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गीता दर्शन भाग-2
और किताब परमात्मा के द्वारा रचित नहीं हो सकती। फिर उपद्रव कोई और आ गया बीच में। हटाओ इन शब्दों को। शुरू होते हैं। फिर आदमी बीच में आ गया। जानने वालों की वाणी | रवींद्रनाथ ने कहा, मैं अपने शब्द बताऊं, जो मैंने पहले रखे थे! पर भी उसने कब्जा कर लिया।
| यीट्स ने कहा कि ये शब्द भाषा की दृष्टि से गलत हैं, लेकिन भाव वेद अपौरुषेय हैं. इसका यह अर्थ नहीं कि परमात्मा के द्वारा की दष्टि से सही हैं। इन्हें जाने दो। भाषा की गलती चलेगी। अटका रचित हैं; क्योंकि परमात्मा के द्वारा तो सभी कुछ रचित है। अलग हुआ पत्थर तो सब नष्ट कर देता; वह नहीं चलेगा। ये चलेंगे; इन्हें से वेद को रचा हुआ कहने का कोई कारण नहीं। वेद अपौरुषेय हैं चलने दो। ये सीधे आए हैं। इस अर्थ में कि जिन्होंने उन्हें रचा, उनके भीतर अपना कोई अहंकार | जब कोई व्यक्ति परमात्मा की वाणी से भरता है, तो उसे एक ही नहीं था, उनके भीतर अपना कोई भाव नहीं था कि मैं। पुरुष विदा | ध्यान रखना पड़ता है कि वह बीच में न आ जाए खुद। जैसे यहां हो गया था; अपुरुष भीतर आ गया था। पर्सन जा चुका था, एण्ड्रज बीच में आए रवींद्रनाथ के; ऐसे अगर परमात्मा की वाणी नान-पर्सनल भीतर आ गया था। हट गए थे वे; और जगह दे दी भर जाए किसी में, तो उसे एक ही ध्यान रखना पड़ता है कि वह थी प्रभु की अनंत सत्ता को। उसके द्वारा ही इनके हाथों ने रचे। रचे खुद बीच में न आ जाए। तो आदमी ने ही हैं। हाथ तो आदमी का ही उपयोग में आया है। इसलिए अगर धर्मशास्त्रों में कहीं भूलें हैं, तो वे भूलें उन कलम तो आदमी ने ही पकड़ी है। शब्द तो आदमी ने बनाए हैं। आदमियों की वजह से हैं, जो कहीं बीच में आ गए हैं। आदमी को लेकिन उस आदमी ने, जिसने अपने हाथ को प्रभु के हाथ में दे माध्यम बनाएंगे, तो कई डर हैं। दिया; जो एक मीडियम बन गया; और कहा कि लिख डालो। फिर कूलरिज मरा, अंग्रेजी का एक बहुत बड़ा महाकवि जब मरा, तो उसने नहीं लिखा।
| उसके घर में चालीस हजार कविताएं अधूरी मिलीं। मरने के पहले ऐसा एक बार हुआ। रवींद्रनाथ ने गीतांजलि लिखी, फिर अंग्रेजी कई बार मित्रों ने कहा कि तुम यह करते क्या हो! यह ढेर कब पूरा में अनुवाद की। अनुवाद करके सी.एफ.एण्ड्रज को दिखाई। | होगा? कहीं तीन पंक्तियां लिखीं, चौथी पंक्ति नहीं है। तो कूलरिज सोचा, अंग्रेजी भाषा है, पराई, कोई भूल-चूक न हो जाए। एण्डुज ने कहा, तीन ही आईं; चौथी मैं मिला सकता था, लेकिन फिर मैं ने चार जगह भूलें निकाली। कहा, यहां-यहां गलत है। ठीक-ठीक | बीच में आ जाता। तो मैंने रख दी। जब चौथी आएगी, तो जोड़' ग्रैमेटिकल, ठीक-ठीक व्याकरण के अनुकूल नहीं है। इन्हें ठीक कर | दूंगा; नहीं आएगी, तो बात खतम हो गई। लो। रवींद्रनाथ मान गए। एण्ड्रज अंग्रेज, बुद्धिमान, विचारशील, कूलरिज ने अपनी जिंदगी में केवल सात कविताएं पूरी की हैं। ज्ञाता! बदलाहट कर ली। तत्काल काटकर, जो एण्डज ने कहा, सात कविताएं लिखने वाला आदमी पृथ्वी पर दूसरा नहीं है, जो वह लिख लिया।
| महाकवि कहा जा सके! कूलरिज महाकवि है। सात हजार लिखने फिर रवींद्रनाथ लंदन गए और वहां कवियों की एक छोटी-सी | वाले भी महाकवि नहीं हैं। कूलरिज सात लिखकर भी महाकवि है। गोष्ठी में उन्होंने पहली दफा गीतांजलि सुनाई, जिस पर बाद में क्या बात है? नोबल पुरस्कार मिलने को था। तब तक मिला नहीं था। छोटे-से, ___ बात है। बात यह है कि कूलरिज बिलकुल ही एब्सेंट है। जब भी बीस कवियों के बीच में। एक कवि, अंग्रेज कवि यीट्स बीच में | | वह लिखता है, तब अपने को बिलकुल ही हटा देता है। जो आता उठकर खड़ा हो गया और उसने कहा कि दो-चार जगह ऐसा लगता है अनंत से, उसी को उतर जाने देता है। चालीस हजार मौकों पर है कि शब्द किसी और के हैं। रवींद्रनाथ ने कहा, किस जगह? उस टेंपटेशन तो रहा ही होगा। होता ही है। एक कविता बन गई पूरी आदमी ने दो जगह तो बिलकुल पकड़कर बता दी—इस जगह | | एक पंक्ति अटक गई है; जोड़ दो, पूरी हो जाए। मन कहता है, जोड़ शब्द किसी और के हैं।
| दो। लेकिन कूलरिज हिम्मत का आदमी है। नहीं जोड़ता। रख देता रवींद्रनाथ ने कहा, लेकिन समझ में कैसे पड़ा तुम्हें? सच ही ये है एक तरफ। मर गया चालीस हजार कविताओं को अधूरा छोड़कर। शब्द किसी और के हैं। मैंने इन्हें बदला है। तो यीट्स ने कहा कि |
|| वेद जिन्होंने रचे हैं, उनकी भी कठिनाई वही है। उपनिषद जब तुम गा रहे थे, तब एक धारा थी, एक बहाव था, एक फ्लो जिन्होंने कहे हैं, उनकी भी कठिनाई वही है। महावीर के वचन, बुद्ध था। अचानक लगा कि कोई पत्थर आ गया बीच में, धारा टूट गई। के वचन–कठिनाई वही है। कुरान, बाइबिल–कठिनाई वही है।
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