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________________ गीता दर्शन भाग-28 इसीलिए तो कामवासना इतनी प्रगाढ़ है, आपके वश में नहीं है। यह मैं अज्ञान का गढ़ है। ज्ञान की किरण, होश का क्षण, इतनी प्रगाढ़ है, इतनी बायोलाजिकल फोर्स है, इतना जैविक भीतर | जागरूकता की एक झलक इस पूरे गढ़ को गिरा देती है। यह ताश से धक्का है कि आपके वश में नहीं है। इसीलिए तो ब्रह्मचर्य बड़ी | के पत्तों का गढ़ है। यह पत्थरों का नहीं है, नहीं तो ज्ञान की किरण से बड़ी चीज समझी गई है। इसे न गिरा पाए। यह ताश के पत्तों का घर है। जरा-सा झोंका हवा ब्रह्मचर्य के बड़े होने का और कोई मतलब नहीं है। इतना ही का, और सब बिखर जाता है। मतलब है कि ब्रह्मचर्य को केवल वही उपलब्ध हो सकता है, जो यह अहंकार बिलकुल ताश के पत्तों का घर है। जरा-सा धक्का कर्ता के भाव से मक्त हो गया हो। क्योंकि कर्ता से तो प्रकति बाप ज्ञान का, और सब गिरकर जमीन पर पड़ जाता है। वर्षों की, जन्मों बनने का, मां बनने का काम ले ही लेगी। वह अज्ञानी पक्का है। की मेहनत हो भला, लेकिन है ताश के घर का खेल। उसको तो भीतर से धक्का दे दिया जाएगा और उससे काम ले ज्ञान क्या करता है? ज्ञान क्या है? लिया जाएगा। | ज्ञान है स्मरण सत्य का, अज्ञान है विस्मरण सत्य का। अज्ञान है पशुओं की जिंदगी में अगर देखें, कीड़े-मकोड़ों की जिंदगी में | | एक फार्गेटफुलनेस, एक विस्मृति। ज्ञान है एक स्मरण। अगर देखें, पौधों की जिंदगी में अगर देखें, तो सभी पैदा कर रहे हैं; स्मरण सत्य का जैसे ही होता है, वैसे ही अंधेरे में, अज्ञान में सभी बच्चे पैदा कर रहे हैं। लेकिन कम से कम उनको शायद पता पाली गई सारी धारणाएं गिर जाती हैं। गिर ही जाएंगी। जैसे रात के नहीं है कि वे कर्ता हैं। आदमी को यह खयाल है कि वह कर्ता है। अंधेरे में हमने सपने देखे अ सुबह के जागरण पर सब खो गएं। बाप बेटे से कहता है, मैंने तुझे जन्म दिया। सारा जगत हंसता | ऐसे ही। होगा अगर सुनता होगा कि पागल हुए हो! जन्म तुमने दिया? या इसलिए कृष्ण कहते हैं कि ज्ञान की अग्नि में समस्त कर्म जल कि जन्म की प्रक्रिया में तुम सिर्फ उपकरण बनाए गए, साधन बनाए जाते हैं अर्जुन! तू चिंता ही मत कर कर्मों की; तू चिंता कर कर्ता की। गए? पैदा होना चाहता था कोई। जगत, अस्तित्व उसे पैदा करना पूरा जोर कृष्ण का इस बात का है, कर्म की छोड़ फिक्र, फिक्र चाहता था; आप सिर्फ उपकरण बने हैं, आप सिर्फ माध्यम बने हैं। कर कर्ता की। अगर कर्ता है तू, तो फिर कर्म तुझे बनते ही चले लेकिन माध्यम अकड़कर कहता है, मैंने पैदा किया! जाएंगे। और अगर कर्ता नहीं है तू, तो फिर चिंता छोड़। फिर झील' बुद्ध ने बारह वर्ष बाद घर लौटकर जब गांव के द्वार से प्रवेश पर उड़े हुए बगुलों की कतार की भांति कुछ भी तुझ पर बनेगा नहीं। किया, तो बुद्ध के पिता ने कहा, मैंने ही तुझे जन्म दिया। बुद्ध ने यह महायुद्ध जो तेरे सामने खड़ा है, इससे भी गुजर; कर्ता भर मत हा, क्षमा करें। आप नहीं थे, तब भी मैं था। मेरी यात्रा बहुत हो। फिर ये गिरी हुई हजारों लाशें भी, तेरे ऊपर खून का एक दाग पुरानी है। आपसे मेरा मिलन तो अभी-अभी हुआ, कुछ ही वर्ष न छोड़ जाएंगी। पहले। मेरी यात्रा बहुत पुरानी है आपसे। आपकी भी यात्रा उतनी इससे बड़ी हिम्मत का वक्तव्य मनुष्य-जाति के इतिहास में ही पुरानी है। आपने मुझे जन्म दिया, ऐसा मत कहें; ऐसा ही कहें दूसरा नहीं है। सच ए ग्रेट एंड बोल्ड स्टेटमेंट! कृष्ण कहते हैं, ये कि आप एक चौराहे बने, जिससे मैं गुजरा और पैदा हुआ। लेकिन लाखों लोग, इनकी लाशें पट जाएं; अगर तू कर्ता नहीं है, तो छोड़ मैं गुजरा और पैदा हुआ, ऐसा भी कहना, बुद्ध ने कहा, ठीक नहीं; फिक्र, खून का एक दाग भी तेरे ऊपर नहीं पड़ेगा। और अगर तू गुजारा गया और पैदा किया गया। | कर्ता है, तो तू शून्य में से भी गुजर जा, तो भी तू कर्मों से भर जाएगा जैसे कोई चौराहे से गुजर जाए और चौराहा कहे कि मैंने ही तुम्हें और लद जाएगा। पैदा किया; मेरे चौराहे से तुम गुजरे थे, अन्यथा हो न सकते थे! कर्ता अगर सोया भी रहे, तो भी कर्म अर्जित करता है; नींद में ऐसे ही मां-बाप एक चौराहे से ज्यादा नहीं हैं, जिनसे बच्चा पैदा भी कर्म करता है। और अगर अकर्ता जागकर युद्धों में भी उतर होता है। जाए, तो भी कर्म फलित नहीं होता है। कर्ता की मृत्यु कर्म का अनंत हैं शक्तियां, जिनके कारण यह घटना घटती है। छोटी से समाप्त हो जाना है। छोटी घटना अनंत चीजों पर निर्भर है। मूलतः तो अनंत परमात्मा | इस अर्थ में ज्ञान की अग्नि समस्त कर्मों का विनाश बन जाती है। पर निर्भर है। लेकिन हम कहते हैं कि मैं...। 1230]
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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