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मोह का टूटना
कि तीन होंगे; वहां एक है। वह एक जब हम भाषा में बोलते हैं, तो ग ह सूत्र बहुत अदभुत है और आपके बहुत काम का तत्काल तीन हो जाता है। वहां सत का अनुभव, चित का अनुभव, 4 भी। यह प्रश्न सनातन है, सदा ही पूछा जाता है। आनंद का अनुभव, एक ही अनुभव है। लेकिन जब हम बोलते हैं, बहुत हैं पाप आदमी के, अनंत हैं, अनंत जन्मों के हैं। तो तत्काल प्रिज्म भाषा का तोड़ देता तीन में। फिर समझाने जाते हैं, गहन, लंबी है श्रृंखला पाप की। इस लंबी पाप की श्रृंखला को क्या तो हजार शब्दों का उपयोग करना पड़ता है। फिर उनको भी समझाने ज्ञान का एक अनुभव तोड़ पाएगा? इतने बड़े विराट पाप को क्या जाएं, तो लाख शब्द हो जाते हैं। सब फेल जाता है।
ज्ञान की एक किरण नष्ट कर पाएगी? वहां गहन एक है: फिर सब फैलाव होता चला जाता है। जितना | जो नीतिशास्त्री हैं—नीतिशास्त्री अर्थात जिन्हें धर्म का कोई भी समझाने की कोशिश करें, उतना शब्दों का ज्यादा उपयोग करना | पता नहीं, जिनका चिंतन पाप और पुण्य से ऊपर कभी गया पड़ता है। कम से कम, दि मिनिमम, जो आदमी की भाषा कर सकती नहीं—वे कहेंगे, जितना किया पाप, उतना ही पुण्य करना पड़ेगा। है, वह तीन है। तीन से पीछे भाषा नहीं जा सकती; एक तक भाषा | जितना किया पाप, उतना ही पुण्य करना पड़ेगा। एक-एक पाप को नहीं जा सकती है। बस, तीन पर भाषा मर जाती है। तीन के पीछे | एक-एक पुण्य से काटना पड़ेगा, तब बैलेंस, तब ऋण-धन बराबर एक है। वह एक है। इसलिए हमने त्रिमूर्ति भगवान की मूर्ति बनाई। होगा; तब हानि-लाभ बराबर होगा और व्यक्ति मुक्त होगा।
खयाल किया आपने, चेहरे तीन, और आदमी एक। चेहरे तीन, . जो नीतिशास्त्री हैं, मारलिस्ट हैं, जिन्हें आत्म-अनुभव का कुछ और मूर्ति एक। शक्लें तीन, और प्राण एक। देह एक, और चेहरे भी पता नहीं, जिन्हें बीइंग का कुछ भी पता नहीं, जिन्हें आत्मा का तीन। बाहर से देखो, तो तीन चेहरे। उस मूर्ति के भीतर खड़े हो कुछ भी पता नहीं; जो सिर्फ डीड का, कर्म का हिसाब-किताब जाओ, मूर्ति बन जाओ, तो फिर एक। समझाने के लिए तीन, जानने रखते हैं; वे कहेंगे, एक-एक पाप के लिए एक-एक पुण्य से के लिए एक। व्याख्या के लिए तीन, अनुभव के लिए एक। साधना पड़ेगा। अगर अनंत पाप हैं, तो अनंत पुण्यों के अतिरिक्त ___ इसलिए कृष्ण ने दो बातें कहीं। उन्होंने कहा, वैसा व्यक्ति कोई उपाय नहीं। मुझको उपलब्ध हो जाता है। यह एक की तरफ इशारा करने को। लेकिन तब मुक्ति असंभव है। दो कारणों से असंभव है। एक फिर कहा, सच्चिदानंद रूप को, यह समझाने के लिए, तीन की तो इसलिए असंभव है कि अनंत श्रृंखला है पाप की, अनंत पुण्यों तरफ इशारा करने को।
की श्रृंखला करनी पड़ेगी। और इसलिए भी असंभव है कि कितने एक आंखिरी श्लोक और।
ही कोई पुण्य करे, पुण्य करने के लिए भी पाप करने पड़ते हैं। | एक आदमी धर्मशाला बनाए, तो पहले ब्लैक मार्केट करे। ब्लैक
मार्केट के बिना धर्मशाला नहीं बन सकती। एक आदमी मंदिर अपि चेदसि पापेभ्यः सर्वेभ्यः पापकृत्तमः । बनाए, तो पहले लोगों की गर्दनें काटे। गर्दने काटे बिना मंदिर की सर्वं ज्ञानप्लवेनैव वृजिनं संतरिष्यसि ।। ३६ ।। नींव का पत्थर नहीं पड़ता। एक आदमी पुण्य करने के लिए, कम
यथैधांसि समिद्धोऽग्निर्भस्मसात्कुरुतेऽर्जुन । से कम जीएगा तो! और जीने में ही हजार पाप हो जाते हैं। चलेगा ज्ञानाग्निः सर्वकर्माणि भस्मसात्कुरुते तथा ।। ३७ ।। तो; हिंसा होगी। उठेगा तो; हिंसा होगी। बैठेगा तो; हिंसा होगी। और यदि तू सब पापियों से भी अधिक पाप करने वाला है, श्वास तो लेगा! तो भी ज्ञानरूप नौका द्वारा निस्संदेह संपूर्ण पापों को अच्छी वैज्ञानिक कहते हैं, एक श्वास में कोई एक लाख छोटे जीवाणु प्रकार तर जाएगा।
नष्ट हो जाते हैं। बोलेगा तो! एक बार ओंठ ओंठ से मिला और क्योंकि हे अर्जुन, जैसे प्रज्वलित अग्नि ईंधन को भस्मसात खुला तो करीब एक लाख सूक्ष्म जीवाणु नष्ट हो जाते हैं। किसी का कर देता है, वैसे ही ज्ञानरूप अग्नि संपूर्ण कर्मों को चुंबन आप लेते हैं, लाखों जीवाणुओं का आदान-प्रदान हो जाता भस्मसात कर देता है।
है। कई मर जाते हैं बेचारे! __जीने में ही पाप हो जाएगा। पुण्य करने के लिए ही पाप हो | जाएगा। कम से कम जीएंगे तो पुण्य करने के लिए! तब तो यह
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