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माया अर्थात सम्मोहन ... 355
परमात्मा स्रष्टा तो है—पर कर्ता नहीं / परमात्मा के लिए कोई 'तू' नहीं है / परमात्मा नर्तक है-और सृष्टि उसका नृत्य / परमात्मा प्रकृति के बिना भी हो सकता है / परमात्मा कैटेलिटिक एजेंट है / सिर्फ मौजूदगी से घटनाएं घटित / प्रकृति अपने गुणधर्म से बर्तती है / जीन पियागेट के प्रयोगः मातृत्व की उष्मा / स्नेह से वंचित रुग्ण बच्चा / मां के दूध के साथ-साथ प्रेम की ऊर्जा का बहना / प्रेम और प्रार्थना / शक्तिशाली की मौजूदगी काफी है / गुरु की मौजूदगी और आदर का बहना / विराट ब्रह्मांड चलता है-बिना कर्ता के / कर्ताशून्य, सहज जीने वाला संन्यासी है / प्रयास से कर्ताभाव / एक महिला का चांटा मारना / प्रकृति से ऊपर उठना / परमात्मा और प्रकृति-यह द्वैत क्यों? / बुद्धि से समझाते ही दो हो जाता है / समझने के लिए तोड़ना पड़ेगा / विज्ञान है विश्लेषण-धर्म है संश्लेषण / ज्ञान में अद्वैत-अज्ञान में द्वैत / पाप-पुण्य-भेद-कर्ता के कारण / परमात्मा-पाप-पुण्य से परे / माया अर्थात सम्मोहन / अनंत जन्मों के संस्कारों का सम्मोहन / वासना सम्मोहन है / अचेतन मन की क्षमता / हमारा मायावी प्रेम / एक युवक पर सम्मोहन का प्रयोगः संस्मरण / धन का सम्मोहन-त्याग का सम्मोहन / कवियों का मनोजगत / सम्मोहन से जाग जाना / परमात्मा और माया में क्या भिन्नता है? / रस्सी में सांप देखना / माया है तो परमात्मा नहीं / परमात्मा है तो माया नहीं / माया अर्थात जो नहीं है और दिखाई पड़ता है / कल्पना की क्षमता / सपनों से जागो।
तीन-सूत्र-आत्म-ज्ञान के लिए ... 371
__अंधकार का अस्तित्व नहीं है / अंधकार प्रकाश का अभाव है / आत्म-अज्ञान अभाव है-आत्म-ज्ञान का / आत्मा स्वयं ज्ञान है / सोया हुआ ज्ञान-जागा हुआ ज्ञान / माचिस में सोयी हुई अग्नि / क्षुद्र से हार-नींद के कारण / जवानी में काम-तंद्रा./ बुढ़ापे में-मोह-लोभ-तंद्रा / जागरण / आत्म-जागरण के तीन सूत्रः संकल्प, साहस और संयम / संकल्पहीनता की दीनता / भीड़ का भय / साहस अर्थात अज्ञात में, स्वयं में छलांग / ऊर्जा गंवाने की मूढ़ता / अंतर्यात्रा के लिए ऊर्जा चाहिए / परमात्मा की झलक / झलक तदरूपता नहीं है / 'मैं' मिटे तो परमात्मा / सब आवागमन अहंकार का / 'मैं' की मुक्ति नहीं—'मैं' से मुक्ति / 'मैं' दुख है । अज्ञान की विनम्रता / ज्ञान का दंभ / परमात्मा की आग / अहंकार जलकर राख होना / धन्यता-तदरूपता से / जो पाना है, वैसा हो जाना पड़ता है / परमात्मा सम है / काम, क्रोध, लोभ-विषमता लाते हैं / प्रेम, करुणा, दान–समता लाते हैं / जो विषमता लाए-वह अधर्म / जो समता लाए-वह धर्म / आकर्षण-विकर्षण / जो हमारे भीतर है-वही हम बाहर देखते हैं / भीतर का चोर, भीतर का बेईमान / शुभ-दर्शन से प्रभु की ओर गति / भीतर समता–बाहर शुभ-दर्शन / समता और शुभ की पूर्णता-परमात्मा से तदरूपता।