मा तो दूर। परमात्मा मिल जाए, तब तो उसकी एक मित्र हैं मेरे। बड़े उद्योगपति हैं। स्वभावतः, जैसा होना | खुशी का, उसके आनंद का, उसके अनुग्रह का कोई ठिकाना ही चाहिए, नींद नहीं आती है रात। मुझसे आकर एक दिन सुबह कहा | | नहीं है। लेकिन परमात्मा की छोटी-सी कृपा भी मिल जाए, तो भी कि न मुझे परमात्मा की तलाश है, न मुझे आत्मा से प्रयोजन है, न | | उसका अनुग्रह अनंत है। और जो आकांक्षा में जी रहा है फल की, मैं कोई बड़ा मोक्ष और स्वर्ग चाहता हूं। मुझे सिर्फ नींद आ जाए, | | उसे परमात्मा भी मिल जाए, तो वह उदास खड़े होकर यही कहेगा तो मैं आपका जीवनभर ऋणी रहूंगा। बस मुझे नींद का सूत्र मिल | | कि ठीक है; आप मिल गए, लेकिन कुछ मिला नहीं! जाए। मैंने कहा, सच! नींद मिलने से सब मिल जाएगा? उन्होंने | | फल की आकांक्षा खाली ही करती है, भरती नहीं। इसलिए जिस कहा, सब मिल जाएगा। मेरा जीवन बिलकुल ही नारकीय हो गया | | समाज में जितने फल मिल जाएंगे, जितनी आकांक्षाएं तृप्त हो है। जो उन्होंने कहा था, वह पास में पड़े टेप पर मैंने रिकार्ड कर | जाएंगी, उतनी एंप्टीनेस पैदा हो जाएगी। गरीब मुल्क कभी भी लिया था। मैंने कहा कि फिर दुबारा और कुछ तो मांगने नहीं आ | इतना खाली नहीं होता, जितना अमीर मुल्क खाली हो जाता है। जाइएगा? उन्होंने कहा कि कभी नहीं। सिर्फ धन्यवाद देने आऊंगा। | गरीब आदमी कभी भी इतना मीनिंगलेस अनुभव नहीं करता, कि नींद भर आ जाए।
अर्थहीन है मेरी जिंदगी, बेकार है। रोज काम बना रहता है। कल उन्हें ध्यान के कुछ प्रयोग करवाए। पंद्रह दिन बाद वे आए। | कुछ पाने को है। अमीर आदमी को एकदम डिसइलूजनमेंट होता कहने लगे, नींद तो आ गई, लेकिन और कुछ नहीं मिला! कहने है। एकदम विभ्रम। सब टूट जाता है। जो चाहा था, सब मिल लगे, नींद आ गई, लेकिन और कुछ नहीं मिला। मैंने उनका जो टेप | | गया। अब एकदम से सारी चीज ठहर गई होती है। अब कहीं कोई किया हुआ था वक्तव्य, उन्हें सुनवाया। कहा कि आप कहते थे, | गति नहीं मालूम होती है। कल, खतम हो गया। अमीर नींद मिल जाए, तो सब कुछ मिल जाए! अब आप कहते हैं, नींद आदमी-उस आदमी को अमीर कह रहा हूं, जिसे सब मिल गया, मिल गई, और कुछ नहीं मिला। धन्यवाद तो दूर, आप तो कुछ मेरा | जो उसने चाहा था-वह मरने पर पहुंच गया। अब उसके आगे कसूर बता रहे हैं! मुझसे कोई गलती हुई?
मौत के सिवाय कुछ भी नहीं है। इसलिए दुनिया के जो यूटोपियंस चौंके! सुना अपना वक्तव्य, तो चौंके। और उन्होंने कहा कि | हैं, जो कल्पनावादी हैं, जो कहते हैं, जमीन पर स्वर्ग ला देना है, जब नींद नहीं आती थी, तब ऐसा ही लगता था कि नींद मिल जाए, अगर वे किसी दिन सफल हो गए, तो सारी मनुष्यता आत्महत्या तो सब मिल जाए। और अब ऐसा लगता है। अब मैं क्या करूं! कर लेगी। उसके बाद फिर जीने का कोई कारण नहीं रह जाएगा। उन्होंने कहा, इसमें असत्य नहीं है। तब ऐसा ही लगता था कि नींद | यह बड़े मजे की बात है कि गरीब और भूखे आदमी की जिंदगी मिल जाए, तो सब मिल जाए। और अब ऐसा ही लगता है कि नींद | में थोड़ा अर्थ मालूम पड़ता है। और न्यूयार्क में रहने वाला जो मिल गई, तो क्या मिल गया! तो मैंने कहा, अब आपका क्या | | अरबपति है, उसकी जिंदगी में अर्थ नहीं मालूम पड़ता। आज अगर खयाल है ? अब आप क्या चाहते हैं? और मैं आपसे कहूंगा, अगर | | पश्चिम, विशेषकर अमेरिका के दार्शनिकों से पूछे, तो वे कहते हैं, वह भी मिल गया, तो आप फिर यही तो नहीं कहेंगे? | एक ही सवाल है-मीनिंगलेसनेस, एंप्टीनेस। एक ही सवाल है __परमात्मा आसानी से मिलता नहीं। नहीं तो आप जाकर उससे कि जीवन रिक्त क्यों है? खाली क्यों है? भरा हुआ क्यों नहीं है? कहें कि आप मिल गए, और तो कुछ नहीं मिला! अब क्या करें? गरीब कौमों ने कभी नहीं पूछा कि जीवन रिक्त क्यों है! क्योंकि वह आसानी से मिलता नहीं, इसलिए यह मौका आता नहीं। इस आकांक्षाएं जीवन को भरे रहती हैं। फल की इच्छा भरे रहती है। संसार में सब चीजें मिल जाती हैं. इसलिए दिक्कत है।
अमीर कौमों की इच्छाएं करीब-करीब परी होने के आ जा असल में जो भी फल की आकांक्षा से जी रहा है, उसे परमात्मा जो भी मिल सकता है, वह मिल गया। अच्छी से अच्छी कार दरवाजे भी मिल जाए, तो कुछ भी नहीं मिलेगा, क्योंकि फल की आकांक्षा | पर खड़ी है। अच्छा से अच्छा मकान पीछे खड़ा है। तिजोरी में जितनी भ्रांत स्वप्न है। जो फल की आकांक्षा के बिना जी रहा है, उसे कुछ | संपत्ति चाहिए, उससे ज्यादा भरी है। जो भी मिल सकता है, वह है।
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