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गीता दर्शन भाग-20
भी क्या कम है!
मिल जाए, छुरा मिल जाए, सब्जी काटने की छुरी मिल जाए, कुछ जब बर्तन घूमने लगा, तब उसके मन में आया कि कई लोग नहीं भी मिल जाए, बस कलाई काटती। डाल रहे हैं; अगर मैं भी न डालूं, तो हर्ज क्या है ? जब बर्तन उसके | ___ मैंने उससे पूछा कि तुझे कलाई काटने का यह खयाल क्यों चढ़ा सामने आया, उसने चारों तरफ देखा कि कोई भी नहीं देख रहा है, | | था? उसने कहा, खयाल! मुझे ऐसा लगता था कि अगर मेरे हाथ तो सोचा कि एक रुपया उठा लूं!
कहीं मेरी गर्दन दबा दें और मैं मर जाऊं। तो इनको काट डालूं। ऐसा मन है। ऐसा ही है, परे समय। खोजेंगे अपने मन को, तो अपने ही हाथ पर संशय कि कहीं गर्दन न दबा दें। ऐसा ही पाएंगे, नट रस्सी पर जितना कंपता है, उससे भी ज्यादा विक्षिप्त इस स्थिति में पहुंच जाता है कि वह दूसरे पर संशय कंपता हुआ। ऐसे मन से संशय नहीं कट सकता। संशय तो | करता है, ऐसा नहीं; अपने पर भी संशय करता है। अपने पर भी! कटेगा, समत्व होगा तब; समता होगी तब; बीच में कोई ठहरेगा __विक्षिप्त का संशय पूर्ण हो जाता है, ज्ञान शून्य हो जाता है। तब; संतुलन होगा तब; बैलेंस होगा तब-तब कटेगा। | विमुक्त का संशय शून्य हो जाता है, ज्ञान पूर्ण हो जाता है।
तो कृष्ण कहते हैं, समत्व बुद्धि को उपलब्ध हो और ज्ञान की ___दो छोर हैं, विक्षिप्त और विमुक्त। और हम बीच में हैं, नट की तलवार से संशय को काट डाल अर्जुन!
तरह डोलते हुए। हम अपनी रस्सी पकड़े हुए हैं, कभी विक्षिप्त की ज्ञान सच में ही तलवार है। शायद वैसी कोई और तलवार नहीं तरफ डोलते, कभी विमुक्त की तरफ। है। क्योंकि जितना सूक्ष्म ज्ञान काटता है, उतना सूक्ष्म और कोई | । सुबह मंदिर जाते हैं, तो देखें चाल। फिर लौटकर बाजार जाते तलवार नहीं काटती।
| हैं, तब देखें अपनी चाल। सुबह जब मंदिर का घंटा बजाते हैं प्रभु अभी वैज्ञानिकों ने कुछ किरणे खोज निकाली हैं, जो बड़ी | को कहने को कि आ गया, मैं आया, तब देखें भाव। फिर उसी शीघ्रता से, तेजी से काटती हैं; डायमंड को भी काटती हैं। लेकिन मंदिर से लौटकर भागते हैं दुकान की तरफ, तब देखें आंखें। तब फिर भी ज्ञान की तलवार की बारीकी ही और है। संशय को वे भी | | बड़ी हैरानी होती है कि एक आदमी, इतना फर्क! वही बैठा है गंगा नहीं काट सकते; डायमंड को काट सकते होंगे।
के किनारे तिलक-चंदन लगाए, पूजा-पाठ, प्रार्थना! वही बैठा है संशय बहुत अदभुत है। गहरे से गहरे और बारीक से बारीक | | दफ्तर में; वही बैठा है नेता की कुर्सी पर, तब उसकी स्थिति! . अस्त्र को भी बेकार छोड़ जाता है; कटता ही नहीं। सिर्फ ज्ञान से | ___ एक ही आदमी सुबह से सांझ तक कितने चेहरे बदल लेता है! कटता है।
चेहरे बदलते हैं इसलिए कि भीतर बुद्धि बदल जाती है। ज्ञान का अर्थ? ज्ञान का अर्थ है, समत्वबुद्धिरूपी योग। वही, | करीब-करीब पारे की तरह है हमारी बुद्धि। वह जो थर्मामीटर में जब बुद्धि सम होती है, तो ज्ञान का जन्म होता है। बुद्धि की समता | | पारा होता है-ऊपर-नीचे, ऊपर-नीचे। लेकिन वह बेचारा का बिंदु ज्ञान के जन्म का क्षण है। जहां बुद्धि संतुलित होती है, वहीं | | तापमान की वजह से होता है! हम? हम तापमान की वजह से नहीं ज्ञान जन्म जाता है। और जहां बुद्धि असंतुलित होती है, वहीं अज्ञान होते। हम अपनी ही वजह से होते हैं। क्योंकि हमारे पास ही कोई जन्म जाता है। जितनी असंतुलित बुद्धि, उतना घना अज्ञान। जितनी | कृष्ण खड़ा है, कोई बुद्ध, कोई महावीर। उसका पारा जरा भी संतुलित बुद्धि, उतना गहरा ज्ञान। पूर्ण संतुलित बुद्धि, पूर्ण ज्ञान। | यहां-वहां नहीं होता; ठहरा ही रहता है; समत्व को उपलब्ध हो पूर्ण असंतुलित बुद्धि, पूर्ण अज्ञान। पूर्ण असंतुलित बुद्धि होती है | जाता है। विक्षिप्त की, पागल की, इसलिए उसके संशय का कोई हिसाब ही | ज्ञान की तलवार से संशय को काट डाल अर्जुन। और मजा ऐसा नहीं है। पागल, विक्षिप्त का संशय पूर्ण है। अपने पर ही संशय | | है कि अगर अर्जुन इतना भी तय कर ले कि हां, मैं काटने को राजी करता है पागल।
| हूं, तो कट गया। क्योंकि संशय तय नहीं करने देता। इतना भी तय अभी-अभी अमेरिका से एक युवती मेरे पास आई। छः साल | कर ले...। पागलखाने में थी। उसने अपने हाथ की कलाइयां मुझे बताईं, दोनों रामकृष्ण के जीवन का एक संस्मरण कहूं, तो खयाल में आ कलाइयां बिलकुल कटी हुई। कई बार काटा उसने खुद ही। वही | जाए। फिर आखिरी सूत्र ही है यह। उसका पागलपन था, कलाई काट डालना! रेजर मिल जाए, कैंची | रामकृष्ण ने बहुत दिन तक काली की मूर्ति की, प्रतिमा की पूजा
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