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मन का ढांचा-जन्मों-जन्मों का ... 327
तत्व को जानने वाला / विद्यत और चेतना / एक ही ऊर्जा-अनेक रूपों में / कोयला भी हीरा है / विद्युत में छिपी है चेतना / बीज में छिपा है-पूरा वृक्ष / अज्ञानी बहुत चीजों को जानता है / ज्ञानी-एक को जानता है / भ्रांत तादात्म्य-इंद्रियों के कृत्यों से / इंद्रियों से भिन्न-'स्व' का स्मरण / बांधने वाला स्वयं बंध जाता है / स्वयं की मालकियत / गीता के सूत्र साधना के सूत्र हैं / बहिर्मुखता या अंतर्मुखता का कारण क्या है? क्या वे आपस में परिवर्तनशील हैं? कृष्ण अंतर्मुखी हैं या बहिर्मुखी? / आदतों का सतत निर्माण / सारी शिक्षा बहिर्मुखता की / जन्मों-जन्मों की शिक्षा / बहिर्मुखता की उपयोगिता / जीवन की गहराइयों में अंतर्मुखता का ही मूल्य है / मृत्यु बोध अंतर्मुखी बनाता है / बहिर्मुखी की साधना—अंतर्मुखी से भिन्न / अति की अवस्था में, धक्के से, अचानक रूपांतरण संभव / बाल्या डाकू का ऋषि वाल्मीकि हो जाना / व्यक्तित्व के अनुकूल साधना-पद्धति चुनना / मंजिल पर व्यक्तित्व खो जाता है | कष्ण हैं-व्यक्तित्व-अतीत / बद्ध और महावीर में व्यक्तित्व दिखना–साधना पद्धति के कारण / कृष्ण सभी पद्धतियों की बात करते हैं / राम का मर्यादित व्यक्तित्व / पूर्णावतार कृष्ण-समझ के बाहर / पूरे कृष्ण का स्वीकार दुरूह है / चुनावशून्य जीवन / जल में कमलवत / सब कुछ परमात्मा को समर्पित कर देना / समर्पण-परम सामर्थ्य है / न पाप छुते-न पुण्य / चेतना का क्वारापन / क्वांरी मां से जन्मे जीसस / बुद्ध, महावीर, कृष्ण-सभी क्वारी मां से जन्मे / धार्मिक जीवन अर्थात प्रभु-समर्पित जीवन।
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अहंकार की छाया है ममत्व ... 341 . '
जन्मों-जन्मों की कर्म-त्वरा / हमारी जिंदगी-एक उतार / कर्मों का क्षय / ममत्व नीचे की यात्रा है / 'मेरे' 'मैं' का प्राण है / 'मेरे' अहंकार की छाया है / 'मैं' का झूठ-'मेरे' का जाल / 'मेरे' के गिरते ही 'मैं भी गिर जाता / ज्ञान और त्याग तक का ममत्व / चिकित्सा का पहला कदम-बीमारी का बोध / दो प्रकार के लोग-सकामी और निष्कामी / आकांक्षा के पाश में खिंचा हुआ आदमी / समर्पण से निष्कामता / मांगशून्य प्रार्थना / भजन-कीर्तन—आभार है, धन्यवाद है / मांगने वाले को नहीं मिलता / कामना का संसार-चक्र / निष्कामता धर्म है / इस बहिर्मुखी युग में आप ध्यान क्यों सिखाते हैं? /ध्यान अंतर्मुखी के लिए / प्रार्थना बहिर्मुखी के लिए / मेरा ध्यान दोनों का जोड़ है / कीर्तन का प्रभाव / ध्यान के पहले तीन चरण-बहिर्मुखी के लिए / चौथा चरण-अंतर्मुखी के लिए / खूब चल कर रुकना आसान / गीता-प्रवचन से कीर्तन का क्या संबंध है? और आपका कीर्तन अराजक क्यों है? / प्रवचन बुद्धि के लिए / कीर्तन हृदय के लिए / ठीक समझे तो हृदय भी आंदोलित होगा / शब्द असमर्थ हैं / कृष्ण ने अर्जुन को गीता कही-गोपियों के साथ नाचे / कृष्ण का रास-गीता से भी गहरा / गीता-दर्शनशास्त्र नहीं-जीवन-संगीत बने / व्यवस्था का संबंध बुद्धि से है / हृदय बेहिसाब है / प्रशिक्षित नृत्य-व्यावसायिक / कीर्तन हृदय का उन्मेष है / धर्म चाहिए-नृत्य और उत्सव भरा / मंदिर में तो कम से कम स्त्री-पुरुष-देह भूल जाना चाहिए / हरिनाम की कोई व्यवस्था नहीं है / अराजकता से ही भीतर के बंधन गिरेंगे/ परमात्मा हमारा स्वभाव है / सागर बिच मीन पियासी / शुद्ध अंतःकरण दर्पण बन जाता है / भारतीय मनीषा का सार अनुभव-सत् चित् आनंद / परमात्मा है सत्-संसार है परिवर्तन / चेतना का सागर / परिवर्तन में दुख है | मूर्छा में दुख है / आनंद स्व-स्फूर्त है।