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मोह का टूटना
सिकंदर! तू एक दफे यह भी तो सोच कि तू सारी दुनिया जीत लेगा, | कारण। नहीं थी, तब भी सागर में थी; है, तब भी सागर में है; नहीं तो फिर क्या करेगा? क्योंकि दूसरी दुनिया नहीं है! कहते हैं, | | हो जाएगी, तब भी सागर में होगी। . सिकंदर उदास हो गया। डायोजनीज खूब हंसने लगा। सिकंदर और लेकिन एक लहर अगर सोचने लगे कि मैं अलग हूं; बस, लहर उदास हो गया। और सिकंदर ने कहा, मेरी मजबूरी पर हंसो मत। आदमी हो गई! अब लहर वही सब करेगी, जो आदमी करेगा। अब सच ही दूसरी दुनिया नहीं है। यह मुझे खयाल ही नहीं आया कि लहर सब तरफ से अपने को बचाने की कोशिश करेगी। भयभीत अगर मैं पूरी दुनिया जीत लूंगा, तो फिर क्या होगा? और दूसरी तो | | होगी मिट न जा, डरेगी। इस डर की कोशिश में लहर क्या कर दुनिया नहीं है।
सकती है? फ्रोजन हो जाए, बर्फ बन जाए, तो बच सकती है। अभी जीती नहीं है दुनिया, लेकिन जीतने के खयाल से उदासी | सिकुड़ जाए, मर जाए। क्योंकि लहर तभी तक जिंदा है, जब तक आ गई। क्योंकि फिर मोह को फैलाने की और कोई जगह नहीं है। बर्फ नहीं बनी। सब तरफ से सिकुड़ जाए, सख्त हो जाए। फिर क्या करूंगा! सिकंदर पूछने लगा, लेकिन डायोजनीज, तुम ___ अहंकार फ्रोजन हो जाता है। अहंकार सिकुड़कर पत्थर का बर्फ हंसते क्यों हो?
बन जाता है। पानी नहीं रह जाता, तरल नहीं रह जाता, लिक्विड डायोजनीज बोला कि मैं हंसता इसलिए हूं कि तुझे पूरी दुनिया नहीं रह जाता, बहाव नहीं रह जाता। भी मिल जाए, तो भी उदासी ही हाथ में लगेगी। और हमारे पास | __अहंकार में बिलकुल बहाव नहीं होता है। प्रेम में बहाव होता है। कुछ भी नहीं है, और हम उदासी को खोजते फिरते हैं और हमें इसलिए जब तक अहंकार होता है, तब तक प्रेम पैदा नहीं होता। कहीं मिलती नहीं। हमारे पास कुछ भी नहीं है और हम आनंद में | | यह भी खयाल रख लें कि प्रेम और मोह बड़ी अलग बातें हैं। हैं। तेरे पास बहुत कुछ है और सब कुछ भी हो जाए, तो भी तू | | अलग ही नहीं, विपरीत। जिनके जीवन में मोह है, उनके जीवन में दुख में ही जाएंगा।
| प्रेम पैदा नहीं होता। और जिनके जीवन में प्रेम है, वह तभी होता मोह दुख के अतिरिक्त और कहीं ले जाता नहीं। अब ऐसा | | है, जब मोह नहीं होता। लेकिन हम प्रेम को मोह कहते रहते हैं। समझें, अज्ञान छिपा हुआ मोह है। अज्ञान प्रकट होता है, तो मोह | असल में हम मोह को प्रेम कहकर बचाते रहते हैं। धोखा देने में बनता है। मोह सफल होता है, तो दुख बनता है; असफल होता है, | | हमारा कोई मुकाबला नहीं है! हम मोह को प्रेम कहते हैं। बाप बेटे तो दुख बनता है।
| से कहता है कि मैं तुझे प्रेम करता हूं। पत्नी पति से कहती है कि मैं इसलिए कृष्ण कहते हैं कि ज्ञान की पहली धारा का जब आघात तुझे प्रेम करती हूं। मोह है। होता है, तो सबसे पहले मोह छूट जाता, टूट जाता, बिखर जाता। इसलिए उपनिषद कहते हैं कि सब अपने को प्रेम करते हैं सिर्फ। जैसे सूरज की किरणें आएं और बर्फ पिघलने लगे, ऐसे मोह का अपने को जो सहारा देता है बचने में, उसको भी प्रेम करते हुए फ्रोजन बर्फ का पत्थर जो छाती पर रखा है, वह ज्ञान की पहली धारा मालूम पड़ते हैं। वह सिर्फ मोह है। प्रेम तो तभी हो सकता है, जब से पिघलता शुरू होता है। और जब मोह पिघल जाता है, जब मोह दूसरा भी अपना ही मालूम पड़े। प्रेम तो तभी हो सकता है, जब प्रभु मिट जाता है, तब व्यक्ति जानता है कि मैं जिसे बचा रहा था, वह | | का अनुभव हो, अन्यथा नहीं हो सकता है। प्रेम केवल वे ही कर तो था ही नहीं। जो नहीं था, उसको बचाने में लगा था, इसलिए | सकते हैं, जो नहीं रहे। बड़ी उलटी बातें हैं। परेशान था।
जो नहीं बचे, वे ही प्रेम कर सकते हैं। जो हैं, बचे हैं, वे सिर्फ जो नहीं है, उसको बचाने में लगा हुआ आदमी परेशान होगा | | मोह ही कर सकते हैं। क्योंकि बचने के लिए मोह ही रास्ता है। प्रेम ही। जो है ही नहीं, उसे कोई बचाएगा कैसे? मैं हूं ही नहीं अलग | | तो मिटने का रास्ता है। प्रेम तो पिघलना है। इसलिए प्रेम वह नहीं
और पृथक इस विश्व की सत्ता से। उसी को बचाने में लगा हूं। वही | | कर सकता, जिसको अपने को बचाना है। मेरी पीड़ा है।
इसलिए देखें, जितना आदमी जीवन को बचाने की चेष्टा में रत एक लहर अपने को बचाने में लग जाए, फिर दिक्कत में पड़ेगी। होगा, उतना प्रेम शून्य हो जाएगा। तिजोड़ी बड़ी होती जाएगी, प्रेम क्योंकि लहर सागर से अलग कुछ है भी नहीं। उठी है, तो भी सागर रिक्त होता जाएगा। मकान बड़ा होता जाएगा, प्रेम समाप्त होता के कारण; है, तो भी सागर के कारण; मिटेगी, तो भी सागर के जाएगा।
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