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________________ गीता दर्शन भाग-20 जो आदमी विश्वास करता है, हम कहते हैं, श्रद्धावान है। | ही हम परमात्मा को भी मान लेते हैं। संदेह का कीड़ा भीतर सरकता विश्वास श्रद्धा नहीं है। विश्वास श्रद्धा तो है ही नहीं: श्रद्धा के ठीक रहता, ऊपर विश्वास का पलस्तर बिछा देते हैं: ऊपर से विश्वास विपरीत है। भाषाकोश में नहीं है। वहां तो लिखा है, श्रद्धा यानी | की पर्त फैला देते हैं। भीतर संदेह की आग जलती रहती. ऊपर से विश्वास, विश्वास यानी श्रद्धा। विश्वास श्रद्धा के बिलकुल विश्वास का आवरण छा देते हैं। विपरीत है, जब मैं ऐसा कहता हूं, तो चौंकेंगे आप। लेकिन कहने | इसलिए विश्वासी के भीतर जरा-सा छेद करो. जरा-सी सर्जरी का कारण है। | और संदेह बाहर आ जाएगा। स्किन डीप, चमड़ी से ज्यादा गहरा विश्वास वह आदमी करता है, जिसके भीतर अविश्वास है। नहीं होता विश्वास। और श्रद्धा? श्रद्धा गहराई का नाम है। और श्रद्धा उस आदमी में होती है, जिसके भीतर अविश्वास नहीं | विश्वास ? विश्वास चमड़ी का नाम है। विश्वास ऊपर की चमड़ी है। विश्वास हमारा कृत्य है, हमारे द्वारा किया गया काम है। श्रद्धा | है, जो काम चलाने के लिए पैदा की गई है। हमारी अनुपस्थिति में घटी घटना है। हैपनिंग है, डूइंग नहीं। | ठीक है, मां को मान लेने में हर्जा भी नहीं है। न भी हो, तो कुछ विश्वास हम करते हैं। क्यों करते हैं? क्योंकि संदेह के साथ | हर्जा नहीं है। झूठ भी हो, और मां का काम कर दिया हो, तो बात जीना कठिन है। बहुत कठिन है। संदेह के साथ जीने से ज्यादा हो गई। सच में पिता पिता न हो, कोई और ही पिता रहा हो, फर्क तपश्चर्या कोई और नहीं है। संदेह के साथ जीना बहुत आईअस क्या पड़ता है? इट मेक्स नो डिफरेंस। और अभी तो थोड़ा-बहुत है। चौबीस घंटे संदेह में नहीं जी सकते हैं। कहां-कहां संदेह | फर्क पड़ भी जाता होगा, भविष्य में बिलकुल नहीं पड़ेगा। क्योंकि करेंगे? इंच-इंच पर संदेह खड़ा है। अगर संदेह करेंगे, तो पैर भी | आर्टिफीशियल इनसेमिनेशन हो सकता है। न उठा सकेंगे: श्वास भी न ले सकेंगे: भोजन भी न कर सकेंगे। मैं आज मर जाऊं, दस हजार साल बाद मेरा बेटा पैदा हो सकता संदेह करेंगे, तो जीना क्षणभर भी मुश्किल है। | है। वीर्यकण को संरक्षित किया जा सकता है, दस हजार साल बाद संदेह कठिन है, बहुत कठिन है। संदेह करेंगे, तो पिता को इंजेक्ट कर दोगे, बच्चा पैदा हो जाएगा। फिर जो इंजेक्शन पिता मश्किल हो जाएगा। क्योंकि खद तो कोई पता नहीं है लगाएगा, वही फादर हआ। वैसे अभी भी पिता जो है, वह कि वह पिता है। ऐसा लोग कहते हैं कि पिता है। खुद का तो कोई | इंजेक्शन लगाने से ज्यादा काम नहीं कर रहा है। पर वह नेचरल' अनुभव नहीं है कि वह पिता है। मां को मां मानना मुश्किल हो | इंजेक्शन है। वह आर्टिफीशियल होगा। इससे ज्यादा कुछ है नहीं जाएगा! संदेह करेंगे, तो मित्रता बनानी असंभव है। क्योंकि सब | मामला। तो चल जाता है; चल जाता है काम। इससे कोई बहुत मित्रताएं अपरिचित, अनजान के प्रति भरोसे से पैदा होती हैं। संदेह | दिक्कत नहीं आती है। इससे कोई जीवन की अतल गहराइयों का ' करेंगे, तो सारा जगत शत्रु हो जाएगा। संदेह करेंगे, तो रात सो भी | लेना-देना नहीं है। जो फादी है, वह फादर है। जो पितृत्व दिखला न सकेंगे। संदेह करेंगे, तो एक कौर भी मुंह में न डाल सकेंगे, | | रहा है, पिता है। जो मातृत्व दिखला रही है, वह मां है। क्योंकि जहर की संभावना सदा है। संदेह करेंगे, तो जी ही न | | बहुत दिन तक जरूरी नहीं है; क्योंकि स्त्रियां बहुत दिन तक सकेंगे; मर जाएंगे; जहां खड़े हैं, वहीं गिर जाएंगे। बच्चे रखने को राजी नहीं होंगी नौ महीने। जिस दिन स्त्री की संदेह के साथ बड़ी कठिनाई है। इसलिए विश्वास से हम संदेह | इक्वालिटी पुरुष से पूरी हो जाएगी, उस दिन स्त्रियां नौ महीने बच्चे को दबाते हैं। विश्वास के साथ जीया जा सकता है आसानी से। | को पेट में रखने के लिए कांस्टीट्यूशनली गलत कहेंगी। गलत है। विश्वास कनवीनिएंट है, सुविधापूर्ण है। संदेह बहुत इनकनवीनिएंट | क्योंकि पुरुष तो अलग हो जाता है। भागीदार दोनों बराबर हैं। नौ है, बहुत असुविधापूर्ण है। महीने स्त्री ढोती है बेटे को! कुछ आश्चर्य नहीं कि भविष्य की कोई जिंदगी चलती है विश्वास के सहारे। मानना पड़ता है कि कोई | क्रांतिकारी सरकार साढ़े चार-चार महीने का बंटाव करे! अब हो पिता है। मानना पड़ता है कि कोई गुरु है। मानना पड़ता है कि कुछ | सकता है। अब कठिनाई नहीं है। और या फिर स्त्री को नौ महीने ऐसा है, कुछ वैसा है। सब मानकर चलता है। | के लिए मुक्त करे और बच्चे इनक्यूबेटर में, मशीन के गर्भ में रखे इस मानने के बीच में श्रद्धा का हम अर्थ कर लेते हैं विश्वास। जाएं और बड़े हों। तब जैसे हम पिता को मानते हैं, जैसे हम मित्र को मान लेते हैं, वैसे इस सदी के पूरे होते-होते बच्चे स्त्रियों के पेट में नहीं रहेंगे। 146
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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