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चरण-स्पर्श और गुरु-सेवा ॐ
आपने कहा कि किसी के पैर मत छुओ और फलां आदमी आपका | पैर पर सिर रखने देने से बड़े आश्चर्यचकित हो जाते हैं। असल में पैर छू रहा था! आपने रोका क्यों नहीं?
उन्हें रहस्य का कोई पता नहीं। किसी के पैर मत छुओ का मतलब, औपचारिक मत छुओ, ___ फिर यह भी ध्यान रहे कि दंडवत इस मुल्क में एक बहुत फार्मल मत छुओ, जानकर मत छुओ, कोशिश करके मत छुओ, साइंटिफिक प्रोसेस का हिस्सा थी, एक वैज्ञानिक प्रक्रिया थी। मत छुओ, एफर्ट से मत छओ. प्रयत्न-यत्न से मत
प्रत्येक व्यक्ति का शरीर विद्युत-ऊर्जा से भरा है। और यह छुओ; और दूसरे छू रहे हैं, इसलिए मत छुओ; कोई क्या कहेगा, | | विद्युत-ऊर्जा कोणों से, कोनिकल जगह से बहती है—अंगुलियों इसलिए मत छुओ।
| से और पैर की अंगुलियों से, हाथ की अंगुलियों से और पैर की पैर छूना उस क्षण दंडवत बन जाता है, जिस क्षण आपको पता | | अंगुलियों से। जब भी कोई व्यक्ति इस स्थिति में पहुंच जाता है, ही नहीं चलता कि आप पैर छू रहे हैं। एफर्टलेस! पता ही तब समर्पित परमात्मा पर, तो उसकी ऊर्जा परमात्मा से संबंधित हो चलता है, जब पैर छूने की घटना घट गई होती है, जब कहीं सिर | जाती है। उसके पैरों पर अगर सिर रख दिया है, तो विद्युत-संचरण, रख जाता है किसी चरण पर। तब ध्यान रहे, जब ऐसी मनोदशा में तरंगों का प्रवाह भीतर तक दौड़ जाता है। उसके हाथों से भी यह सिर रख जाता है किसी चरण पर, तो प्रार्थना घटित हो जाती है, | | होता है। इसलिए पैर पर सिर रखने का रिवाज था। और हाथ सिर ध्यान घटित हो जाता है। तो ऐसे क्षण में वह विनम्रता घटित हो पर रखकर आशीष देने का रिवाज था। जाती है. जो शिष्यत्व है. डिसाइपलशिप है।
अगर किसी व्यक्ति के पैरों पर आपने सिर रखा और उसने भी और ये पैर एकदम ही व्यर्थ नहीं हैं, इनका आकल्ट उपयोग भी | | आपके सिर पर हाथ रख दिया, तो आपके दोनों के शरीर इलेक्ट्रिक है। कभी आपने खयाल किया, किसी पर क्रोध आता है, तो उसका | | सर्किट बन जाते हैं और विद्युत-धारा दोनों तरफ से दौड़ जाती है। सिर खोल देना चाहते हैं। बहुत क्रोध आ जाता है किसी को...। | इस विद्युत-धारा के दौड़ जाने के गहरे परिणाम हैं।
अभी मैं बड़ौदा में था। एक आदमी को बहुत क्रोध आ गया मुझ लेकिन जीवन के बहुत-से सत्य समय की धूल से जमकर व्यर्थ पर, तो उसने एक जूता फेंककर मेरी तरफ मार दिया। फिर भी मैंने | हो जाते हैं। जीवन के बहुत-से सत्य गलत लोगों के हाथ में पड़कर उससे कहा कि तेरा क्रोध पूरा नहीं है; नहीं तो दूसरा जूता क्यों रोका खतरनाक भी हो जाते हैं। है? उसको भी फेंक। और फिर एक जूते का मैं क्या करूंगा? दो दंडवत करके पूछना, प्रश्न करना, जिज्ञासा, तो जिसने जाना है, जूते होंगे, तो कुछ उपयोग में आ सकते हैं!
| उससे ज्ञान का अमृत तेरी तरफ बह सकता है अर्जुन, ऐसा कृष्ण क्रोध तेजी से आ जाए, तो जूता फेंकने का मन होता है। क्या | कहते हैं। बात है? सिंबालिक है। क्रोध जोर से आ जाए, तो दूसरे के सिर में पैर मारने की तबियत होती है। अब पैर तो मार नहीं सकते। इतनी छलांग लगाना, कुछ थोड़े से हाई जंप करने वालों को संभव हो! प्रश्नः भगवान श्री, इस श्लोक में यह भी कहा गया बाकी किसी के सिर में पैर मारने जाओ, तो हाथ-पैर अपने टूट है कि सेवा और निष्कपट भाव से किए गए प्रश्न पर जाएं! उतनी मेहनत मुश्किल मालूम पड़ती है। इसलिए जूते को ज्ञानीजन उपदेश करते हैं। कृपया सेवा और निष्कपट सिंबालिक एक्ट की तरह. प्रतीक-चिह्न की तरह उसके सिर पर | भाव से किए गए प्रश्न का अर्थ स्पष्ट करें। फेंक देते हैं, कि यह ले!
जब क्रोध में ऐसा घटित होता है, तो क्या इससे विपरीत घटित नहीं हो सकता कि किसी के चरणों में सिर रखने का क्षण आ जाए? 27 केला प्रश्न, कुछ लेने की आकांक्षा है। लेकिन जिसने जब क्रोध से पीड़ित, विक्षिप्त चित्त दूसरे के सिर पर पैर रखना 1 कुछ दिया नहीं, वह लेने का अधिकारी नहीं है। पूछने चाहता है, तो मौन से, प्रेम से, प्रार्थना से, शांत हुआ चित्त, अगर
चल पड़े, तो मांगने तो चल पड़े, लेकिन प्रत्युत्तर देने दुसरे के पैरों में सिर रखना चाहे, तो आश्चर्य क्या है? | की सामर्थ्य भी चाहिए। और सच तो यह है कि मांगने का हक
लेकिन जो लोग जूते मारने में कोई आश्चर्य न देखेंगे, वे लोग मिलता है तब, जब देने का काम पूरा हो चुका हो।
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