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________________ गीता दर्शन भाग-20 नहीं। जिसने अपने को जान लिया, उसने सब जान लिया। | ही अर्थ रखता है। टक्कर होगी। थोड़ी-बहुत देर में लालटेन __महावीर ने कहा है, जाना जिसने स्वयं को, जाना उसने सब। बुझेगी। अंधे को पता कैसे चले? स्वयं को जाना, तो सर्वज्ञ हुआ। सभी कुछ जान लिया। क्यों? | ___ और मैं अगर उस मित्र की जगह होता, जिसने अंधे को लालटेन इतना बड़ा वक्तव्य! ऐसा कैटेगोरिकल, ऐसा निरपेक्ष वक्तव्य, कि | | दी, तो अंधे को लालटेन कभी न देता। क्योंकि अंधे के हाथ में जिसने अपने को नहीं जाना, उसने कुछ भी नहीं जाना। निश्चय ही, | लालटेन अगर न होती, तो मैं मानता हूं कि वह उस दिन न क्योंकि जानने की पहली किरण स्वयं से अग | टकराता। आप कहेंगे, कैसे? इसलिए न टकराता कि अंधे के हाथ से नहीं टूट सकती। | में लालटेन न होती, तो वह टटोल-टटोलकर, सम्हाल-सम्हालकर, जो आदमी भीतर ही अंधेरा है. जिसके अपने ही घर का दीया चिल्ला-चिल्लाकर. आवाज दे-देकर चलता। लालटेन की वजह से बुझा है, जिसको अपना बुझा दीया ही जिंदगी बनी है, अपना दीया चला अकड़कर कि लालटेन है हाथ में; अब कौन टकराने वाला है! जलाने का स्मरण भी जिसे नहीं आया अब तक, उसे कहीं और टक्कर हो गई। प्रकाश कहां हो सकता है? उसके हाथ में भी प्रकाश दे दो, तो अज्ञानी के हाथ में सारे जगत का ज्ञान दे दें, तो खतरा ही है। बेमानी है। | अज्ञानी के हाथ में ज्ञान न हो, वही बेहतर। आज यही तो हुआ है मैंने सुना है, एक रात एक अंधा एक घर में मेहमान था। लौटने | | सारी दुनिया में। विज्ञान ने ज्ञान की राशि लगा दी अज्ञानी के हाथ लगा। अमावस की रात। घर से बाहर निकला। मित्र ने कहा, | | में। परिणाम में हिरोशिमा, नागासाकी! परिणाम में तीसरा महायुद्ध लालटेन साथ लेते चले जाएं। रास्ता बहुत अंधेरा है। अमावस की | | किसी भी दिन! अज्ञानी के हाथ में ताकत है। . रात! अंधे ने कहा, मजाक करते हैं! भूल गए, मैं अंधा हूं। मुझे तो | | नादिरशाह ने एक दफा एक ज्योतिषी से पूछा कि मैंने एक किताब दिन भी अमावस ही है। क्या फर्क पड़ता है? पर मित्र भी साधारण पढ़ी है-धर्मग्रंथ! उसमें लिखा है, ज्यादा देर सोना अच्छा नहीं। न था। मजाक में बात न कही थी: अर्थ था, अभिप्राय था। कहा | लेकिन मैं सुबह दस बजे सोकर उठता हूं। आपका क्या खयाल है? कि वह मैं जानता हूं। अंधे की मजाक करूं, इतना अंधा मैं नहीं। | किताब ठीक कि मैं ठीक? ज्योतिषी ने कहा, किताब ठीक नहीं है; इतना कठोर मत समझो। नहीं, इसलिए नहीं कि तुम्हें प्रकाश में आप ही ठीक हैं। और मैं आपसे प्रार्थना करता हूं कि आप चौबीस ' दिखाई पड़ने लगेगा, इसलिए नहीं कहता, लालटेन ले लो। घंटे सोए रहें, तो बहुत अच्छा है! नादिरशाह ने कहा, तुम्हारा इसलिए कहता हूं कि अंधेरे में कोई और तुमसे न टकरा जाए। हाथ | | मतलब? हिम्मत का आदमी रहा होगा वह ज्योतिषी। उसने कहा, में रहेगा प्रकाश, तो दूसरे को टकराने में थोड़ी असुविधा पड़ेगी। | | मेरा मतलब यह कि किताब अच्छे आदमियों को ध्यान में रखकर हालांकि प्रकाश रहते भी जिसको टकराना है, वह टकराता है; फिर | | लिखी गई है, बुरे आदमियों को ध्यान में रखकर नहीं। अच्छा आदमी भी थोड़ी सुविधा कम होगी। थोड़ी असुविधा, अड़चन आएगी। जितना जागे, उतना अच्छा; बुरा आदमी जितना सोए, उतना अच्छा। इसलिए लेते चले जाओ। | क्योंकि वह जितनी देर सोए, उतनी देर दुनिया के लिए वरदान है। अंधे को भी कठिन हुआ। अब कोई उत्तर भी न था। ले ली | | जितनी देर जागे, उतनी देर उपद्रव; होगा ही कुछ! लालटेन और चल पड़ा। और दस कदम भी नहीं चला होगा, नादिरशाह जागे, उपद्रव न हो, ऐसा नहीं हो सकता। अज्ञानी के सड़क के किनारे पर कोने पर पहुंचा ही था कि भड़ाम! कोई उससे | | हाथ में अज्ञान ही अच्छा है; अज्ञानी के हाथ में ज्ञान खतरनाक है। आकर टकरा गया। पूछा अंधे ने, क्या कर रहे हैं? मैं नहीं गलत | | ज्ञानी के हाथ में अज्ञान भी खतरनाक नहीं है, ज्ञान की तो बात ही कर पाया अपने मित्र को, आप किए दे रहे हैं! दिखाई नहीं पड़ती। | क्या है! रोशनी? हाथ में लालटेन है! दूसरे आदमी ने कहा, क्षमा करें! यहां ज्ञान की जो बात कृष्ण कह रहे हैं, वह आत्मज्ञान है। स्वयं लालटेन बुझ गई है, आपको पता नहीं। का ज्ञान प्राथमिक, फाउंडेशनल, मूलभूत ज्ञान है। उस ज्ञान को पा अंधे को पता भी कैसे चले कि लालटेन बन गई। अंधे के हाथ लेने से. कष्ण कहते हैं. आत्मा में प्रवेश हो जाता है। में लालटेन जैसा अर्थ रखती है, ऐसा ही स्वयं का जिसके प्रति यह आखिरी बात भी समझ लेनी जैसी है। अज्ञान है, उसके हाथ में जगत का सारा ज्ञान भी हो, तो बस ऐसा | आत्मा में प्रवेश हो जाता है। आत्मा से एकता हो जाती है। 234
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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