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गीता दर्शन भाग-20
जितेंद्रिय का अर्थ है, जानो इंद्रिय को। एक-एक इंद्रिय के रस | | द्रव्य खोज कर सकते होते, तो उन्होंने कभी की खोज कर ली होती। को पहचानने से, परिचित होने से; एक-एक इंद्रिय की शक्ति के | वैज्ञानिक की शर्त यह है कि वह आब्जर्व कर सके, निरीक्षण कर भीतर प्रवेश करने से, जीत फलित होती है। ज्ञान विजय बन जाता | सके! आब्जर्वेशन विज्ञान का मूल आधार है। है। ज्ञान ही विजय है। कैसे जानेंगे?
जिसे विज्ञान आब्जर्वेशन कहता है, निरीक्षण कहता है, उसे ही कामवासना उठती है हजार बार। थोड़े अनुभव नहीं हैं। एक योग, धर्म, ध्यान कहता है। वह धर्म की पारिभाषिक शब्दावली परुष अपने जीवन में. साधारण स्वस्थ परुष. चार हजार संभोग कर ध्यान है। ध्यान का मतलब है, जो भी देख रहे हैं, उससे दर खडे सकता है, करता है। चार हजार बार काम के अनुभव से गुजरता है होकर देख सकें, टु बी ए विटनेस। एक गवाह की तरह देख सकें; एक पुरुष। स्त्री तो लाख बार गुजर सकती है। उसकी क्षमता गहन | सम्मिलित न हो जाएं। है। इसलिए पुरुष वेश्याएं नहीं हो सके; स्त्रियां वेश्याएं हो सकीं। जिस इंद्रिय के साथ आपका एकात्म हो जाता है, उसे आप कभी
लाख बार भी काम के अनुभव से गुजरकर यह पता नहीं चलतान जान पाएंगे। जिस इंद्रिय के रस के साथ आप इतने डूब जाते हैं कि यह काम-ऊर्जा, यह सेक्स-एनर्जी क्या है? क्योंकि हम कभी | कि भूल जाते हैं कि मैं देखने वाला हूं, बस, फिर ध्यान नहीं हो . काम पर ध्यान नहीं करते। कभी हम सेक्स पर मेडिटेशन नहीं करते। | पाता। फिर कभी इंद्रियों के रस का ज्ञान नहीं हो पाता।।
इस जगत में जो भी ज्ञान उपलब्ध होता है, वह ध्यान से उपलब्ध | | क्रोध उठे, तो क्रोध से जरा दूर खड़े होकर देखें, क्या है? लेकिन होता है—जो भी ज्ञान! चाहे विज्ञान की प्रयोगशाला में उपलब्ध हम भगवान पर तो ध्यान करते हैं, जिसका हमें कोई पता नहीं। होता हो; और चाहे योग की अंतःप्रयोगशाला में उपलब्ध होता हो। | जिसका हमें पता नहीं, उस पर तो ध्यान होगा कैसे। ध्यान तो उस जो भी ज्ञान जगत में उपलब्ध होता है, वह ध्यान से उपलब्ध होता | | पर हो सकता है, जिसका हमें पता है। भगवान पर ध्यान करते हैं, है। ध्यान ज्ञान को पाने का इंस्ट्रमेंट, उपाय, विधि, मेथड है। | जिसका हमें कोई पता नहीं है। क्रोध पर, काम पर कभी ध्यान नहीं कभी आपने ध्यान किया है सेक्स पर?
| करते, जिसका हमें पता है। आप कहेंगे, बहुत बार किया है। चिंतन किया है, ध्यान नहीं| | और मजा यह है कि जो काम, क्रोध और बाकी इंद्रियों के समस्त किया। सोचते तो बहुत हैं; जितना करते नहीं, उतना सोचते हैं। | | उपद्रव के प्रति, ऊर्जा के प्रति, विस्फोट के प्रति ध्यान करने में समर्थ काम के अनुभव से जितना गुजरते हैं, उससे लाख गुना ज्यादा काम | हो जाता है; जैसे-जैसे उसका ध्यान बढ़ता है इंद्रियों पर, वैसे-वैसे के विचार से गुजरते हैं। चौबीस घंटे घूम-फिरकर काम मन में | | इंद्रियां विजित होती चली जाती हैं, हारती चली जाती हैं। वह जीतता सरकता रहता है।
चला जाता है; उतना रिकवर करता चला जाता है; उतनी जमीन चिंतन तो किया है, ध्यान नहीं किया। चिंतन का अर्थ है, जो | वापस लेता चला जाता है। उतनी-उतनी इंद्रिय अपनी ताकत छोड़ती भीतर वासना घटती है, उसके साथ ही बह जाते हैं; दूर खड़े होकर चली जाती है, जहां-जहां ध्यान की किरण प्रवेश कर जाती है। देख नहीं पाते। मन में उठा काम का विचार, तो आप भी काम के | क्रोध को जिसने जान लिया, वह क्रोध नहीं कर सकता। काम विचार के साथ आइडेंटिफाइ
को जिसने जान लिया. वह कामातर नहीं हो सकता। लोभ को आप ही काम हो जाते हैं, यू बिकम दि सेक्स। फिर ऐसा नहीं होता | | जिसने जान लिया, वह लोभ में नहीं पड़ सकता। अहंकार को कि काम की ऊर्जा उठी है, मैं दूर खड़ा देखता हूं, क्या है? | जिसने पहचाना, वह अहंकार के बाहर है। करना क्या है?
एक वैज्ञानिक प्रयोगशाला में प्रवेश करता है, परीक्षण करता, | | लड़ना नहीं है, जानना है। रोज आता है क्रोध, परमात्मा की बड़ी खोज करता, प्रयोग करता, निरीक्षण करता, दूर खड़े होकर देखता, | | कृपा है। आता है इसलिए, कि करो ध्यान। उठता है काम, बड़ी क्या हो रहा है? अगर वैज्ञानिक जो कर रहा है, उसके साथ | अनुकंपा है प्रभु की। उठता है इसलिए, कि करो ध्यान। जिंदगी में आइडेंटिफाइड हो जाए...जैसे एक वैज्ञानिक एक केमिकल पर, | | लाख मौके मिलते हैं। लेकिन हम चूकने में बड़े कुशल हैं! हम एक रासायनिक द्रव्य पर खोज कर रहा है। वह खुद को ही समझ | | चूकते ही चले जाते हैं। हजार बार रखा जाता है हमारे सामने निशान ले कि मैं ही रासायनिक द्रव्य हं, तो हो गई खोज! फिर कभी नहीं लगाने के लिए, लेकिन हम धनुष-बाण ही नहीं उठाते। हम चूकते होगी। वह आदमी ही खो गया, जो खोज कर सकता था। केमिकल ही चले जाते हैं। पूरी जिंदगी-एक जिंदगी नहीं, अनंत जिंदगी