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________________ इंद्रियजय और श्रद्धा गलत है कि अधिक दुख हमने बना रखे हैं, तो हम झेल जाते हैं! को जब भी मनोवैज्ञानिक सलाहकार मिल जाएंगे, तब दुनिया में लेकिन सुख? हमारी दृष्टि ऐसी है कि सुख हमने बनाए नहीं। कभी | | जितनी दुर्घटनाएं होंगी, उतनी और कभी नहीं हो सकतीं। - कोई सुख अगर हमारी दृष्टि के अनुकूल पड़कर हम पर छा जाता __ मिनट, दो मिनट, फिर घबड़ाहट शुरू हुई। क्योंकि कोई किसी है, तो खतरा है। फिर सुख की उत्तेजना भी थोड़ी देर में अप्रीतिकर | को आलिंगन में ले ले, तो क्षणभर में आलिंगन टूट जाए, तो सुख हो जाती है। सब उत्तेजनाएं अप्रीतिकर हो जाती हैं। का खयाल रह जाता है। दस मिनट रह जाए, तो घबड़ाहट और ___ सुना है मैंने, नादिर एक स्त्री को प्रेम करता था। लेकिन उस स्त्री बेचैनी शुरू हो जाती है। पंद्रह मिनट, आधा घंटा...। जिन ओंठों ने नादिर की तरफ कभी ध्यान नहीं दिया। नादिरशाह साधारण में समझा था कि गुलाब के फूल खिलते हैं, उनसे बदबू आने लगी। आदमी नहीं था, असाधारण आदमी था। हत्यारों में उस जैसा कहीं खिलते नहीं, किन्हीं ओंठों में गुलाब के फूल नहीं खिलते। असाधारण दूसरा नहीं है। अभी-अभी हमने कुछ रिकार्ड तोड़े सिर्फ उन कवियों की कविताओं में खिलते हैं, जिन्हें ओंठों का कोई हैं-हिटलर, स्टैलिन के साथ। लेकिन हिटलर और स्टैलिन का पता नहीं है। जिनको भी ओंठों का थोड़ा अनुभव है, वे जानते हैं, जो हत्यारापन है, वह बड़ा परोक्ष है। उन्हें कभी ठीक पता नहीं फूल नहीं खिलते। सब तरह की बदबू मुंह से उठती है। उठने लगी। चलता कि वे मार रहे हैं। नादिरशाह का हत्यारापन सीधा, प्रत्यक्ष दिन बीता, चौबीस घंटे हो गए। सोए नहीं। रातभर की तंद्रा था; वही मार रहा था सामने छाती में। आंखों में, शरीर में भर गई। ऐसा लगने लगा कि दोनों लाश हो गए - नादिरशाह को उस स्त्री ने ध्यान नहीं दिया। लेकिन जब हैं। आदमी जिंदा नहीं हैं। फिर मल-मूत्र भी बहने लगा; क्योंकि दो नादिरशाह को पता चला कि वह उसके ही एक पहरेदार को, | दिन बीत गए। फिर तो गंदगी भारी हो गई। फिर तो वे साधारण सिपाही को प्रेम करती है, तो पागल हो गया। अपने चीखने-चिल्लाने लगे कि हमें छुड़ा दो; माफ करो। लेकिन नादिर बुद्धिमानों को उसने बुलाया और कहा कि सजा बताओ, क्या सजा | रोज आकर देख जाता कि प्रेमियों की क्या हालत है! दूं? बुद्धिमान हैरान हुए, क्योंकि नादिरशाह सजा इनवेंट करने में फिर तो ऐसा मन होने लगा कि अगर हाथ खुले हों, तो इतना कुशल था कि वह बुद्धिमानों से पूछे ? बुद्धिमान थोड़े हैरान | एक-दूसरे की गर्दन दबा दें। उस जगत में उन दोनों को उन क्षणों हुए! उन्होंने कहा, आपकी कुशलता हम न पा सकेंगे। आपसे | में जैसी शत्रुता अनुभव हुई होगी, ऐसी किन्हीं प्रेमियों को कभी नहीं ज्यादा कुशल और कौन है? सताने में आप ऐसी-ऐसी तरकीबें निकालते हैं! आपसे ज्यादा हम कुछ न बता सकेंगे। लेकिन प्रेमियों का सबसे बड़ा सौभाग्य यह है कि वे कभी मिल न पाएं। नादिरशाह ने कहा कि नहीं; मैं जो भी सोच सका, सब कम पड़ता | मिल जाएं, तो उपद्रव शुरू होते हैं। और इस भांति मिल जाएं, इस है। तुम कुछ ऐसा सोचकर आओ कि जैसा कभी किसी ने किसी पूरी तरह मिल जाएं, तब तो बहुत कठिनाई है। पंद्रह दिन बाद सोच . को न सताया हो। सकते हैं कि क्या हालत हुई होगी! दो लाशों की तरह मुर्दा, पागल, __उसके विद्वानों में से एक मनसशास्त्री ने कहा कि अगर मेरी विक्षिप्त! मानें, तो मैं आपको बताऊं। नादिरशाह मान गया, जो उसने कहते हैं कि जब पंद्रह दिन बाद मनोवैज्ञानिक ने सलाह दी कि बताया। और सजा दी गई। ऐसी सजा पहली दफा दी गई; और अब छोड़ दो, अब दूसरा मजा देखो, उन दोनों को छोड़ दिया। वे अगर बहुत दफे दी जाए, तो दुनिया में बड़ी मुसीबत हो जाए। सजा दोनों एक-दूसरे की तरफ पीठ करके जो भागे, तो दोबारा जिंदगी बड़ी अजीब थी। सोच भी नहीं सकते, ऐसी थी। में फिर कभी नहीं मिले। फिर कभी एक-दूसरे को देखा भी नहीं। दोनों को नग्न करके, आलिंगन में बांधकर रस्सियों से, और एक बड़ी कठिन रही होगी सजा। खंभे में बांध दिया गया। न खाना, न पीना। दोनों के चेहरे एक-दूसरे ___ सब सुख दुख हो जाते हैं। और सब दुख भी अभ्यास से सुख की तरफ। क्षणभर हो तो उन्हें लगा कि हमारे जीवन का स्वर्ग मिल हो जाते हैं। एक आदमी पहली दफा सिगरेट पीता है, तो सुख नहीं गया। इसी के लिए आतुर थे कि एक-दूसरे की बांह में पहुंच जाएं! | मिलता, सिर्फ तिक्तता पहुंच जाती है मुंह में। गंदा धुआं; खांसी, पहुंच गए! थोड़े हैरान हुए कि नादिर को यह क्या हुआ है! लेकिन और बदबू और घबड़ाहट; बेचैनी! पहली दफा आदमी शराब उन्हें पता नहीं कि एक मनोवैज्ञानिक ने सलाह दी है। और राजनीतिज्ञों पीता है, तो कभी सुख नहीं मिलता। लेकिन शराब पिलाने वाले 251
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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