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गीता दर्शन भाग-20
जो बनता है, वह दक्षिणपंथी है। उसने एक एक्सट्रीम पकड़ ली; निःसंशय वही हो सकता है, जिसने संदेह को दबाया नहीं, संदेह अब वह पकड़े रहेगा, वह छोड़ेगा नहीं। दूसरे ने दूसरी एक्सट्रीम, | को रूपांतरित किया, ट्रांसफार्म किया और जिज्ञासा बनाई। जिसने अति पकड़ ली–वामपंथी, अविश्वास की। वह कहता है, नहीं | | जिज्ञासा बनाई संदेह को, अब वह निःसंशय हो सकता है। संशय है। एक कम्युनिस्ट है; कहता है, नहीं है। उसने पकड़ ली एक | तो उसी को पैदा होता है, जिसका कोई विश्वास है। जिसका कोई
अति। ये एक अर्थ में डिसीसिव हैं; इनमें संशय नहीं है। ऊपर से | भी विश्वास नहीं है, उसके संशय का कोई उपाय नहीं है। संदेह बन दिखाई नहीं पड़ता; भीतर संदेह है; संशय नहीं दिखाई पड़ता। | जाए जिज्ञासा, तो संशय बन जाता है श्रद्धा।
आस्तिक कहता है, बिलकुल है; जान लगा दूंगा अपनी। और ___ ध्यान रहे, अगर मैं कुछ मानता हूं, तो संशय हो सकता है। कई आस्तिकों ने, जिन्हें बिलकुल पता नहीं था, जान लगा दी। और | अगर मैं कुछ भी नहीं मानता, तो संशय नहीं होता। संशय मानने अपनी तो कम लगाई, दूसरों की ज्यादा लगवा दी! कई नास्तिक से पैदा होता है। अगर मैं कुछ भी नहीं मानता—यह भी नहीं, वह जान लगा दिए हैं। अपनी कम, दूसरों की ज्यादा लगा दिए हैं। भी नहीं; हां भी नहीं, नहीं भी नहीं; स्वीकार भी नहीं, अस्वीकार
और ध्यान रखें, जो आदमी भी कहता है, जान लगा दूंगा, वह | भी नहीं-अगर मैं कुछ भी नहीं मानता, तब संशय पैदा नहीं होता। खतरनाक है। क्योंकि जो जान लगा सकता है, वह जान ले सकता संदेह बने जिज्ञासा, तो संशय बनता है श्रद्धा श्रद्धा उसके ही है। जो आदमी भी कहता है कि जिंदगी लगा दूंगा, शहीद हो पास होती है, जिसके पास जिज्ञासा होती है। कठिन लगेगी यह जाऊंगा, उससे जरा सावधान रहना। क्योंकि शहीद होने के पहले, बात। पर जीवन में जटिलताएं हैं। वह दस-पचास को शहीद करवाएगा, तभी शहीद हो सकता है। जिज्ञासावान श्रद्धावान होता है। और श्रद्धावान ही जिज्ञासा कर शहीद खतरनाक है। शहीदी का भाव खतरनाक है। क्योंकि जब वह सकता है। तब श्रद्धा का क्या अर्थ हुआ? अपनी जान लगा देता है, दो कौड़ी की समझता है अपनी जान, तो | श्रद्धा का सिर्फ इतनी ही अर्थ हुआ कि इस आदमी के पास कोई आपकी कितनी कौड़ी की समझेगा? किसी मूल्य की नहीं समझता | | विश्वास नहीं, कोई अविश्वास नहीं; यह मुक्त मन है, ओपन है। आपको आदमी उतना ही मूल्य देता है, जितना अपने को देता | माइंड। श्रद्धावान वलनरेबल है, खुला हुआ है। है; उससे ज्यादा नहीं देता।
विश्वास क्लोज करते हैं, श्रद्धा खोलती है। श्रद्धा एक ओपनिंग आस्तिक संशयहीन दिखाई पड़ता है, संदेह भीतर होता है। | है। विश्वास को पकड़ा हुआ आदमी ऐसा है, जैसे फूल की बंद इसलिए उसका निःसंशय होना. सच्चा नहीं हो सकता: भीतर का कली। श्रद्धा को उपलब्ध हआ आदमी ऐसा है, जैसे खिला हआ कीड़ा धक्का देता रहता है। उसी को दबाने के लिए वह बिलकुल फूल-प्रकाश को सब तरफ से झेलता हुआ; निःसंशय; सूर्य के पक्का मजबूती से खड़ा रहता है कि मैं मानता हूं कि ईश्वर है। और साक्षात्कार में तत्पर; खोज को निकला; सूर्य के सामने नग्न अगर किसी ने कहा, नहीं है, तो ठीक नहीं होगा। जब कोई कहे कि उघाड़ा। श्रद्धावान का अर्थ है, नग्न, उघाड़ा, दिगंबर, निर्वस्त्र। किसी ने कहा कि नहीं है, तो ठीक नहीं होगा, तब समझ लेना कि कोई क्लोजिंग नहीं है। कोई ढांक नहीं है मन के ऊपर। कोई उसके भीतर संशय का कीड़ा है।
आवरण नहीं है। कोई पर्त नहीं है। विश्वास की नहीं, अविश्वास शास्त्र हैं ऐसे, जो कहते हैं, विरोधी की बात मत सुनना। बड़े की नहीं। सब तरफ से खुला हुआ है। सब दीवालें तोड़ दी हैं। खुले कमजोर शास्त्र हैं। क्योंकि विरोधी की बात के सुनने में डर क्या है? आकाश के नीचे खड़ा है। डर यही है कि भीतर का अपना संशय कहीं विरोधी की बात सुनकर ___ कौन खड़ा हो सकता है खुले आकाश के नीचे? जरा-सा भी ऊपर न आ जाए। और कोई डर नहीं है।
संदेह हो, तो खुले आकाश के नीचे खड़ा नहीं हो सकता; अपने नास्तिक भी घबड़ाता है। वह भी अपने अविश्वास को जोर से | घर के भीतर छिपकर बैठेगा। संदेह डराता है। संशय हो, तो हजार पकड़ता है। नास्तिक और आस्तिक डागमेटिस्ट होते हैं, पक्के | इंतजाम करके बाहर आएगा। निःसंशय हो, तो आ जाता है बाहर। रूढ़ि को पकड़े होते हैं। ऊपर से दिखता है, संशय बिलकुल नहीं | ऐसा निःसंशय चित्त, श्रद्धावान चित्त, ऐसा खुला मन फूल की है; लेकिन भीतर संदेह का कीड़ा है। इसलिए वे निःसंशय हो नहीं | तरह, सूर्य के समक्ष; ऐसा ही खुला मन, प्रभु के समक्ष, सत्य के सकते। निःसंशय कौन हो सकता है?
समक्ष, अस्तित्व के समक्ष, श्रद्धावान है। जिसने अपनी अश्रद्धा को
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