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________________ • मोह का टूटना तो उठा लो! तो उसका मतलब यह नहीं है कि उठा लो। उसका | इसलिए धन इतना महत्वपूर्ण है। लोग कहते हैं कि धन में कुछ भी मतलब है, इस भांति जिंदा मत रखो, ढंग से जिंदा रखो! सांकेतिक | | नहीं रखा। गलत कहते हैं। मोह का प्राण है वहां। मोह की आत्मा भाषा में बोल रहा है। धन में बसती है। कोई मरना नहीं चाहता। इतना धन क्यों महत्वपूर्ण हो गया है? क्या लोग पागल हैं? आप कहेंगे, कुछ लोग आत्मघात कर लेते हैं। निश्चित कर लेते | | नहीं; लोग पागल नहीं हैं। धन के बिना जीना बहुत कठिन है। जीने हैं। लेकिन कभी आपने खयाल किया कि आत्मघात कौन लोग | की आकांक्षा जितनी प्रबल है, धन पर पकड़ भी उतनी ही प्रबल करते हैं। वे ही लोग, जिनका जीवन का मोह बहुत गहन होता है, | होती है। धन पर प्रबल पकड़ सिर्फ जीने की प्रबल पकड़ की सूचना डेंस। यह बहुत उलटी बात मालूम पड़ेगी। देती है। __एक आदमी किसी स्त्री को प्रेम करता है और वह स्त्री इनकार | अगर महावीर या बुद्ध जैसे लोग सब धन छोड़कर चले जाते हैं, कर देती है, वह आत्महत्या कर लेता है। वह असल में यह कह | तो धन छोड़कर नहीं जाते हैं। अगर गहरे में देखें, तो जीवन का जो रहा था कि जीऊंगा इस शर्त के साथ. यह स्त्री मिले: यह कंडीशन आग्रह है, वह छूटने की वजह से धन छूट जाता है। धन को करेंगे है मेरे जीने की। और अगर ऐसा जीना मुझे नहीं मिलता-उसका | | भी क्या बचाकर? कल हुआ जीवन, तो ठीक है; न हुआ, तो ठीक जीने का मोह इतना सघन है कि अगर ऐसा जीवन मुझे नहीं | है। नहीं हुआ तो उतना ही ठीक है, जितना हुआ तो ठीक है। मिलता, तो वह मर जाता है। वह मर रहा है सिर्फ जीवन के | मोहम्मद रात सोते, तो सांझ घर में जो भी होता, सब बांट देते। अतिमोह के कारण। कोई मरता नहीं है। एक पैसा भी न बचाते। कहते, कल सुबह जीए, तो ठीक है; और एक आदमी कहता है, महल रहेगा, धन रहेगा, इज्जत रहेगी, । । | परमात्मा जिलाना चाहेगा, तो कल सुबह भी इंतजाम करेगा। आज तो जीऊंगा; नहीं तो मर जाऊंगा। वह मरकर यह नहीं कह रहा है | | इंतजाम किया था, कल भी इंतजाम किया था। जीवनभर का कि मृत्यु मुझे पसंद है। वह यह कह रहा है कि जैसा जीवन था, वह | | अनुभव कहता है कि अब तक जिलाना था, तो उसने इंतजाम दिया मुझे नापसंद था। जैसा जीना चाहता था, वैसे जीने की आकांक्षा | है। कल भी भरोसा रखें। मेरी पूरी नहीं हो पाती थी। वह मृत्यु को स्वीकार कर रहा है, ईश्वर मोहम्मद कहते कि जो आदमी तिजोड़ी सम्हालकर रखता है, वह के प्रति एक गहरी शिकायत की तरह। वह कह रहा है, सम्हालो नास्तिक है। है भी। कहेंगे, नास्तिक की बड़ी अजीब परिभाषा है! अपना जीवन; मैं तो और गहन जीवन चाहता था। और भी, जैसी हम तो नास्तिक उसको कहते हैं, जो भगवान को नहीं मानता। मेरी आकांक्षा थी, वैसा। मोहम्मद नास्तिक उसको कहते हैं, जो धन को मानता है। एक व्यक्ति किसी स्त्री को प्रेम करता है, वह मर जाती है। वह | और ध्यान रखें, जो धन को मानता है, वह भगवान को मान नहीं दूसरी स्त्री से विवाह करके जीने लगता है। इसका जीवन के प्रति | | सकता। और जो भगवान को मानता है, वह धन को मानना उससे ऐसी गहन शर्त नहीं है, जैसी उस आदमी की, जो मर जाता है। | ऐसे ही तिरोहित हो जाता है, जैसे सूखे पत्ते वृक्ष से गिर जाते हैं। जिनकी जीवन की गहन शर्ते हैं, वे कभी-कभी आत्महत्या करते | | क्योंकि जो भगवान को मानता है, वह अपने जीने का मोह छोड़ हुए देखे जाते हैं। और कई बार आत्महत्या इसलिए भी आदमी | | देता है। परमात्मा का जीवन ही उसका अपना जीवन है अब। करता देखा जाता है कि शायद मरने के बाद इससे बेहतर जीवन | तो मोहम्मद सांझ सब बांट देते। मोहम्मद से अपरिग्रही आदमी मिल जाए। वह भी जीवन की आकांक्षा है। वह भी बेहतर जीवन | पृथ्वी पर बहुत कम हुए हैं। और यह अपरिग्रह कई अर्थों में महावीर की खोज है। वह भी मृत्यु की आकांक्षा नहीं है। वह इस आशा में और बुद्ध के अपरिग्रह से भी कठिन है। क्योंकि महावीर और बुद्ध की गई घटना है कि शायद इस जीवन से बेहतर जीवन मिल जाए। एकबारगी छोड़ देते हैं। छोड़कर बाहर हो जाते हैं। अपरिग्रह उनका अगर बेहतर जीवन मिलता हो, तो आदमी मरने को भी तैयार है। इकट्ठा है। बाहर हो गए; बात समाप्त हो गई। मोहम्मद इस तरह मृत्यु के प्रति उन्मुखता नहीं है; हो नहीं सकती। जीवन का मोह है। बाहर नहीं हो जाते। रोज सुबह से सांझ तक परिग्रह इकट्ठा होता, जीवन के इस मोह की फिर बहुत शाखाएं फैल जाती हैं। वे सभी सांझ सब बांट देते। रात अपरिग्रही हो जाते। सुबह फिर कोई भेंट चीजें, जो जीने में सहयोगी होती हैं, महत्वपूर्ण बन जाती हैं। कर जाता, तो फिर आ जाता। सांझ फिर बांट देते। 215]
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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