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________________ • मोह का टूटना मालूम होते हैं। खुद शॉपेनहार को चिंता हुई। मनीषी था गहरा। चिंतक था गहरा। उसको खुद चिंता हुई कि ये किस तरह की बातें हैं! ये कहते हैं कि एक क्षण में कट जाएंगे! क्रिश्चियनिटी कभी भी नहीं समझ पाई इस बात को। ईसाइयत कभी नहीं समझ पाई इस बात को। एक क्षण में? क्योंकि ईसाइयत ने पाप को बहुत भारी मूल्य दे दिया, बहुत गंभीरता से ले लिया। सपने की तरह नहीं, असलियत की तरह। ईसाइयत के ऊपर पाप का भार बहुत गहरा है, बर्डन बहुत गहरा है। ओरिजिनल सिन! एक-एक आदमी का पाप तो है ही; वह पहले आदमी ने जो पाप किया था, वह भी सब आदमियों की छाती पर है। उसको काटना बहुत मुश्किल है। इसलिए क्रिश्चियनिटी गिल्ट रिडेन हो गई; अपराध का भाव भारी हो गया। और पाप से कोई छुटकारा नहीं दिखाई पड़ता। कितने ही पुण्य से नहीं छुटकारा दिखाई पड़ता। इसलिए ईसाइयत गहरे में जाकर रुग्ण हो गई। जीसस को नहीं था यह खयाल। लेकिन ईसाइयत जीसस को नहीं समझ पाई; जैसा कि सदा होता है। हिंदू कृष्ण को नहीं समझ पाए। जैन महावीर को नहीं समझ पाए। ईसाइयत जीसस को नहीं समझ पाई। न समझने वाले समझने का जब दावा करते हैं, तो उपद्रव शुरू हो जाता है। जीसस ने कहा, सीक यी फ दि किंगडम आफ गॉड एंड आल एल्स शैल बी एडेड अनटु यू। जीसस ने कहा कि सिर्फ प्रभु के राज्य को खोज लो और शेष सब तुम्हें मिल जाएगा। वही जो कृष्ण कह रहे हैं कि सिर्फ प्रकाश की किरण को खोज लो और शेष सब, जो तुम छोड़ना चाहते हो, छूट जाएगा; जो तुम पाना चाहते हो, मिल जाएगा। भारतीय चिंतन इम्मारल नहीं है, एमारल है; अनैतिक नहीं है, अतिनैतिक है, सुपर मारल है, नीति के पार जाता है। यह वक्तव्य बहुत एमारल है, अतिनैतिक है। यह नीति-अनीति के पार चला जाता है, पुण्य-पाप के पार चला जाता है। शेष फिर रात हम बात करेंगे। अब कीर्तन में, धुन में संन्यासी डूबेंगे। जो मित्र सम्मिलित होना चाहें, वे सम्मिलित हो जाएं। अन्यथा बैठे रहें अपनी जगह। कम से कम ताली में साथ दें, धुन में साथ दें, बैठकर अपनी जगह। एक दस मिनट के लिए भूलें बुद्धि को, भूलें चिंतन को, भूलें विचार को। 225
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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