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________________ संशयात्मा विनश्यति जगत में विनाश स्वयं आ जाता है, बिना हमारे सहारे के। लेकिन | हैं, जो यही सोचते हैं, निकलें, न निकलें? बदलें, न बदलें? करें, इस जगत में सृजन हमारे संकल्प के बिना नहीं होता है। इस जगत न करें? में कुछ भी निर्मित हमारी पूरी की पूरी श्रम, शक्ति, चित्त, शरीर, संशय से भरा हुआ चित्त समय को गंवा देता है, इसलिए विनष्ट सबके समाहित लग जाए बिना, इस जगत में कुछ निर्मित नहीं होता होता है। समय एक अवसर है, एक अपरचुनिटी। और ऐसा है। विनाश अपने से हो जाता है। बनाना हो, बनाना अपने से नहीं अवसर, जो मिल भी नहीं पाता और खो जाता है। क्षण आता है होता है। हाथ में; दो क्षण कभी एक साथ नहीं आते। एक क्षण से ज्यादा इस संशय से भरा हुआ चित्त विनाश को उपलब्ध हो जाता है। पृथ्वी पर शक्तिशाली से शक्तिशाली मनुष्य के पास भी कभी इसका अर्थ है कि संशय से भरे चित्त को विनाश के लिए कुछ भी ज्यादा नहीं आता। एक ही क्षण आता है हाथ में, बारीक क्षण। जान नहीं करना पड़ता है। विनाश आ जाता है, संशय से भरा हआ चित्त | | भी नहीं पाते कि आया और निकल जाता है। देखता रहता है। घर में लगी हो आग, संशय से भरी आत्मा की संशय से भरा हुआ व्यक्ति जीवन के सभी क्षणों को गंवा देता है। क्या स्थिति होगी? बाहर निकलूं या न निकलूं? घर में लगी है | क्योंकि संशय के लिए काफी समय चाहिए, और क्षण एक ही होता आग, बाहर निकलूं या न निकलूं? संशय से भरे चित्त की यह | है हाथ में। जब तक वह सोचता है, तब तक क्षण चला जाता है। स्थिति होगी। जब तक वह सोचता है, फिर क्षण चला जाता है। अंततः मृत्यु ही . आग नहीं रुकेगी आपके संशय के लिए, न आपके निर्णय के | | आती है संशय के हाथ में; जीवन पर पकड़ नहीं आ पाती; जीवन लिए। आग बढ़ती रहेगी। और संशय से भरा चित्त ऐसा होता है | खो जाता है। जीवन खो जाता है निर्णय में ही कि करूं, न करूं। कि जितनी बढ़ेगी आग, उतना प्रगाढ़ हो जाएगा उसका भीतर का सुना है मैंने रथचाइल्ड अमेरिका का एक बहुत बड़ा अरबपति खंडन। उतना ही विचार तेज चलने लगेगा, निकलूं न निकलूं! हुआ। उससे किसी ने पूछा कि तुम्हारी सफलता का राज क्या है? आग नहीं रुकेगी। विनाश फलित होगा। वह आदमी घर के भीतर गरीब थे तुम, अरबपति हो गए; तुम्हारी सफलता का राज क्या है? मरेगा। हम सब जिस जीवन में खड़े हैं—पदार्थ के, संसार उसने कहा, मैंने एक भी अवसर नहीं खोया। जब भी अवसर के-वह आग लगे घर से कम नहीं है। आया, मैंने छलांग लगाई और पकड़ा। बुद्ध को किसी ने पूछा जब वे घर छोड़कर चले गए, दूसरे गांव __ दूसरे व्यक्ति ने पूछा कि तुम्हारा अवसर को पकड़ने का सीक्रेट के सम्राट ने आकर कहा, सुना है मैंने, तुम राजपुत्र होकर घर-द्वार | और कुंजी क्या है? छोड़कर चले आए। नासमझी की है तुमने। अपनी पुत्री से तुम्हारा उसने कहा, जब अवसर आया, तब मैंने यह नहीं सोचा कि करूं विवाह कर देता हूं; मेरे राज्य के आधे के मालिक हो जाओ। या न करूं। मैंने सदा एक नियम बनाकर रखा कि पछताना हो, तो बुद्ध ने कहा, क्षमा करें। जिसे मैं पीछे छोड़ आया हूं, वह मकान करके पछताना; न करके कभी नहीं पछताना। क्योंकि न करके और घर नहीं था। आग लगी थी वहां। उस लगी हुई आग को पछताने का कोई मतलब ही नहीं है। पछताना हो, तो करके पछता छोडकर आया हं मैं। और तम फिर मझे आग लगे घर में प्रवेश के लेना। न करके कभी मत पछताना। क्योंकि किए को अनकिया लिए निमंत्रण देते हो! धन्यवाद तुम्हारे निमंत्रण के लिए; लेकिन | किया जा सकता है, दि डन कैन बी अनडन। जो किया, उसे शोक तुम्हारे अज्ञान के लिए! दुखी हूं कि तुम उसे महल कह रहे अनकिया किया जा सकता है। लेकिन जो अनकिया छूट गया, उसे हो, जिसे मैं छोड़ आया हूं। महल मैंने नहीं छोड़ा, छोड़ा है मैंने फिर किया नहीं किया जा सकता। जो मकान बनाया, वह गिराया आग लगा हुआ संसार। लपटें ही थीं वहां। तुम भी छोड़ो! जा सकता है। लेकिन जो नहीं बनाया, वह समय खो गया जिसमें उस सम्राट ने कहा, सोचूंगा। तुम्हारी बात पर विचार करूंगा। बनता; अब नहीं बनाया जा सकता। बुद्ध ने कहा, घर में आग लगी हो, तब कोई सोचता है कि रथचाइल्ड ने कहा, मैंने सदा एक नियम रखा, करके पछता निकलूं या न निकलूं? लूंगा। इसलिए मैंने कभी यह नहीं सोचा कि करूं या न करूं। किया। नहीं; घर में आग लगी हो, तो शायद ही ऐसा आदमी मिले, और मैं तुमसे कहता हूं कि करके मैं आज तक नहीं पछताया हूं। जो सोचे। लेकिन जीवन में आग लगी हो, तो अधिकतम लोग ऐसे असल में निःसंशय व्यक्ति कभी नहीं पछताता। जीवन का 2571
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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