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गीता-दर्शन अध्याय 5
संन्यास की घोषणा ... 269
निर्णय की प्रसव-पीड़ा / बने-बनाए निष्कर्ष / खोज और श्रम से निखार / अर्जुन खोज से बचना चाहता है / मैं उलझा हूं-इसका बोध / सीखने की पात्रता / पूर्व-तैयारी के लिए श्रम / दो मार्गः कर्म-संन्यास और निष्काम कर्म / कर्म-पानी पर खींची गई लकीरों जैसे हैं / असारता का बोध / बोध से कर्मों का छूट जाना / फलाकांक्षा की व्यर्थता का बोध / फलाकांक्षा दुख है / सुख का आश्वासन / परिणाम-सदा दुख / झेलते चले जाना—सुख की आशा में / योग अर्थात अभी और यहीं जीने की कला / फलाकांक्षाशून्य व्यक्ति सदा तृप्त / तब जीवन एक अभिनय है / अर्जुन कर्म-केंद्रित व्यक्ति / अर्जुन के लिए दूसरा मार्ग ठीक / कवि, चित्रकार और दार्शनिक के लिए पहला मार्ग ठीक / पहला मार्गः अंतर्मुखी के लिए / दूसरा मार्गः बहिर्मुखी के लिए / आज के युग के लिए कौन-सा मार्ग अनुकूल है? / आज का युग बहिर्मुखता-प्राधान्य वाला / उपनिषदकालीन युग अंतर्मुखी था / ब्राह्मण शिखर पर था / आज बहिर्मुखी धर्म की जरूरत है / आज बहिर्मुखी व्यक्ति अत्यल्प हैं / युगानुकूल धर्म की अवतारणा / आज राजपथ होगा—बहिर्मुखी संन्यास का / अंतर्मुखी-पथ पतली पगडंडी हो गई है / आज अंतर्मुखी धर्म पिछड़ जाएगा / ईसाइयत फैली-अपनी बहिर्मुखता के कारण / पश्चिम में अंतर्मुखता बढ़ेगी / पूरब बहिर्मुखी होता जाएगा / निष्कामकर्मी गृहस्थ-भीतर से संन्यासी ही है / संन्यास की बाह्य घोषणा उपयोगी है / सतत स्मरण की चोट / विचार को कृत्य बनाएं।
निष्काम कर्म ... 283
राग और द्वेष—एक ही शक्ति की दो दिशाएं / द्वंद्वातीत होने पर निष्काम कर्म फलित / पश्चिम का मनोविज्ञान-रुग्ण लोगों पर निर्मित / पूरब का मनोविज्ञान–बुद्ध पुरुषों के अनुसार निर्मित / पश्चिम में रुग्ण पर ध्यान / भारत ने श्रेष्ठतम को आधार बनाया / खेलने का आनंद-निष्कामता के कारण / खेल की ताजगी / काम का बोझ / आनंद की सहज अभिव्यक्ति / उत्सव-भाव / राग-द्वेष-शून्य ऊर्जा सजन करती है / प्रकृति में कहीं भी कोई राग-द्वेष नहीं है / जीवन-ऊर्जा का नर्तन है / परमात्म-समर्पित जीवन ही निष्काम कर्मयोग है / सहज प्रौढ़ता-पके पत्ते का गिरना / सृजनात्मक जीवन ही धार्मिक जीवन है / जीवन में सकाम कर्म और निष्काम कर्म में तालमेल कैसे हो? / न किया जा सकता है, न जरूरी है / निष्काम कर्म का आनंद मिल जाए तो सकाम कर्म असंभव / सकाम कर्म-अंधे आदमी की दुनिया / कर्म में आनंद है / परमात्मा और संसार का अनुभव साथ-साथ नहीं होता / ज्ञानी और अज्ञानी के बीच संवाद की कठिनाई / रस्सी में दिखा सांप-दोनों में तालमेल असंभव / समझौता अर्थात झूठ / सत्य के टुकड़े नहीं होते / भेद का कारण-मूढ़ता / अनेक मार्ग-और अज्ञानी की अड़चन / सब मार्ग यदि सही-तो चुनाव करना कठिन / महावीर का स्यातवाद-यह भी ठीक, वह भी ठीक / महावीर से राजी होना मुश्किल है / गीता जीवंत संवाद है।