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गीता दर्शन भाग-28
है व्यक्ति में, तो वासना का कोई भी धुआं कहीं नहीं होता; कोई | | कंपाती है, तो मौत का डर पैदा होता है। मांग नहीं होती। परम तृप्ति होती है, वही होने में, जो हैं। वही, जो । इसलिए यह भी खयाल में ले लें, जो वासना से मुक्त हुआ, वह है, उसके साथ पूरा तालमेल, सामंजस्य होता है। इस ज्ञान यज्ञ के मृत्यु के भय से मुक्त हो जाता है। जो दीए की लौ हवा के धक्कों लिए कृष्ण ने बहुत-सी विधियां कही हैं।
| से मुक्त हुई, उसे क्या मौत का डर? मौत का डर खो गया। अंत में वे कहते हैं, यह सर्वश्रेष्ठ है अर्जुन! छोड़ वासनाओं को, | । लेकिन जब तूफान की हवा बहती है, तो दीया कंपता और डरता छोड़ भविष्य को, छोड़ सपनों को, छोड़ अंततः अपने को। ऐसे जी, है कि मरा, मरा। लौट-लौटकर आता है अपनी जगह पर; हवा जैसे प्रभु तेरे भीतर से जीता। ऐसे जी, जैसे चारों ओर प्रभु ही जीता। धक्के दे-देकर अपनी जगह से च्युत कर देती है। ठीक ऐसा हमारी ऐसे कर, जैसे प्रभु ही करवाता। ऐसे कर, जैसे प्रत्येक करने के अज्ञान की अवस्था में चित्त होता है। दीए की ज्योति वासना की पीछे प्रभु ही फल को लेने हाथ फैलाकर खड़ा है। तब ज्ञान यज्ञ | | वायुओं में जोर से कंपती है। कंपती ही रहती है; कभी ठहर नहीं घटित होता है। और ज्ञान यज्ञ परम मुक्ति है, दि अल्टिमेट फ्रीडम। | पाती। एक कंपन छूटता, तो दूसरा कंपन शुरू होता है। एक वासना
अज्ञान बंधन है, ज्ञान मुक्ति है। अज्ञान रुग्णता है, ज्ञान हटती, तो दूसरा झोंका वासना का आता है। कहीं कोई विराम नहीं, स्वास्थ्य है।
कहीं कोई विश्राम नहीं। बस, यह दीए का कंपन, और पूरे वक्त यह स्वास्थ्य शब्द बहुत अदभुत है। दुनिया की किसी भाषा में मौत का डर। उसका ठीक-ठीक अनुवाद नहीं है। अंग्रेजी में हेल्थ है; और-और जितना वासनाग्रस्त आदमी, उतना मौत से भयभीत। जितना पश्चिम की सभी भाषाओं में हेल्थ से मिलते-जुलते शब्द हैं। हेल्थ | | वासनामुक्त आदमी, उतना मौत से निर्भय, अभय। वासना ही भय का मतलब होता है, हीलिंग, घाव का भरना। शारीरिक शब्द है: है मत्य में। जितनी वासना का कंपन, उतना आत्मिक रोग, उतना गहरे नहीं जाता। स्वास्थ्य बहुत गहरा शब्द है। उसका अर्थ हेल्थ | | स्प्रिचुअल डिसीज, उतनी ही आध्यात्मिक रुग्णता। क्योंकि कंपन ही नहीं होता; हेल्थ तो होता ही है, घाव का भरना तो होता ही है। | रोग है। कंपने का अर्थ ही है, स्थिति में नहीं है; कोई भी धका जाता। स्वास्थ्य का अर्थ है, स्वयं में स्थित हो जाना, टु बी इन वनसेल्फ। | कृष्ण कहते हैं, ज्ञान यज्ञ परम मुक्ति है; क्योंकि ज्ञान परम आध्यात्मिक बीमारी से संबंधित है स्वास्थ्य।
| स्वास्थ्य है। कैसे होगा उपलब्ध? वासना से जो मुक्त जो जातास्वास्थ्य का अर्थ है, स्वयं में ठहर जाना। इंचभर भी न हिलना, | मांग से, चाह से—वह ज्ञान की अग्नि में से गुजरकर खालिस सोना पलकभर भी न कंपना। जरा-सा भी कंपन न रह जाए भीतर। कंपन, हो जाता है। यह परम यज्ञ कृष्ण
सूत्र में कहा। वेवरिंग, जरा भी न रह जाए। बस, तब स्वास्थ्य फलित होता है! वेवरिंग क्यों है, कंपन क्यों है, कभी आपने खयाल किया?
जितनी तेज इच्छा होती है, उतना कंपन हो जाता है भीतर। इच्छा प्रश्नः भगवान श्री, बत्तीसवें श्लोक में कहा गया है नहीं होती, कंपन खो जाता है। इच्छा ही कंपन है। आप कंपते कब | | कि बहुत प्रकार के यज्ञ ब्रह्मणो मुखे, ब्राह्मण मुख से हैं? दीया जलता है। कंपता कब है? जब हवा का झोंका लगता है। विस्तार किए गए हैं। गीता प्रेस ने ब्रह्मणो मुखे का हवा का झोंका न लगे, तो दीया निष्कंप हो जाता, ठहर जाता, | | हिंदी अनुवाद किया है, वेद की वाणी में। कृपया स्वस्थ हो जाता। अपनी जगह हो जाता। जहां होना चाहिए, वहां बताएं कि ब्रह्मणो मखे. ब्राह्मण मख से यजों के हो जाता। हवा के धक्के लगते हैं, तो ज्योति वहां हट जाती, जहां विस्तार होने का आप क्या अर्थ लेते हैं? नहीं होना चाहिए। जगह से च्युत हो जाती; रुग्ण हो जाती; कंपित हो जाती। और जब कंपित होती है, तो बुझने का, मौत का डर पैदा हो जाता है। जोर की हवा आती, तो ज्योति बुझने-बुझने को, ल के मुख से का बिलकुल ठीक-ठीक अनुवाद नहीं मरने-मरने को होने लगती है।
* है, वेद के मुख से। या फिर वेद का अर्थ बहुत ठीक ऐसे ही इच्छाओं की तीव्र हवाओं में, वासना के तीव्र ज्वर विस्तीर्ण करना पड़े। में कंपती है चेतना, कंपित होती है। और जब वासना बहुत जोर से ब्रह्म के मुख से बहुत-बहुत योगों का आविर्भाव हुआ है।
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