________________
गीता दर्शन भाग-2
अनंत वर्तुल है, विसियस सर्किल है, दुष्टचक्र है; इसके बाहर आप नहीं सकते। अगर पुण्य से पाप को काटने की कोशिश की, तो पुण्य करने में पाप हो जाएगा। फिर उस पाप को काटने की पुण्य से कोशिश की, तो फिर उस पुण्य करने में पाप हो जाएगा। हर बार पाप को काटना पड़ेगा। हर बार पुण्य से काटेंगे। पुण्य नए पाप करवा जाएगा। यह वर्तुल कभी अंत नहीं होगा। यह सर्किल विसियस है।
इसलिए नैतिक व्यक्ति कभी मुक्त नहीं हो सकता। नैतिक दृष्टि कभी मुक्ति तक नहीं जा सकती। नैतिक दृष्टि तो चक्कर में ही पड़ी रह जाती है।
कृष्ण एक बहुत ही और दृष्टि की बात कर रहे हैं। और जो भी जानते हैं, वे वही बात करेंगे। कृष्ण कहते हैं, अर्जुन, तू अगर सब पापियों में भी सबसे बड़ा पापी है, दि ग्रेटेस्ट सिनर; अस्तित्व में जितने पापी हैं, उनमें तू सबसे बड़ा पापी है, तो भी ज्ञान की एक घटना तेरे सब पापों को क्षीण कर देगी। क्या मतलब हुआ इसका ? इसका मतलब यही हुआ कि पाप की कोई सघनता नहीं होती, पाप की कोई डेंसिटी नहीं होती । पाप है अंधेरे की तरह। एक घर में अंधेरा है हजार साल से, दरवाजे बंद हैं. ताले बंद हैं। हजार साल पुराना अंधेरा है। क्या आप दीया जलाएंगे, तो अंधेरा कहेगा, इतने से काम नहीं चलता! आप हजार साल तक दीए जलाएं, तब मैं कदूंगा !
नहीं; आपने दीया जलाया कि हजार साल पुराना अंधेरा गया। वह यह नहीं कह सकता है कि मैं हजार साल पुराना हूं। वह यह भी नहीं कह सकता हजार सालों में बहुत सघन, कनडेंस्ड हो गया हूं, इसलिए दीए की इतनी छोटी-सी ज्योति मुझे नहीं तोड़ सकती !
हजार साल पुराना अंधेरा और एक रात का पुराना अंधेरा एक ही बराबर डेंसिटी के होते हैं। या कहना चाहिए कि नो डेंसिटी के होते हैं; उनमें कोई सघनता नहीं होती। अंधेरे की पर्तें नहीं होतीं; क्योंकि अंधेरे का कोई अस्तित्व नहीं होता। बस, आज आपने जलाई काड़ी, अंधेरा गया - अभी और यहीं ।
हां, अगर कोई अंधेरे को पोटलियों में बांधकर फेंकना चाहे, तो फिर मारेलिस्ट का काम कर रहा है, नैतिकवादी का । वह कहता है, जितना अंधेरा है, उसको बांधो टोकरी में, बाहर फेंक कर आओ। फेंकते रहो टोकरी बाहर और भीतर, अंधेरा अपनी जगह रहेगा । आप चुक जाओगे, अंधेरा नहीं चुकेगा।
पाप को पुण्य से नहीं काटा जा सकता, क्योंकि पुण्य भी सूक्ष्म
पाप के बिना नहीं हो सकता। पाप को तो सिर्फ ज्ञान से काटा जा सकता है, क्योंकि ज्ञान बिना पाप के हो सकता है।
ध्यान रखें, पाप को पुण्य से नहीं काटा जा सकता, क्योंकि पुण्य बिना पाप के नहीं हो सकता है। पाप को सिर्फ ज्ञान से काटा जा सकता है, क्योंकि ज्ञान बिना पाप के हो सकता है। ज्ञान कोई कृत्य | नहीं है कि जिसमें पाप करना पड़े। ज्ञान अनुभव है। कर्म बाहर है, ज्ञान भीतर है। ज्ञान तो ज्योति के जलने जैसा है। जला, कि सब अंधेरा गया।
फिर तो ऐसा भी पता नहीं चलता कि मैंने कभी पाप किए थे । | क्योंकि जब मैं ही चला जाए, तो सब खाते-बही भी उसी के साथ चले जाते हैं। फिर आदमी अपने अतीत से ऐसे ही मुक्त हो जाता है, जैसे सुबह सपने से मुक्त हो जाता है। क्या कभी आपने ऐसा | सवाल नहीं उठाया, सुबह हम उठते हैं, रातभर सपना देखा, तो जरा-सा किसी ने हिलाकर उठा दिया, इतने से हिलाने से रातभर | का सपना टूट सकता है?
नहीं, जरा-सा किसी ने हिलाया; पलक खुली; सपना गया। फिर आप यह नहीं कहते कि अब रातभर इतना सपना देखा, तो अब सपने के विरोध में इतना ही यथार्थ देखूंगा, तब सपना मिटेगा । सपना टूट जाता है।
पाप सपने की भांति है। ज्ञान की जो सर्वोच्च घोषणा है, वह है कि पाप स्वप्न की भांति है। फिर पुण्य भी स्वप्न की भांति है। और सपने सपने से नहीं काटे जाते हैं। सपने सपने से काटेंगे, तो भी सपना देखना जारी रखना पड़ेगा।
सपने सपने से नहीं कटते, क्योंकि सपनों को सपनों से काटने में सपने बढ़ते हैं। और सपने यथार्थ से भी नहीं काटे जा सकते; | क्योंकि जो झूठ है, वह सच से काटा नहीं जा सकता। जो असत्य | है, वह सत्य से काटा नहीं जा सकता। वह इतना भी तो नहीं है कि काटा जा सके। वह सत्य की मौजूदगी पर नहीं पाया जाता है; काटने को भी नहीं पाया जाता है।
224
इसलिए कृष्ण कहते कि कितना ही बड़ा पापी हो तू, सबसे बड़ा पापी हो तू, तो भी मैं कहता हूं अर्जुन, कि ज्ञान की एक किरण तेरे सारे पापों को सपनों की भांति बहा ले जाती है। सुबह जैसे कोई जाग जाता — रात समाप्त, सपने समाप्त, सब समाप्त । जागे हुए आदमी को सपनों से कुछ लेना-देना नहीं रह जाता।
इसलिए जब पहली बार भारत के ग्रंथ पश्चिम में अनुवादित हुए, तो उन्होंने कहा, ये ग्रंथ तो इम्मारल मालूम होते हैं, अनैतिक