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अकंप चेतना 385
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स्वयं में ठहर गई चेतना / प्रिय-अप्रिय, राग-विराग में कंपित मन / प्रिय क्या? अप्रिय क्या? / तृप्ति का भ्रम / दूर के ढोल सुहावने / मिलते ही व्यर्थ हो जाता है / दो विपरीत के बीच साक्षी को साधना / यांत्रिक प्रतिक्रियाओं के प्रति होश / हमारे सुख-दुख - बिजली की तरंगें मात्र / अकंप चेतना और प्रभु - मिलन / समता का संशयरहित होने से क्या संबंध है? / संशय भी कंपन है / कंपन के दो द्वार-भाव और विचार / आस्तिक, नास्तिक — दोनों कंपित / न पक्ष न विपक्ष / धार्मिक व्यक्ति अकंपित होता है / विश्वास अविश्वास का कंपन / मतांधता और भय / विपरीत से भयभीत — घंटाकर्ण / सेफ्टी मेजर्स – सुरक्षा के इंतजाम / तर्क और विवाद की व्यर्थता / विश्वास और संदेह जुड़े हुए हैं / किसी भी द्वार से तटस्थ, चुनावरहित हो जाना है / आसक्ति की प्रक्रिया / विषय-वस्तु और मनोवासना का मिलना / मनोवासना की निष्क्रियता से अनासक्ति / होश से निर्वासना / वृत्तियों के प्रति जागरूकता / होश है पहरेदार / चारों ओर से विषय-वस्तुओं का चित्त पर आघात / वासना और आसक्ति का जाल / वासनाओं के थपेड़े / वृत्तियों के दो हिस्से – वालंटरी और नान-वालंटरी / स्वेच्छा-सीमा में ही कामवासना के प्रति जाग जाना सरल है / विज्ञान भैरव तंत्र की एक सौ बारह विधियां / मध्य में रुकना / द्वैत में रुकना–अद्वैत में प्रवेश / इंद्रिय-सुख क्षणिक हैं / सुख का आभास - मूर्च्छा के कारण / सुखों के इंद्रधनुष / मिले हुए में अरुचि / अभाव का आकर्षण / मनुष्य का भागा हुआ पन / सुखों की क्षणभंगुरता की पीड़ा / स्व-स्थित चेतना - परम सत्ता में प्रवेश ।
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काम से राम तक...399
योगी अर्थात वह जो काम-क्रोध के पार हुआ / काम-क्रोध संयुक्त वेग हैं / दूसरे से सुख मिलने की आशा / वासना तृप्ति से विषाद / काम अवरोध क्रोध / काम-केंद्रित मनुष्य की पीड़ा / समृद्ध देशों में यौन स्वातंत्र्य से विक्षिप्तता में वृद्धि / काम - विकृतियों का कारण / बाल-विवाह के अभाव में युवा विद्रोह का जन्म / सृजन क्षमता का ह्रास / काम का न दमन-न अति भोग / काम का अतिक्रमण / फ्रायड का निष्कर्ष : मनुष्य आनंदित नहीं हो सकता / बुद्ध पुरुषों का निष्कर्ष : मनुष्य परमानंद को पा सकता है / पश्चिम की मान्यता : काम-मुक्ति संभव नहीं / दायित्व-हीनता / काम-अतिक्रमण के सूत्र - मिलने पूरब में / एक-दूसरे से सुख की भीख मांगना / आनंद के आंतरिक स्रोत पर - वासना से मुक्ति / काम-ऊर्जा पर ध्यान / कुंडलिनी अर्थात काम-ऊर्जा का अंतर्गमन / अंतर्गमन से क्षमा और आनंद का जन्म / बहिर्गमन से विषाद और क्रोध का जन्म / प्राचीन गुरुकुलों में ब्रह्मचर्य की शिक्षा / काम-केंद्र पर ध्यान / काम है— पर निर्भरता / राम है— स्व-निर्भरता / काम है - बहिर्गमन / राम है— अंतर्गमन / स्वामी रामतीर्थ के शरीर से राम की नाद का गुंजन / बाहर है दुख – भीतर है सुख / बाहर खोजना – सुख, शांति, ज्ञान / बहिर्मुखता से बढ़ता हुआ तनाव / तनावों को भुलाने के रासायनिक उपाय / मूर्च्छा की खोज / तीन प्रकार की खोजें - सुख की, ज्ञान की, विश्राम की / भीतर है तृप्ति / बीज में छिपा है वृक्ष / छिपी संभावनाओं का प्रगटीकरण / महत्वाकांक्षाओं की दौड़ में भटकना / दौड़ का अभ्यास – फिर विश्राम कठिन / सब कुछ भीतर है / अंतस प्रवेश के प्रयोग / न करना सीखना / विराम के क्षण – निर्विकार के क्षण / आत्म-स्मरण / छुट्टी के दिन की भाग-दौड़ / हॉली - डे - पवित्र दिन - विश्राम का दिन / आनंद हमारा स्वभाव है।