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________________ गीता दर्शन भाग-2 उसका कोई अर्थ न रहा; वह वस्तु हो गई। हैं। क्योंकि जब हम प्रेम करते हैं, तभी वह व्यक्ति हमारी तरफ हम व्यक्तियों को प्रेम भी करते हैं, तो पजेस करते हैं, मालिक | खुलता है। जब हम प्रेम करते हैं, तब हम उसमें प्रवेश करते हैं। हो जाते हैं। मालिक व्यक्तियों का कोई नहीं हो सकता। सिर्फ जब हम प्रेम करते हैं, तब वह निर्भय होता है। जब हम प्रेम करते वस्तुओं की मालकियत होती है। अगर कोई पत्नी पति को पजेस | | हैं, तब वह छिपाता नहीं है। जब हम प्रेम करते हैं, तब वह उघड़ता करती है, कहती है, मालकियत है। कोई पति कहता है पत्नी को कि | है, खुलता है; भीतर बुलाता है, आओ; अतिथि बनो! ठहराता है मेरी हो; तो फर्नीचर में और पत्नी में बहुत भेद नहीं रह जाता है। हृदय के घर में। उपयोग हो गया, लेकिन व्यक्ति का सम्मान न हुआ। उस दूसरे जब कोई व्यक्ति प्रेम करता है किसी को, तभी जान पाता है। व्यक्ति की निज आत्मा का कोई आदर न हुआ। अगर अस्तित्व को कोई प्रेम करता है, तभी जान पाता है परमात्मा वस्तुओं को ही हम प्रेम करते हैं, इसलिए व्यक्तियों को भी प्रेम | को। भगवत्प्रेम का अर्थ है, जो भी है, उसके होने के कारण प्रेम। करते हैं, तो उनको भी वस्तु बना लेते हैं। कुर्सी को हम प्रेम करते हैं, क्योंकि उस पर हम बैठते हैं, आराम दूसरा प्रेम, व्यक्तियों का जो प्रेम है, वह कभी लाख में एक | | करते हैं। टूट जाएगी टांग उसकी, कचरेघर में फेंक देंगे। उसका आदमी को, मैंने कहा, उपलब्ध होता है। व्यक्ति के प्रेम का अर्थ कोई व्यक्तित्व नहीं है। हटा देंगे। जो लो को भी इसी भांति है. दसरे का अपना मल्य है: मेरी उपयोगिता भर मल्य नहीं है | प्रेम करते हैं, उनका भी यही है। पति को कोढ़ हो जाएगा, तो पत्नी उसका। यूटिलिटेरियन में उसका उपयोग कर लूं-इतना ही डायवोर्स दे देगी, अदालत में तलाक कर देगी। टूट गई टांग कुर्सी उसका मूल्य नहीं है। उसका अपना निज मूल्य है। वह मेरा साधन की। हटाओ! पत्नी कुरूप हो जाएगी, रुग्ण हो जाएगी, अस्वस्थ नहीं है। वह स्वयं अपना साध्य है। हो जाएगी, अंधी हो जाएगी; पति तलाक कर देगा। हटाओ! तब कांट ने, इमेनुएल कांट ने कहा है-नीति के परम सूत्रों में एक तो वस्तु हो गए लोग। सूत्र। अनीति के लिए कांट कहता है, अनीति का एक ही अर्थ है, जो व्यक्ति सिर्फ वस्तुओं को प्रेम करता है, उसके लिए सारा दूसरे व्यक्ति का साधन की तरह उपयोग करना अनैतिक है। और | जगत मैटीरियल हो जाता है, वस्तु मात्र हो जाता है। व्यक्ति में भी दूसरे व्यक्ति को साध्य मानना नैतिक है। वस्तु दिखाई पड़ती है। और भगवत चैतन्य तो कहीं दिखाई नहीं पड़ गहरे से गहरा सूत्र है कि दूसरा व्यक्ति अपना साध्य है स्वयं। सकता। मैं उससे प्रेम करता हूं एक व्यक्ति की भांति, एक वस्तु की भांति | | भगवत चैतन्य को अनुभव करने के लिए पहले वस्तुओं के प्रेम नहीं। इसलिए मैं उसका मालिक कभी भी नहीं हो सकता हूं। । | से व्यक्तियों के प्रेम तक उठना पड़ता है; फिर व्यक्तियों के प्रेम से लेकिन व्यक्ति के प्रेम को ही हम उपलब्ध नहीं होते। | अस्तित्व के प्रेम तक उठना पड़ता है। जो व्यक्ति व्यक्तियों को प्रेम फिर तीसरा प्रेम है, भगवत्प्रेम। वह अस्तित्व का प्रेम है, लव | | करता है, वह मध्य में आ जाता है। एक तरफ वस्तुओं का जगत टुवर्ड्स दि एक्झिस्टेंस। लव टुवर्ड्स दि पर्सन, एंड लव टुवर्ड्स होता है, दूसरी तरफ भगवान का अस्तित्व होता है, पूरा अस्तित्व। थिंग्स, आब्जेक्ट्स। वस्तुओं के प्रति प्रेम, मकान, धन-दौलत, | | इन दोनों के बीच खड़ा हो जाता है। उसे दोनों तरफ दिखाई पड़ने पद-पदवी! व्यक्तियों के प्रति प्रेम, मनुष्य! अस्तित्व के प्रति प्रेम, | | लगता है। एक तरफ वस्तुओं का संसार है और एक तरफ अस्तित्व भगवत्प्रेम है। समग्र अस्तित्व को प्रेम। का लोक है। फिर वह आगे बढ़ सकता है। अब इसको थोड़ा ठीक से देख लेना जरूरी है। जब हम वस्तुओं । सुना है मैंने, रामानुज एक गांव से गुजरते हैं। और एक आदमी को प्रेम करते हैं, तो हमें सारे जगत में वस्तुएं ही दिखाई पड़ती हैं, आया। और उसने कहा कि मुझे भगवान से मिला दें। मुझे भगवान कोई परमात्मा दिखाई नहीं पड़ता। क्योंकि जिसे हम प्रेम करते हैं, | | से प्रेम करा दें। मैं भगवत्प्रेम का प्यासा हूं। रामानुज ने कहा, ठहरो, उसे ही हम जानते हैं। प्रेम जानने की आंख है। प्रेम के अपने ढंग इतनी जल्दी मत करो। तुमसे मैं कुछ पूछू। तुमने कभी किसी को हैं जानने के। सच तो यह है कि प्रेम ही इंटिमेट नोइंग है। आंतरिक, प्रेम किया? उसने कहा, कभी नहीं, कभी नहीं। मुझे तो सिर्फ आत्मीय जानना प्रेम ही है। भगवान का प्रेम है। रामानुज ने कहा, कभी किसी को किया हो इसलिए जब हम किसी व्यक्ति को प्रेम करते हैं, तभी हम जानते भूल-चूक से? उस आदमी ने कहा, बेकार की बातों में समय क्यों |2601
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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