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________________ गीता दर्शन भाग-20 लगेगा, है। कोई पूछेगा, आत्मा कहां है? यंत्र की तरह हाथ छाती | नहीं, अनात्मा, अनत्ता, नो सेल्फ! यह आदमी तो खतरनाक है; पर चला जाएगा, यहां। इन्हें कुछ भी पता नहीं है कि ये कहां हाथ | यह आत्मा को इनकार करता है! रख रहे हैं। वहां क्या है, उसका पता नहीं है। जो हाथ रख रहे हैं, बद्ध कह रहे थे बड़ी गहरी बात। वे कह रहे थे कि जब आत्मा उस हाथ में कौन है, उसका पता नहीं है। जो उत्तर दे रहा है, वह का अनुभव होता है, तो ऐसा नहीं लगता कि मेरी है; इसलिए कौन है, उसका पता नहीं है। कुछ भी इन्हें पता नहीं है। आत्मा कहना ठीक नहीं। ऐसा नहीं लगता कि यह मैं हूं; इसलिए ___ मैं निरंतर सोचता हूं कि इन बच्चों में और हमारे बूढ़ों में कोई मैं का कोई भी शब्द जोड़ना ठीक नहीं। ऐसा ही लगता है, सब बहुत फर्क है? उम्र का फर्क है। और उम्र के फर्क की वजह से आकाश की भांति, आंगन की भांति नहीं। घर के आंगन की भांति याददाश्त धुंधली हो जाती है कि बचपन में हमने याद की थीं बातें। नहीं, चहारदीवारी में बंद: आकाश की भांति. कोई दीवाल नहीं. वह याद की थीं. जानी नहीं थीं। बढापे तक उनको दोहराते चले कोई सीमा नहीं। जाते हैं। तो बुद्ध ने कहा, आत्मा क्या कहूं! कहता हूं, अनात्मा है, नो ऐसे नहीं होगा। इतना सुगम नहीं है। धर्म गणित की भांति नहीं | | सेल्फ। है ही नहीं सेल्फ वहां। बड़ी अजीब बात है! बुद्ध कहते हैं, है कि सीख लिया, दो और दो चार। धर्म फिजिक्स की भांति, | इन दि नोइंग आफ दि सेल्फ, देयर इज़ नो सेल्फ, आत्मा के भौतिकशास्त्र की भांति नहीं है कि सीख लिया, ग्रेविटेशन क्या है, | अनुभव में आत्मा है ही नहीं। गरुत्वाकर्षण क्या है: कि न्यटन के कानन क्या हैं कि आइंस्टीन । ठीक कहते हैं। एकदम ठीक कहते हैं। वहां कोई मैं का भाव नहीं की रिलेटिविटी, सापेक्षता क्या है। सीख लिया, पढ़ लिया और रह जाता है। आत्मा यानी परमात्मा। जैसे ही किसी ने जामा कि मैं सीख गए और जान गए। धर्म विज्ञान, साहित्य, काव्य, गणित, | क्या हूं, वैसे ही उसने जाना कि मैं सब हूं। भाषा–इनमें से किसी की भांति नहीं है। ___ जैसे ही बूंद ने पहचाना कि मैं कौन हूं, कि बूंद ने समझा कि मैं धर्म है प्रेम की भांति। वही जानता है, जो करता है। वही जानता | सागर हूं। जब तक बूंद ने नहीं जाना कि मैं कौन हूं, तब तक वह है, जो धर्म हो जाता है। और कोई उपाय नहीं है। इसलिए धर्म के | बूंद है। जिस दिन जाना कि मैं कौन हूं, उस दिन वह सागर है। हम कोई विश्वविद्यालय खड़े नहीं कर सकते हैं। हिंदू विश्वविद्यालय | क्योंकि एक छोटी-सी बूंद में पूरा का पूरा सागर मौजूद है। एक खड़ा कर सकते हैं, मुस्लिम विश्वविद्यालय खड़ा कर सकते हैं। धर्म छोटी-सी बूंद के गुणधर्म को हम समझ लें, पूरे सागर का गुणधर्म का विश्वविद्यालय खड़ा नहीं कर सकते। क्योंकि धर्म का | समझ में आ जाता है। छोटी-सी बूंद मिनिएचर ओशन है, विश्वविद्यालय तो जीवन ही है। और यही जीवन नहीं, जो बाहर | छोटा-सा सागर। कहीं सागर छोटे हुए! सागर तो पूरा है। दिखाई पड़ता है; इससे भी ज्यादा वह जीवन, जो भीतर डूबा है और | छोटा-सा दिखाई पड़ता है। है पूरा का पूरा। दिखाई नहीं पड़ता। उसको ही जान लेना ज्ञान है। और उस ज्ञान के | आत्मा का जानना यानी परमात्मा का जानना है। बाद जो फलित होता है अनुभव, वह आत्मा है। इसलिए ज्ञान सर्वोच्च है, क्योंकि उसी से हम सर्वोच्च शिखर एक और अंतिम बात, कि आत्मा का जब अनुभव होता है, तो परमात्मा को स्पर्श कर पाते हैं। अज्ञान निकृष्ट है, क्योंकि उसी के ऐसा नहीं होता कि मेरी है। आत्मा शब्द थोड़ा-सा गलत है। उसमें | कारण हम सर्वोच्च के प्रति पीठ कर पाते हैं। अपने का खयाल पैदा होता है। आत्मा यानी मेरी, अपनी, स्वयं एक प्रश्न और ले लें। की! आत्मा शब्द थोड़ा-सा गलत है। शब्द तो सभी थोड़े-से गलत होंगे ही; क्योंकि सत्य किसी शब्द में बंधता नहीं, अटता नहीं। इसलिए बुद्ध ने तो इस गलत शब्द की वजह से कहना शुरू प्रश्नः भगवान श्री, इस श्लोक में कहा गया है कि किया, आत्मा नहीं, अनात्मा है। इसलिए बुद्ध को बिलकुल ही नहीं योग संसिद्धि अर्थात समत्वबुद्धिरूप योग के द्वारा समझा जा सका। आत्मवादी भी नहीं समझ सके। वादी तो समझेगा | अच्छी प्रकार शुद्ध अंतःकरण का पुरुष ज्ञान को आत्मा क्या! वादी सदा अज्ञानी होता है। ज्ञानी वादी नहीं होता। आत्मवादी | में अनुभव करता है। कृपया योग संसिद्धि के अनुवाद, भी नहीं समझ सके। उन्होंने कहा, अरे बुद्ध कहते हैं कि आत्मा समत्वबुद्धिरूप योग का अर्थ स्पष्ट करें। 236]
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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