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________________ इंद्रियजय और श्रद्धा कभी कोई सोच नहीं सकता था कि स्त्रियां बच्चों को दूध पिलाने से इनकार कर देंगी। अमेरिका में उन्होंने कर दिया है। क्योंकि दूध पिलाने से उनकी उम्र जल्दी ढल जाती है; शरीर दीन दिखाई पड़ने लगता है; शरीर की चुस्ती खो जाती है। नौ महीने बच्चे को पेट में रखने से और भारी नुकसान शरीर को होते हैं। व्यवस्था हुई जाती है, फिर इनक्यूबेटर ही मां होगा, इंजेक्टर पिता होगा ! कोई फर्क नहीं पड़ता है। अभी भी वही है। अभी भी जिसको हम मां कहते हैं, उसने इनक्यूबेटर का काम किया है। उसके पेट में प्राकृतिक इंतजाम हैं, जिसमें बच्चा नौ महीने रह लेता है। कल हम कृत्रिम इंतजाम कर लेंगे। शायद उससे भी बेहतर कर लेंगे। यह कामचलाऊ जगत है। कठिनाई नहीं आती कि मित्र को मित्र मान लिया। बहुत से बहुत क्या करेगा! रात में सामान लेकर नदारद हो जाएगा। विश्वास से चलता है जगत। इसी विश्वास को हम परमात्मा में भी लगाते हैं, तब भूल शुरू होती है। कृष्ण का अर्थ, जब वे कहते हैं श्रद्धावान, तो विश्वासी नहीं है। कृष्ण का क्या अर्थ होगा श्रद्धावान से ? श्रद्धावान को समझने के लिए दो-तीन बातें विश्वास के संबंध में और खयाल में रख लें। विश्वास के पीछे सदा संदेह है, स्मरण रखें। संदेह को दबाने और मिटाने के लिए किया गया है विश्वास | संदेह के खिलाफ इंतजाम है विश्वास। संदेह भीतर सरक रहा है। एक आदमी कहता है, मैं ईश्वर में विश्वास करता हूं। उससे पूछें कि थोड़ा गहरे खोजो । सच विश्वास करते हो? अगर वह ईमानदार हो, आनेस्ट हो, नीयत उसकी साफ हो, तो पाएगा भीतर कि भीतर विश्वास नहीं है। विश्वासी से विश्वासी को पता चल जाता है कि भीतर कहीं संदेह का कण है; कहीं शक उठता है कि है ईश्वर या नहीं! है भी? आत्मा है? मृत्यु के बाद बचता है कुछ ? प्रश्न उठते हैं भीतर। वहां संदेह है। श्रद्धावान का अर्थ है, संशयहीन, संदेहहीन नहीं। संदेह का अर्थ है, डाउट, संशय का अर्थ है, इनडिसीजन । श्रद्धावान का अर्थ है, संशयहीन, संदेहहीन नहीं । संदेह तो मनुष्य के साथ है। प्रश्न तो मनुष्य के साथ है, जिज्ञासा तो मनुष्य के साथ है। संदेह जिज्ञासा बने, शुभ है। संदेह विश्वास बने, खतरनाक है। संदेह अविश्वास बने, तो भी खतरनाक है। संदेह की सम्यक यात्रा इंक्वायरी है, जिज्ञासा है। संदेह की असम्यक यात्रा दो तरह से हो सकती है। अगर राइटिस्ट हो, दक्षिणपंथी हो, पुराणपंथी हो, तो संदेह विश्वास बन जाता है। अगर लेफ्टिस्ट हो, वामपंथी हो, पुराण विरोधी हो, नवीनपंथी हो, तो संदेह अविश्वास बन जाता है। लेकिन अगर व्यक्ति न दक्षिणपंथी हो, न वामपंथी हो; संदेह का सम्यक उपयोग करना जानता हो, तो संदेह जिज्ञासा बनता है, प्रश्न बनता है, खोज बनता है, इंक्वायरी बनता है। जिसने विश्वास से दबाया संदेह को, वह तथाकथित झूठा आस्तिक बन जाता है। जिसने अविश्वास से दबाया संदेह को ... । ध्यान रहे, अविश्वास भी संदेह को दबाने की तरकीब है। एक आदमी को विश्वास नहीं आता; संदेह उठता है कि ईश्वर है ? एक आदमी कहता है, है! और पर्त बना लेता है ऊपर होने की, और भूल जाता है। झंझट के बाहर हो जाता है । जिज्ञासा को मिटा देता है । कहता है, है । दूसरा आदमी कहता है, नहीं है। वह भी एक पर्त बना लेता है, न होने की। वह भी झंझट को मिटा देता है; इंक्वायरी को समाप्त कर देता है, जिज्ञासा बंद हो जाती है । है, तो भी जिज्ञासा बंद हो जाती है। नहीं है, तो भी जिज्ञासा बंद हो जाती है। जो है, ऐसा मान लिया, उसकी खोज की जरूरत नहीं रहती । जो नहीं है, | ऐसा मान लिया, उसकी भी खोज की जरूरत नहीं रह जाती। नहीं; संदेह बननी चाहिए जिज्ञासा। हमें पता नहीं कि है; हमें यह भी पता नहीं कि नहीं है। झूठे आस्तिक व्यर्थ; झूठे नास्तिक व्यर्थ । नास्तिक और आस्तिक का एक गहरा तालमेल जिज्ञासा बनाता है। पूछता है आदमी, है? प्रश्नवाची होती है उसकी जिज्ञासा । न स्वीकार, न अस्वीकार। पूछता है। संदेह गहरे में जाए, तो एग्नास्टिक बनाता है। अज्ञेय है, अननोन है, जो भी है। मुझे पता नहीं है। संदेह गहरा जाए, तो अहंकार को | तोड़ता है; क्योंकि मुझे पता नहीं है; मैं अज्ञानी हूं। आस्तिक भी ज्ञानी बन जाता, विश्वास पकड़कर नास्तिक भी ज्ञानी बन जाता, अविश्वास पकड़कर। सिर्फ रहस्य में वह प्रवेश | करता है, जो कहता है, मैं अज्ञानी हूं। मुझे पता नहीं कि है या नहीं | है । सिर्फ प्रश्न का पता है; मुझे कुछ पता नहीं है। यह तो संदेह का सम्यकरूप है, राइट डाउट । श्रद्धा का इससे | कोई संबंध नहीं है। श्रद्धा का संबंध दूसरी बात से है। एक और वृत्ति है मनुष्य के भीतर, संशय की, इनडिसीजन की, कि आदमी सदा डांवाडोल होता है। डांवाडोल होने का अर्थ है, कुछ भी, कुछ भी संकल्प नहीं बन पाता। क्षणभर बाएं चला जाता है, क्षणभर दाएं चला जाता है। ध्यान रखें, मैंने कहा कि आस्तिक, झूठे विश्वास को पकड़कर 247
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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