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________________ गीता दर्शन भाग-200 उपद्रव मचाते हैं। इसका हम क्या उपयोग कर सकते हैं, उसे करने में लगें। और आगे अज्ञान अज्ञान है, ऐसा जिसने जाना, उसके ज्ञान की पहली क्यों में न जाएं। क्योंकि क्यों का कोई अंत नहीं है, हमारा अंत है। किरण फूट गई। अज्ञान अज्ञान है, ऐसा जिसने पहचाना—यह हम क्यों पूछते-पूछते समाप्त हो जाएंगे। बहत बडा ज्ञान है. यह छोटा ज्ञान नहीं है। अज्ञान को जानना कि इसलिए बद्ध के पास जब भी कोई आता. तो वे कहते कि तम अज्ञानी हूं मैं, बहुत बड़ी घटना है, शायद सबसे बड़ी घटना है। | | क्रांति के लिए आए, अपने को बदलने के लिए आए, या कि सिर्फ फिर जो भी घटेगा, इससे छोटा है। जवाब चाहिए? अगर सिर्फ जवाब चाहिए, तो किताबों में काफी जिस व्यक्ति को पता चल गया कि मैं सोया हूं, उसका जागरण हैं, पंडितों के पास बहुत हैं; फिर मुझे परेशान मत करो। अगर शुरू हो गया। क्योंकि नींद में कभी पता नहीं चलता कि मैं सोया | जीवन में क्रांति चाहिए, तो फिर वही पूछो, जिससे क्रांति घटित हो हूं। अगर आपको पता चल गया कि नींद में हूं, तो पता चल गया सकती है। वह मत पूछो, जिसका कोई प्रयोजन नहीं, असंगत है, है कि जागा हूं। क्योंकि पता किसको चलेगा? आपने जाना कि इररेलेवेंट है। अज्ञानी हूं, तो वह जानने वाला भीतर खड़ा हो गया, जो अज्ञान को इसलिए बुद्ध तो जिस गांव में जाते, उस गांव में डुंडी पिटवा जानता है। और जो अज्ञान को जानता है, वह ज्ञान है। टु बी अवेयर | देते, ग्यारह प्रश्न कोई न पूछे। ये प्रश्न कोई पूछे ही न। क्योंकि इन आफ वन्स इग्नोरेंस, अपने अज्ञान के प्रति होश से भर जाना पहला प्रश्नों को पूछने वाला पूछता ही चला जाता है। कदम है। पहला भी, शायद अंतिम भी। क्योंकि फिर सब इसी से नहीं, असली सवाल यह नहीं है कि आलस्य और अहंकार क्यों निकलता है। अंकुर फूट गया। क्रांति घटित हो गई। बीज टूट गया, | हैं। असली सवाल यह है कि कैसे मिटेंगे? व्हाई दे आर, यह अंकुर फूट गया; अब वृक्ष बड़ा हो जाएगा। वह अंकुर का ही | असली सवाल नहीं है। क्यों हैं? हैं। विस्तार है, कोई नई घटना नहीं है। लेकिन जिंदगी में हम कभी ऐसे सवाल नहीं पूछते। एक आदमी असली क्रांति तो उस वक्त है, जब बीज टूटता है और अंकुर | को मकान बनाना है, तो वह यह नहीं पूछता कि नींव में पत्थर क्यों मिट्टी की पर्तों को, अंधेरे को निकालकर, तोड़कर, बाहर फूटता है | हैं ? निकालकर बाहर कर दें। एक आदमी को आग को बुझाना है, रोशनी में; सूरज को झांकता है और देखता है। असली क्रांति घट तो वह यह नहीं पूछता कि आग पानी डालने से क्यों बुझती है? गई। अब तो फिर ठीक है। अब यही वृक्ष बड़ा हो जाएगा। इसमें पानी डालता है और बुझा देता है। एक आदमी को टी.बी. हो गया फूल लगेंगे, फल लगेंगे; सब होगा। लेकिन अब रेवोल्यूशन नहीं | है, तो वह डाक्टर से यह नहीं पूछता कि इस इंजेक्शन के देने से है कोई। रेवोल्यूशन तो हो गई, क्रांति तो हो गई; जब बीज टूटा, | टी.बी. क्यों मिटता है? वह इंजेक्शन लेता है और मिटा देता है। उसी वक्त हो गई। लेकिन जहां हम परमात्मा की तरफ आते हैं, वहां हम क्यों पूछते पहली क्रांति और आखिरी क्रांति अज्ञान का बोध है। | हैं। कुछ कारण होना चाहिए। असल में क्यों हमारी पोस्टपोन करने आलस्य और अहंकार के कारण यह बोध नहीं हो पाता। | की तरकीब है। क्यों हम पूछ सकते हैं अंतहीन। और अंतहीन हम आप पूछ सकते हैं कि आलस्य और अहंकार क्यों हैं? मैं | स्थगन कर सकते हैं। क्योंकि जब तक पूरा पता न चल जाए, तब कहूंगा, हैं। और जो भी क्यों का उत्तर दे, वह नासमझ है। नासमझ तक हम बदलें भी कैसे! जब तक पूरा पता न चल जाए, तब तक इसलिए कि जो भी उत्तर होगा, उसके लिए भी पूछा जा सकता है, | हम बदलें भी कैसे! क्यों? उसका जो उत्तर दे, वह और भी ज्यादा नासमझ है। क्योंकि धर्म दर्शन नहीं है। धर्म बहत प्रेक्टिकल है। धर्म बहत ही फिर भी पूछा जा सकता है कि वह क्यों? इनफिनिट रिग्रेस! व्यावहारिक है। धर्म इसीलिए साइंटिफिक है, वैज्ञानिक है। धर्म फिलासफी इसी मूढ़ता में पड़ी है। सारी दुनिया की फिलासफी, एक प्रयोगशाला है। मैं जो भी कह रहा हूं, वह स्पेकुलेटिव नहीं है; सारी दुनिया का दर्शनशास्त्र इसी उपद्रव में उलझा हुआ है। हर चीज वह सिद्धांतवादी नहीं है। उसमें नजर इतनी ही है कि आपको वे मूल पर हम पूछते चले जाते हैं, क्यों? क्यों? क्यों? और इसका कोई सूत्र खयाल में आ जाएं, जिनसे जिंदगी बदली जा सकती है। अंत नहीं हो सकता। आलस्य और अहंकार, मिथ्या ज्ञान का सहारा है। मिथ्या ज्ञान धर्म इस मूढ़ता में नहीं पड़ता। वह कहता है, ऐसा है। अब अज्ञान को बचाने का आधार है। अहंकार और आलस्य छोड़ें, 11961
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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