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सत्य एक-जानने वाले अनेक
महावीर नहीं कहेंगे कि मैं जो कह रहा हूं, वह मैं ही कह रहा हूं। वे | और अगर मैं आपसे कहूं, तो भी सत्य वहीं है। कल हम भी न कहते हैं, मुझसे भी पहले पार्श्वनाथ ने भी यही कहा है। मुझसे | होंगे, फिर कोई कहेगा, और सत्य वहीं होगा। हम आएंगे और पहले ऋषभदेव ने भी यही कहा है। मुझसे पहले नेमीनाथ ने भी | जाएंगे, बदलेंगे, समाप्त होंगे, नए होंगे, विदा होंगे-सत्य, सत्य यही कहा है। बुद्ध नहीं कहते कि जो मैं कह रहा हूं, वह मैं ही कह | अपनी जगह है। इस सूत्र में इन सब बातों पर ध्यान दे सकेंगे, तो रहा हूं। वे कहते हैं, मुझसे भी पहले जो बुद्ध हुए, जिन्होंने भी जाना | आगे की बात समझनी आसान है। और देखा है, उन्होंने यही कहा है।
कोई सवाल हो, तो पूछ लें! ऐसी भ्रांति हो सकती है कि ये सारे लोग पुरानी लीक को पीट रहे हैं। नहीं, पर वे यह नहीं कह रहे कि सत्य पुराना है। क्योंकि ध्यान रहे, जो चीज भी पुरानी हो सकती है, उसके नए होने का भी
एवं परम्परप्राप्तमिमं राजर्षयो विदुः। दावा किया जा सकता है। नए होने का दावा किया ही उसका जा स कालेनेह महता योगो नष्टः परंतप ।।२।। सकता है, जो पुरानी हो सकती है, जिसकी पासिबिलिटी पुरानी होने इस प्रकार परंपरा से प्राप्त हुए इस योग को राजर्षियों ने की है। ये दावा यह कर रहे हैं कि सत्य पुराना और नया नहीं है; जाना। परंतु हे अर्जुन, वह योग बहुत काल से इस सत्य सत्य है। हम नए और पुराने होते हैं, यह दूसरी बात है; लेकिन
पृथ्वी-लोक में लुप्तप्राय हो गया है। सत्य में इससे कोई भी अंतर नहीं पड़ता है।
यह सूर्य निकला, यह प्रकाश है। हम नए हैं। हम नहीं थे, तब भी सूर्य था; हम नहीं होंगे, तब भी सूर्य होगा। यह सूर्य नया और 1 रंपरा से ऋषियों ने इसे जाना, लेकिन फिर वह पुराना नहीं है। हम नए और पुराने हो जाते हैं। हम आते हैं और | । 4 लुप्तप्राय हो गया ये दो बातें। पहली बात तो चले जाते हैं।
आपसे यह कह दूं कि परंपरा का अर्थ ट्रेडीशन नहीं लेकिन हमारी दृष्टि सदा ही यही होती है कि हम नहीं जाते और | है। साधारणतः हम परंपरा का अर्थ ट्रेडीशन करते हैं। ट्रेडीशन का सब चीजें नई और पुरानी होती रहती हैं। हम कहते हैं, रोज समय | अर्थ होता है, रीति। ट्रेडीशन का अर्थ होता है, रूढ़ि। ट्रेडीशन का बीत रहा है। सचाई उलटी है, समय नहीं बीतता, सिर्फ हम बीतते | अर्थ होता है, प्रचलित। परंपरा का अर्थ और है। परंपरा शब्द के हैं। हम आते हैं, जाते हैं; होते हैं, नहीं हो जाते हैं। समय अपनी | | लिए सच में अंग्रेजी में कोई शब्द नहीं है। इसे थोड़ा समझ लेना जगह है। समय नहीं बीतता। लेकिन लगता है हमें कि समय बीत | जरूरी है। रहा है। इसलिए हमने घड़ियां बनाई हैं, जो बताती हैं कि समय बीत | ___ गंगा निकलती है गंगोत्री से; फिर बहती है; फिर गिरती है सागर रहा है। सौभाग्य होगा वह दिन, जिस दिन हम घड़ियां बना लेंगे, | में। जब गंगा सागर में गिरती है, और गंगोत्री से निकलती है, तो जो हमारी कलाइयों में बंधी हुई बताएंगी कि हम बीत रहे हैं। बीच में लंबा फासला तय होता है। इस गंगा को हम क्या कहें?
वस्तुतः हम बीतते हैं, समय नहीं बीतता है। समय अपनी जगह यह गंगा वही है, जो गंगोत्री से निकली? ठीक वही तो नहीं है; है। हम नहीं थे तब भी था, हम नहीं होंगे तब भी होगा। हम समय क्योंकि बीच में और न मालूम कितनी नदियां, और न मालूम कितने को न चुका पाएंगे, समय हमें चुका देगा, समय हमें रिता देगा। झरने उसमें आकर मिल गए। लेकिन फिर भी बिलकुल दूसरी नहीं समय अपनी जगह है, हम आते और जाते हैं। समय खड़ा है; हम | हो गई है; है तो वही, जो गंगोत्री से निकली। . दौड़ते हैं। दौड़-दौड़कर थकते हैं, गिरते हैं, समाप्त हो जाते हैं; तो ठीक परंपरा का अर्थ होता है कि यह गंगा, परंपरा से गंगा सत्य वहीं है।
| है। परंपरा का अर्थ है कि गंगोत्री से निकली, वही है; लेकिन बीच जिस दिन. कष्ण कहते हैं. मैंने सर्य को कहा था: सत्य जहां था, में समय की धारा में बहत कछ आया और मिला। वहीं है। जिस दिन सूर्य ने अपने बेटे मनु को कहा; सत्य जहां था, __ ऐसा समझें कि सांझ आपने एक दीया जलाया। सुबह आप वहीं है। जिस दिन मनु ने अपने बेटे इक्ष्वाकु को कहा; सत्य जहां | कहते हैं, अब दीए को बुझा दो; उस दीए को बुझा दो, जिसे सांझ था, वहीं है। और कृष्ण अर्जुन से कह रहे हैं, तब भी सत्य वहीं है। | जलाया था। लेकिन जिसे सांझ जलाया था, वह दीए की ज्योति अब