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ॐ गीता दर्शन भाग-26
और पीड़ित होता ही है। और दुख में उठे आंसू जितनी गंदगी और | कौन उठाए? अपवित्रता लाते हैं, उतना और कुछ भी नहीं लाता। | सुना है मैंने, एक आदमी रो रहा था रास्ते पर खड़ा हुआ। और ध्यान रखें, आंस आनंद में भी उठ सकते हैं। लेकिन आनंद के! | u
एक फकीर से उसने कहा कि मझे तो भगवान उठा ही ले, तो आंसू बड़े पवित्र होते हैं, उनकी सुवास की कोई सीमा नहीं है। दुख | | अच्छा। मेरे पास कुछ भी नहीं है। आज सुबह की चाय पीने के में भी आंसू गिरते हैं, तब उनकी अपवित्रता, उनकी गंध का कोई | लिए पैसे भी नहीं हैं। उस फकीर ने कहा, घबड़ा मत। मैं समझता हिसाब नहीं है। आंसू वही होते हैं; भीतर का चित्त बदला होता है। | हूं, तेरे पास बहुत कुछ है; मैं बिक्री करवा देता हूं। उसने कहा, मेरे
वासना, कामना, इच्छा कीड़ा है, जो भीतर गंदगी को पैदा करता पास कुछ भी नहीं है इस चीथड़े के सिवा, जो मेरे शरीर पर अटका है। हम सब हजार इच्छाओं में जीते हैं, हजार तरह की गंदगियों में हआ है। इसकी क्या बिक्री होगी, खाक! अगर होती हो, तो मैं जीते हैं।
| बेचने को तैयार हूं। फकीर ने कहा, तू मेरे साथ आ। ज्ञान की स्वच्छ करने की शक्ति यही है कि ज्ञान के उतरते ही ___ वह उसे सम्राट के पास ले गया गांव के। दरवाजे पर उसने कहा इच्छा तिरोहित होती है। इच्छा की जगह अस्तित्व शुरू होता है। | कि मित्र, पहले तुझे बता दूं; ऐसा न हो कि बाद में तू बदल जाए। डिजायरिंग की जगह, एक्झिस्टेंशियल होता है आदमी। फिर मांगता दाम अच्छे मिल जाएंगे। लेकिन बेचने की तैयारी है? उसने कहा, नहीं कि क्या मिले; जो मिला है, उसे परम प्रभु को धन्यवाद देकर तू पागल तो नहीं है! मेरे पास कुछ है नहीं, जो बेचने योग्य हो।
चुपचाप स्वीकार करता है। दौड़ता नहीं है उसका चित्त कल के और इस महल में इन चीथड़ों को खरीदेगा कोई? चीथड़ों की वजह लिए; आज काफी है, पर्याप्त है। आज ही मिल गया है, यही क्या से मुझे भी निकालकर वे बाहर फेंक देंगे। भीतर प्रवेश भी मुश्किल कम है। आज हूं, इतनी भी तो मेरी पात्रता नहीं है। जो मिला, वह है। है क्या मेरे पास? उस फकीर ने कहा कि देख, बाद में बदल मेरी योग्यता कहां है?
| मत जाना; दाम अच्छे मिल जाएंगे। वह आदमी हंसने लगा। उसने लेकिन कोई हममें से नहीं सोचता यह कि जो हमें मिला, उसकी | कहा कि व्यर्थ मेरी सुबह खराब हुई तुम्हारे साथ आकर। तुम पागल हमारी योग्यता है? अगर मुझे आंखें न मिली होती, तो क्या मैं कह | मालूम पड़ते हो! फकीर ने कहा, तेरी मर्जी। अंदर चल! सकता था कि मेरी योग्यता है, मुझे आंखें दो! अगर मेरे पास हाथ सम्राट के पास जाकर कहा कि यह आदमी में ले आया। इस न होते, तो क्या था प्रमाण मेरे पास कि मेरी योग्यता है, मुझे हाथ | आदमी की दोनों आंखें आप खरीद लें। क्या दाम दे देंगे? आदमी दो! अगर मैं जीवित ही न होता, तो क्या था उपाय कि मैं कहता कि | घबड़ाया। उसने कहा, आंख! तुम बात क्या कर रहे हो? सम्राट ने मैं जीवन का अधिकारी हूं, मुझे जीवन दो! जो हमें मिला है, उसका | कहा, लाख-लाख रुपया मैंने तय कर रखा है; जो भी आदमी आंख हमें कोई हिसाब नहीं है, उसका कोई अनुग्रह नहीं है। क्योंकि | बेचे। वजीर को कहा, दो लाख रुपए ले आओ। और उस आदमी वासना उसे दिखाई ही नहीं पड़ने देती, जो है। वासना कहती है वह, से कहा, सौदे में कोई तुम्हें एतराज तो नहीं है? कम तो नहीं हैं? जो नहीं है।
वह भिखारी एकदम भिखारी न रहा, एक क्षण में। क्योंकि वासना वैसी ही है, जैसे कभी दांत टूट जाए, तो जीभ वहीं-वहीं| | भिखारी था वह टूटे हुए दांत पर जीभ मारने की वजह से। भिखारी जाती है, जहां दांत नहीं है। सब दांतों को छोड़ देती है। दिनभर वहीं | न रहा। क्योंकि अब उसकी उन दांतों पर जीभ पड़ी, जो थे। उसने कुरेदती चली जाती है, जहां दांत नहीं है। उस जीभ से पूछो कि तू | कहा, आप बात क्या करते हैं? आंखें मुझे बेचनी नहीं हैं। उस पागल हो गई। दांत इतने दिन था, तब कभी तूने छुआ भी नहीं। आज | | फकीर ने कहा, दो लाख मिलते हैं पागल! तू कहता था, कुछ भी तुझे क्या हो गया है? खाली गड्ढे को छूने में तुझे क्या हो रहा है? जो | मेरे पास नहीं है। भगवान को कोस रहा था। सुबह-सुबह दो लाख नहीं है, उसमें बड़ा रस है। जो है, उससे कोई प्रयोजन नहीं है। | का सौदा करवाए देते हैं। तेरी ज्यादा मर्जी हो, तो ज्यादा बोल। कुछ
वासना भी टूटे दांत को छूती रहती है दिन-रात, जो नहीं है। ज्यादा भी मिल सकता है। उस आदमी ने कहा कि मुझे बाहर जाने और बहुत कुछ है, जो नहीं है। अनंत है विस्तार जीवन का। सभी का रास्ता बताओ। मुझे आंख बेचनी नहीं है। उस फकीर ने कहा, कुछ मेरे पास नहीं है। यद्यपि मेरे पास जो है, वह सभी कुछ से | लेकिन लाखों की आंख तेरे पास हैं, कभी तूने भगवान को धन्यवाद जरा भी कम नहीं है। लेकिन उसको देखे कौन? उसकी तरफ नजर | | दिया है?
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