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गीता दर्शन भाग-2
घबड़ाया। और उसने कहा, देखो महाशय, जो कुछ सुना है, उसे तत्काल भूल जाओ। वह मैंने कहा ही नहीं। टाल्सटाय ने कहा, आप क्या कह रहे हैं? अगर आपने नहीं कहा, तो किस चीज को भूलने के लिए कह रहे हैं। उसने कहा, ठीक से समझ लो। ये शब्द जो मैंने यहां कहे, भूल जाओ। समझो कि मैंने कहे ही नहीं। और अगर कहीं इन शब्दों को मैंने सुना कि तुमने किसी को बताया, तो अदालत में मानहानि का मुकदमा चलाऊंगा। टाल्सटाय ने कहा, गजब कर रहे हैं आप! अभी आप कह रहे थे कि मुझसे बड़ा पापी और कोई भी नहीं !
टाल्सटाय को पता नहीं, पेंडुलम घूम गया। गया ! बात खतम हो गई। वह आदमी मुकदमा चलाने को उत्सुक है; अभी प्रायश्चित्त करने को उत्सुक था ! क्या हो रहा है?
ऐसा विषम मन कभी भी आत्मा में प्रवेश नहीं कर सकता । आत्मा के प्रवेश की जो पतली-सी द्वार - रेखा है - कहता हूं द्वार-रेखा, डोर लाइन; दरवाजा तो बहुत बड़ा होता है; रेखा मात्र है प्रवेश की वह संतुलन है, वह बैलेंस है, समत्व है।
जहां चित्त न बाएं होता, न दाएं; मध्य में होता है; इतने मध्य में होता है कि न तो हम कह सकते दाएं है, न हम कह सकते बाएं है; न हम कह सकते पक्ष न विपक्ष में; न हम कह सकते घृणा में, न प्रेम में; न हम कह सकते क्षमा में, न क्रोध में; न हम कह सकते परिग्रह में, न अपरिग्रह में; न राग में, न विराग में। जहां व्यक्ति इतने बीच में खड़ा है कि न विरागी है, न रागी है, उस समत्व बुद्धि के क्षण में योग संसिद्धि होती है। या इस क्षण में बुद्धि समत्व को उपलब्ध होती है। बस, उसी क्षण में छलांग लग जाती है और व्यक्ति उस अपरिसीम में डूब जाता है।
ऐसी संसिद्धि से शुद्ध हुआ अंतःकरण! समत्व में शुद्ध हो जाता है सब, क्योंकि अशुद्धि अति से आती है। अति अशुद्धि है, एक्सट्रीम इज़ दि इंप्योरिटी । एक अति एक तरह की अशुद्धि है, दूसरी अति दूसरी तरह की अशुद्धि है। अनति, एक्सट्रीम नहीं, मध्य, जिसको बुद्ध ने कहा, मज्झिम निकाय, दि मिडिल पाथ, बीच का मार्ग, न इस ओर, न उस ओर, जहां ठीक बीच में...। एक छोटी-सी कहानी और अपनी बात मैं पूरी करूं । बुद्ध के पास एक युवक दीक्षित हुआ । संगीत में कुशल था । अदभुत थी वीणा की उसकी सामर्थ्य | लेकिन आया । था सम्राट; भोग में पला; भोग में जीया। आया तो दूसरी अति पर चला गया। दूसरे भिखारी, दूसरे भिक्षु, दूसरे साधु-संन्यासी रास्ते पर चलते,
तो वह कांटों में चलता । दूसरे एक ही वस्त्र पहनते, तो वह नंगा | खड़ा होता। दूसरे एक बार भोजन करते, तो वह दो दिन में एक बार भोजन करता ।
छः महीने में सूखकर हड्डी हो गया। पैर घाव से भर गए। चेहरा पहचानना मुश्किल हो गया। सुंदर थी काया उसकी, बड़ी स्वर्ण काया थी। आया था, तो कोई भी मोहित हो जाए, ऐसा शरीर था। अब तो देखकर विरक्ति होती, विकर्षण होता । कोई पास आता, तो बदबू आती!
भिक्षुओं ने बुद्ध से कहा, क्या कर रहा है तुम्हारा वह साधक ? वह अपने को मारे डाल रहा है! हम तो सोचते थे, इतने सुख में | पला! कहते हैं, उसके घर में कभी वह गद्दियों से नीचे नहीं उतरा; मखमल के कालीनों से नीचे नहीं चला। कहते हैं, कभी उसने पैर पृथ्वी पर नहीं रखा; धूल नहीं छुई कभी उसके पैरों को सुनते हैं, उसके घर में गुलाब के जल से स्नान करता था । सुनते हैं, उसके घर में वायु सदा सुवासित रहती थी दूर-दूर से आए इत्रों से। कहते हैं लोग, कथाएं हैं कि सीढ़ियां चढ़ता था, तो नग्न स्त्रियां सीढ़ी के किनारे खड़ी रहतीं रेलिंग की तरह; उन पर हाथ रखकर कंधे पर, | ऊपर जाता था। ऐसा यह आदमी, इतना कष्ट झेलता है! असंभव घटित होता है !
बुद्ध ने कहा, नहीं भिक्षुओ! संभव घटित हो रहा है। जो आदमी एक अति पर रुग्ण होता, वह अक्सर दूसरी अति पर पुनः रुग्ण हो | जाता है। मध्य में रुकना मुश्किल है — पेंडुलम की भांति ।
पर उन्होंने कहा, अब वह मर जाएगा, जी न सकेगा। बिलकुल सूखकर कांटा हो गया है। पहचानना मुश्किल है। पास खड़े होने में बदबू आती है। स्नान नहीं करता है वह । कहता है, स्नान करूंगा, तो शरीर की सज्जा हो जाएगी। वह जो इत्रों से नहाता था, अब साधारण गांव के गंदे डबरे में भी नहीं नहाता है। कहता है, शुद्धि हो जाएगी शरीर की । शरीर को सजाना क्या ? शरीर के सौंदर्य | का प्रयोजन क्या ?
बुद्ध उसके पास गए सांझ और कहा, भिक्षु श्रोण! मैंने सुना कि तू जब सम्राट था, तो तू वीणा बजाने में बड़ा कुशल था। एक प्रश्न पूछने आया हूं। वीणा के तार अगर बहुत ढीले हों, तो संगीत पैदा होता है ? भिक्षु श्रोण ने कहा, पागल हुए हैं आप ! आप जैसा ज्ञानी और ऐसे सवाल पूछता ! वीणा के तार ढीले हों, तो संगीत पैदा कैसे होगा? टंकार ही पैदा नहीं होती। तो बुद्ध ने कहा, तार बहुत कसे हों, तब भिक्षु श्रोण संगीत पैदा हो सकता है? उसने कहा, नहीं;
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