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ॐगीता दर्शन भाग-20
यज्जात्वा न पुनमोहमेवं यास्यसि पाण्डव।। फिर बाकी सब आकांक्षाएं मोह की इसी आकांक्षा से पैदा होती हैं। येन भूतान्यशेषेण द्रक्ष्यस्यात्मन्यथो मयि ।। ३५।। । कभी-कभी हैरानी होती है। राह पर देखकर कभी अंधे, लंगड़े, कि जिसको जानकर तू फिर इस प्रकार मोह को नहीं प्राप्त लूले, भिखारी को, मन में सवाल उठा होगा, किसलिए जीना चाहता होगा; और हे अर्जुन, जिस ज्ञान के द्वारा सर्वव्यापी अनंत है? अंग-अंग गल गए हैं। किसलिए जीना चाहता है? कभी सवाल चेतनरूप हुआ अपने अंतर्गत समष्टि बुद्धि के आधार संपूर्ण उठा होगा। उसी लिए, जिस लिए हम जीना चाहते हैं। अंग गल भूतों को देखेगा और उसके उपरांत मेरे में अर्थात जाएं, लेकिन जीने का मोह नहीं गलता। आंखें चली जाएं, पैर टूट सच्चिदानंद स्वरूप में एकीभाव हुआ | जाएं, आदमी सड़ता हो, फिर भी जीने का मोह नहीं पिघलता! सच्चिदानंदमय ही देखेगा।
कई बार लगता है कि बूढ़े कहते हुए सुनाई पड़ते हैं कि अब तो परमात्मा उठा ही ले। तो आप यह मत समझना कि वे सच ही उठ
जाने को तैयार हैं। अगर आप सब मिलकर कोशिश करने लगें कि लान का पहला आघात मोह पर होता है। ज्ञान की पहली | ठीक; उठवाए देते हैं! तब आपको पता चलेगा कि वे जब यह कह सा चोट ममत्व पर होती है। या उलटा कहें, तो ममत्व के रहे हैं कि अब तो परमात्मा उठा ही ले, तो वे सिर्फ एक शिकायत
विदा होते ही ज्ञान की किरण, पहली किरण, फूटती है। | कर रहे हैं कि इस तरह जिंदा रखने में कोई मजा नहीं; और तरह मोह के नाश होते ही ज्ञान के सूर्य का उदय होता है। ये दोनों घटनाएं | जिंदा रखे। गहरे में मरने की आकांक्षा उनकी भी नहीं है। युगपत हैं, साइमल्टेनियस हैं। इसलिए दोनों तरह से कहा जा सकता | | मैंने सुनी है एक घटना; एक अरेबियन कहानी है। एक है, प्रकाश के फूटते ही अंधकार विलीन हो जाता, या ऐसा कहें कि लकड़हारा रोज लकड़ी काटता है। गांव में बेचता है। बूढ़ा हो गया जहां अंधकार विलीन हुआ, हम जानते हैं कि प्रकाश फूट गया है। | | है। एक दिन लौट रहा है, सिर पर भारी बोझ है। सुबह दोपहर बन
कृष्ण कहते हैं, सम्यक विनम्रता से पूछे गए प्रश्न के उत्तर में रही है। पसीने से लथपथ बूढ़ा आदमी है; लकड़ियां ढोता हुआ ज्ञानीजन से जो उपलब्ध होता, उससे मोह-नाश होता है अर्जुन। गांव की तरफ जा रहा है। कमर झुकी जाती है; बोझ सहा नहीं ___ मोह-नाश का क्या अर्थ है? मोह क्या है?
जाता। अचानक मन से निकला, हे परमात्मा! इससे तो अच्छा है । पहला मोह तो यह है कि मैं रहूं। गहरा मोह यह है कि मैं रहूं। | कि अब मौत से ही मिला दे। जीवन की अभीप्सा; जीता रहूं; कैसे भी सही, जीऊं जरूर, रहूं ऐसा होता नहीं, जैसा उस कहानी में हो गया। मौत कहीं पास जरूर; मिट न जाऊं-लस्ट फार लाइफ; जिजीविषा। से गुजरती थी और उसने सुन लिया। उसने सोचा, बेचारा, सच
जीने का मोह पहला और गहरा मोह है। शेष सब मोह उसके में तकलीफ में है। ले ही जाऊं। मौत आ गई। मौत सामने आकर आस-पास निर्मित होते हैं। यदि कोई मकान को मोह करता, तो खड़ी हुई। लकड़हारे से कहा, तुमने याद किया; मैं आ गई। मकान को कोई मोह नहीं करता। मकान का मोह-मैं रह सकू बोलो, क्या करूं? ठीक से, मैं बच सकू ठीक से, सरवाइव कर सकू-उसी मोह का लकड़हारे ने कहा, नहीं, और कुछ नहीं, सिर्फ जरा सिर से बोझ विस्तार है। कोई धन को मोह करता। धन का मोह अपने में व्यर्थ | | उतार दो। और किसी लिए याद नहीं किया; बोझ जरा सिर पर ज्यादा है। अपने में उसकी कोई जड़ नहीं। उसकी रूट्स, उसकी जड़ उस है; राह पर कोई दिखाई नहीं पड़ता है, इसे नीचे उतार दो। घबड़ा गया मैं के बचाए रखने में ही है। धन न होगा, तो बचूंगा कैसे? धन | | मौत को देखकर। जब पुकारा था, तब सोचा भी नहीं था...। होगा, तो बचने की चेष्टा कर सकता हूं।
यह खयाल रख लें, अगर परमात्मा हमारी सारी प्रार्थनाएं सुन अगर और संक्षिप्त में कहें, तो मोह मृत्यु के विरुद्ध संघर्ष है। | ले, तो हम प्रार्थना करना सदा के लिए बंद कर दें। नहीं सुनता है, पति पत्नी को मोह करता; पत्नी पति को मोह करती; बाप बेटे को | | इसलिए किए चले जाते हैं। शायद इसीलिए नहीं सुनता है, क्योंकि मोह करता, बेटा बाप को मोह करता। वे सब सिक्योरिटी मेजर्स हम अपने ही खिलाफ प्रार्थनाएं किए चले जाते हैं। क्योंकि पूरी कर हैं, सरवाइवल मेजर्स हैं, बचने के उपाय हैं। मिट न जाऊं, बचूं दे, तो हम फिर भी शिकायत करेंगे कि तूने पूरी क्यों कर दी? हमारा सदा-जीने की ऐसी जो आकांक्षा है, वह मोह का गहरा रूप है। यह मतलब थोड़े ही था! जब एक आदमी कहता है, हे प्रभु, अब
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