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गीता दर्शन भाग-20
लेकिन आज के युग में मौलिक का कुछ और ही अर्थ हो गया | गहरी नहीं होती। जानने वाले को, करने वाले को पता ही होता है। है। मौलिक का अर्थ है, कोई आदमी कोई नई बात कह रहा है। | जो भूलें सहज घटित होती हैं, बहुत गहरी होती हैं। मूल की बात कह रहा है। नए अर्थों में कृष्ण की बात नई नहीं है। अगर हम प्लेटो से पूछे, तो वह कहेगा, जो मैं कह रहा है, वह मूल के अर्थों में मौलिक है, ओरिजिनल है। वह जो सभी चीजों का | मैं ही कह रहा हूं। अगर हम कांट से पूछे, तो कांट कहेगा, जो मैं मूल है, सभी अस्तित्व का, वहीं से इस बात का भी जन्म हुआ है। | कह रहा हूं, वह मैं ही कह रहा हूं। अगर हम हीगल से पूछे, तो
मौलिक का जो आग्रह है नए के अर्थों में, अहंकार का आग्रह | हीगल भी कहेगा कि जो मैं कह रहा हूं, वह मैं ही कह रहा हूं। अगर है, ईगोइस्टिक है। जब भी कोई आदमी कहता है, यह मैं ही कह | हम कृष्णमूर्ति से पूछे, तो वे भी कहेंगे, जो मैं कह रहा हूं, मैं ही रहा हूं पहली बार, तो पागलपन की बात कह रहा है। कह रहा हूं। यह बड़ी स्वाभाविक भूल है।
लेकिन ऐसे पागलपन के पैदा होने का कारण है। इस बार वसंत कृष्ण कह रहे हैं, यही बात-नई नहीं; पुरानी नहींआएगा, फूल खिलेंगे। उन फूलों को कुछ भी पता नहीं होगा कि अनंत-अनंत बार अनंत-अनंत ढंगों से अनंत-अनंत रूपों में कही वसंत सदा ही आता रहा है। उन फूलों का पुराने फूलों से कोई | गई है। परिचय भी तो नहीं होगा; उन फूलों को पुराने फूल भी नहीं मिलेंगे। सत्य के संबंध में इतना निराग्रह होना अति कठिन है। इतना वे फूल अगर खिलकर घोषणा करें कि हम पहली बार ही खिल रहे। | गैर-दावेदार होना, यह दावा छोड़ना है। हैं. तो कछ आश्चर्य नहीं है: स्वाभाविक है। लेकिन सभी | ध्यान रहे. हम सब को सत्य से कम मतलब होता है. मेरे सत्य स्वाभाविक, सत्य नहीं होता। स्वाभाविक भूलें भी होती हैं। यह | से ज्यादा मतलब होता है। पृथ्वी पर चारों ओर चौबीस घंटे इतने स्वाभाविक भूल है, नेचरल इरर है।
विवाद चलते हैं, उन विवादों में सत्य का कोई भी आधार नहीं होता, जब कोई युवा पहली दफा प्रेम में पड़ता है या कोई युवती पहली | | मेरे सत्य का आधार होता है। अगर मैं आपसे विवाद में पडूं, तो बार प्रेम में पड़ती है, तो ऐसा लगता है, शायद ऐसा प्रेम पृथ्वी पर | इसलिए विवाद में नहीं पड़ता कि सत्य क्या है, इसलिए विवाद में पहली बार ही घटित हो रहा है। प्रेमी अपनी प्रेमिकाओं से कहते हैं। | पड़ता हूं कि मेरा सत्य ही सत्य है और तुम्हारा सत्य सत्य नहीं है। कि चांद-तारों ने ऐसा प्रेम कभी नहीं देखा। और ऐसा नहीं कि वे | समस्त विवाद मैं और तू के विवाद हैं, सत्य का कोई विवाद नहीं झूठ कहते हैं। ऐसा भी नहीं कि वे धोखा देते हैं। नेचरल इरर है, | | है। जहां भी विवाद है, गहरे में मैं और तू आधार में होते हैं। इससे बिलकुल स्वाभाविक भूल करते हैं। उन्हें पता भी तो नहीं कि इसी | | बहुत प्रयोजन नहीं होता है कि सत्य क्या है? इससे ही प्रयोजन होता तरह यही बात अरबों-खरबों बार न मालूम कितने लोगों ने, न | | है कि मेरा जो है, वह सत्य है। असल में सत्य के पीछे हम कोई भी मालूम कितने लोगों से कही है।
| खड़े नहीं होना चाहते, क्योंकि सत्य के पीछे जो खड़ा होगा, वह हर प्रेमी को ऐसा ही लगता है कि उसका प्रेम मौलिक है। और | | मिट जाएगा। हम सब सत्य को अपने पीछे खड़ा करना चाहते हैं। हर प्रेमी को ऐसा लगता है, ऐसी घटना न कभी पहले घटी और न | ___ लेकिन ध्यान रहे, सत्य जब हमारे पीछे खड़ा होता है, तो झूठ हो कभी घटेगी। और उसका लगना बिलकुल आथेंटिक है, प्रामाणिक | | जाता है। हमारे पीछे सत्य खड़ा ही नहीं हो सकता, सिर्फ झूठ ही है। उसे बिलकुल ही लगता है; उसके लगने में कहीं भी कोई धोखा | | खड़ा हो सकता है। सत्य के तो सदा ही हमें ही पीछे खड़ा होना पड़ता नहीं है। फिर भी बात गलत है।
है। सत्य हमारी छाया नहीं बन सकता, हमको ही सत्य की छाया सत्य का अनुभव भी जब व्यक्ति को होता है, तो ऐसा ही लगता | | बनना पड़ता है। लेकिन जब विवाद होते हैं, तो ध्यान से सुनेंगे तो है कि शायद इस सत्य को और किसी ने कभी नहीं जाना। ऐसा ही | पता चलेगा, जोर इस बात पर है कि जो मैं कहता हूं, वह सत्य है। लगता है कि जो मुझे प्रतीत हुआ है, वह मुझे ही प्रतीत हुआ है। | जोर इस बात पर नहीं है कि सत्य जो है, वही मैं कहता हूं। यह स्वाभाविक भूल है।
__कृष्ण का जोर देखने लायक है। वे कहते हैं, जो सत्य है, वही कष्ण इस स्वाभाविक भल में नहीं हैं।
| मैं तुझसे कह रहा हूं। मैं जो कहता हूं, वह सत्य है। ऐसा उनका ध्यान रहे, की गई भूलों के ऊपर उठना बहुत आसान है; हो गई| आग्रह नहीं। और इसलिए मुझसे पहले भी कही गई है यही बात। भूलों के ऊपर उठना बहुत कठिन है। जानकर की गई भूल बहुत | नए युग में एक फर्क पड़ा है। नया युग बहुत आग्रहपूर्ण है।