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सम्यक दृष्टि ...299
- हमारी असम्यक दृष्टि / आग्रह का आरोपण / भेद और विरोध-अज्ञान के कारण / निर्विचार दृष्टि / कर्मका-लीला या अभिनय बन जाना./बड़ी. अपेक्षा तो बड़ा दुख / अकड़ा हुआ मिथ्या-ज्ञान / अद्वैत-बोध / बहिर्मुखी हैं या अंतर्मुखी—इसकी क्या पहचान है? / बाहर का आकर्षण / भीतर का सुख / समूह रुचिकर—या अकेलापन / ध्यान का धर्म-अंतर्मुखी / प्रार्थना का धर्म-बहिर्मुखी / इस्लाम और ईसाइयत–बहिर्मुखी धर्म / जैन और बौद्ध-अंतर्मुखी धर्म / निष्काम कर्मयोग–बहिर्मुखी के लिए / कर्म-संन्यास-अंतर्मुखी के लिए / अंतर्मुखी रमण की अक्रिया / बहिर्मुखी की बेचैनी / चित्त दशा-कर्म-अभिमुख या अकर्म-अभिमुख / आलस्य है-श्रम से बचाव / विश्राम है-शांत तेजस्विता / कर्म-संन्यास है विश्राम / कर्म-त्याग के पहले निष्काम कर्म की भूमिका / सीधे कर्म-त्याग से वासना के शेष होने की संभावना / अर्जुन की चाह-कर्म छोड़कर भाग जाए / पलायन नहीं-रूपांतरण / कृष्ण जैसे सदगुरु से बचना मुश्किल / दुख में कर्म-त्याग आसान है | अर्जुन की दुविधा-एक ही परिवार का बंटा होना / सुख में कर्म-त्याग क्रांति है।
वासना अशुद्धि है ... 313
इंद्रियजय-आत्मवान होने से / श्रेष्ठ का आगमन / आत्मा को सबल करना / पवित्रता बल है-चेतना का / अशुद्धि है-सुख के लिए पराश्रित होना / यांत्रिक आदतों से जड़ता का आना / पराश्रित सुख निर्बल कर जाते हैं / वासना अशुद्धि है / देहशून्यता-वासनाशून्यता-प्रभु से एकात्मता | अहंशून्य व्यक्ति-नीति और धर्म के पार / जीसस, मोहम्मद और राम-नैतिक और मर्यादित / विकसित श्रोता उन्हें न मिले थे / कर्म-संन्यास के दो अर्थ-कर्म-त्याग और कर्तापन-त्याग को समझाएं? / महावीर के भीतर कर्ता शून्य हुआ तो बाहर कर्म गिर गए / सब विराट से हो रहा है । मैं ना-कुछ-शून्यवत / विराट जीवन-मैं ना-कुछ-तो कर्ता विसर्जित / सब नियतिवश–तो कर्ता शून्य / बुद्ध ने शून्यता का प्रयोग किया / हिंदुओं ने नियति का प्रयोग किया / आत्म-ज्ञान से भी कर्ता गिर जाता है / कर्म-संन्यास की बहिर्व्याख्या-कर्म-त्याग / कर्म-संन्यास की अंतर्व्याख्या कर्ता-त्याग / कृष्ण कर्म-संन्यास को अर्जुन के लिए कठिन क्यों बता रहे हैं? / फलाकांक्षा छुट जाए, तो कर्ता नहीं बचता / कर्ताशून्य कर्म अभिनय बन जाता है / कर्ता का रस-फल में कर्म में नहीं / फल-लोलुपता-रिश्वत का आधार / अर्जुन के लिए कर्म-त्याग कठिन है / क्षत्रिय होना अर्जुन की नियति बन चुका है / कर्म-त्याग ब्राह्मण के लिए सरल / जीवन का अलग-अलग प्रशिक्षण / क्षत्रिय का निखार-सघन कर्म में।