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O इंद्रियजय और श्रद्धा
चूकते चले जाते हैं। फिर तो हम चूकने के अभ्यस्त हो जाते हैं। | वही करेगा, जो सामने करता, आंख खोलकर करता। अभ्यास इतना गहरा हो जाता है...।
नहीं; आंख बंद करें। भूलें बाहर को। धन्यवाद दें, जिसने क्रोध मैंने सुना है, एक सर्कस में ऐसा हुआ। एक आदमी रोज ही । | को उठाया, क्योंकि एक मौका दिया ध्यान का। आंख बंद करें और अपनी पत्नी को तख्ते पर रखकर और तीर से निशाना लगाता था। | | देखें कि क्रोध क्या है? कहां है? कैसे उठता? कैसे गहन होता? तीस तीर मारता था। लेकिन तीर ऐसे कि हाथ को छूकर तख्ते में कैसे छा जाता है पूरे प्राणों पर धुएं की भांति? कैसे पकड़ लेता? चुभ जाते; कान को छुते हुए गुजरते और तख्ते में चुभ जाते। सिर कैसे खन-खन गरम हो जाता? कैसे रक्त का कण-कण विषाक्त को छूते हुए निकलते और तख्ते में चुभ जाते। पूरी पत्नी को चारों | हो जाता? कैसे सारा शरीर उत्तप्त और फीवरिश हो जाता? कैसे तरफ से तीरों से भर देता; लेकिन जरा भी पत्नी को खरोंच न मन बेहोश हो जाता? देखें, और बहुत हैरान होंगे। लगती। ऐसा उसका तीस साल का अभ्यास था। तीस साल से वह | जैसे-जैसे देखने की क्षमता बढ़ेगी, जैसे-जैसे पहचानने की यही काम कर रहा था।
सामर्थ्य बढ़ेगी, जैसे-जैसे साक्षी जगेगा, वैसे-वैसे क्रोध तिरोहित ___ एक दिन-ऐसे दिन बहुत आए थे, जब पत्नी से दिन में कलह | होगा। किसी दिन जब पूरे क्रोध को आमने-सामने देख पाएंगे, इन हो गई थी। कई बार उसके मन में भी होता था कि आज तीर मार इट्स टोटल नैकेडनेस, क्रोध को उसकी पूरी ही नग्नता में, ही दूं बीच में ही, छाती में ही चुभ जाए। लेकिन अपने को सम्हाल रोएं-रोएं में जब क्रोध को पहचान पाएंगे, हृदय के कोने-कोने में, गया था। सांझ होते-होते क्रोध चला गया था। एक दिन सांझ को चेतन-अचेतन में सब तरफ जब क्रोध को देख पाएंगे कि यह रहा इतना झगड़ा हो गया कि जब वह आया मंच पर और पत्नी खड़ी क्रोध, उसी दिन पाएंगे कि क्रोध रूपांतरित हो गया और क्षमा का हुई तख्ने पर, तो उसने कहा, अब बहुत हो गया। उठाया तीर, जन्म हुआ है, उसी दिन क्षमा जन्म जाएगी। वही ऊर्जा जो ध्यान के
आंख बंद कर ली; क्योंकि अभ्यास इतना गहरा था कि आंख खुली अभाव में क्रोध है, वही ऊर्जा ध्यान के साथ क्षमा बन जाती है। रही, तो संभावना यही है कि तीर तख्ते में लगेगा, पत्नी में नहीं अगर मुझसे पूछे, तो गणित के सूत्र में ऐसा कहूं, क्रोध + ध्यान लगेगा। तीस साल का अभ्यास! आंख बंद कर लीं, कि आंख बंद = क्षमा; काम + ध्यान = ब्रह्मचर्य; लोभ + ध्यान = दान। फिर करके मारूंगा तीर, तब तो लगने ही वाला है। आंख बंद की। सांस | गणित को आप फैला लें। जहां ध्यान जुड़ा, वहीं रूपांतरण है। रोक ली। मारा तीर। हाल में तालियां बजीं। घबडाकर आंख क्योंकि ध्यान के साथ आता ज्ञान: ज्ञान विजय है। खोली। तीर पत्नी को छूता हुआ तख्ते में लग गया था। तीस तीर जितेंद्रिय पुरुष वह है, जिसने अपनी इंद्रियों के सब कोने-कातर, आंख बंद करके मारे उसने, लेकिन तीर अपनी जगह पहुंचते रहे! जिसने अपनी इंद्रियों के सब छिपे प्रकट-अप्रकट रूप जाने, बंद आंख से भी तीर पत्नी में न लग सका। अभ्यास गहरा था; तीस पहचाने; जिसने अपनी इंद्रियों की प्रयोगशाला में उतरकर साक्षी का साल का था। बंद आंख में भी काम कर गया।
अनुभव किया, वह विजेता हो जाता है। ऐसा जितेंद्रिय पुरुष हमारा तो जन्मों का, लाखों जन्मों का अभ्यास है चूकने का। उपलब्ध होता है शांति को। उठा क्रोध-चूके, भूले कि ध्यान का मौका आया; अपरचुनिटी टु लेकिन एक और शर्त कृष्ण कहते हैं, श्रद्धावान भी। यह शब्द भी मेडिटेट।
थोड़ा कठिन है। जैसे जितेंद्रिय शब्द के साथ भ्रांतियां जुड़ी हैं, वैसे इस सूत्र के साथ मैं आपसे कहना चाहता हूं, जब क्रोध उठे, तब | | ही श्रद्धा के साथ और भी गहरी जुड़ी हैं। क्योंकि जितेंद्रिय होने की उसकी फिक्र छोड़ दें, जिस पर क्रोध उठा; क्योंकि उसकी फिक्र की, | कोशिश कम ही लोग करते हैं, इसलिए भ्रांति कम है। श्रद्धावान होने तो चूके। उसकी फिक्र में ही चूकते हैं। किसी ने गाली दी; गाली | | की कोशिश सभी लोग करते हैं, इसलिए भ्रांति और भी ज्यादा है। की फिक्र छोड़ें; गाली देने वाले की फिक्र छोड़ें। इस वक्त तो उसको | श्रद्धा शब्द अध्यात्म के पास बहुत गहराइयों से जुड़ा है। हम कहें कि अभी ठहरो जरा; मैं अपना काम करके आधा घंटे में | सब जीते हैं सतह पर, गहराइयों का हमें कोई पता नहीं है। इसलिए लौटकर आता हूं। द्वार बंद करें, आंख बंद करें। बहुत मौका तो | हम सतह पर श्रद्धा का अनुवाद करते हैं। और जो हमारा अनुवाद यही है कि आंख बंद करके भी वही होगा, जो उस सर्कस के | | है, वह बड़ा खतरनाक है। श्रद्धा का हमारा जो अनुवाद है, वह आदमी का हुआ। जन्मों का अभ्यास है! आंख बंद करके भी क्रोध | विश्वास है, बिलीफ है। .
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