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मृत्यु का साक्षात
आत्मा अमर है। अब खतरा है। बीज कह रहा है कि मैं वृक्ष हूं। मैं | अब होने की कोई जरूरत न रही। अब बीज जिद करेगा कि हूं ही।
उधार ज्ञान मिथ्या ज्ञान है । अपना ज्ञान सम्यक ज्ञान है, राइट नाज है। स्वयं जाना, तो वृक्ष हो जाएंगे। दूसरे के जाने को पकड़ा और कहा कि मेरा ही जानना है, तो फिर बीज ही रह जाएंगे । तो यह मत पूछिए, अज्ञान का कारण क्या है ? अज्ञान का कारण तो यही है कि ज्ञान होने के लिए अज्ञान से ही गुजरना अनिवार्य है। जाने के पहले नींद से गुजरना अनिवार्य है। सुबह के पहले रात गुजरना अनिवार्य है।
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सुबह होगी ही नहीं, अगर रात न हो। कैसे होगी सुबह ? रात न हो, तो सुबह न होगी। इसलिए जो गहरा देखते हैं, वे मानते हैं, रात सुबह के आने की तैयारी है, जस्ट प्रिपरेशन; सुबह हो सके, इसकी पूर्व भूमिका है। सुबह के लिए ही रात है गर्भ, सुबह है जन्म। रात प्रेगनेंट है सुबह से; उसके गर्भ में छिपी है सुबह। रात मां है, सुबह बेटा है। अज्ञान मां है, ज्ञान बेटा है। उससे ही होगा।
नहीं कोई विरोध है। कारण की कोई बात नहीं। ऐसा नियम है, अगर विज्ञान की भाषा में कहें तो ।
अगर वैज्ञानिक से पूछें कि हाइड्रोजन और आक्सीजन मिलकर पानी क्यों बनता है, क्या कारण है? तो वह कहेगा, बनता है; कारण नहीं है। इट इज़ सो, ऐसा है, ऐसी प्रकृति है । विज्ञान कहेगा, ऐसा है। ऐसा जीवन का नियमन है, दिस इज़ दिला, अल्टिमेट ला, आखिरी नियम है। अंडे से मुर्गी पैदा होती है, ऐसा है ।
एक वैज्ञानिक से कोई पूछ रहा था कि अंडे और मुर्गी में फर्क क्या है? तो उसने कहा कि अंडा मुर्गी के पैदा होने की राह है, मार्ग है, दिवे; मुर्गी के पैदा होने का ढंग ।
ज्ञान अज्ञान से जगता है, अज्ञान से पैदा होता है। रुकावट पड़ती है मिथ्या ज्ञान से । इसलिए मैं बताना चाहूंगा कि मिथ्या ज्ञान का कारण क्या है? उसका कारण है, आलस्य, लिथार्जी।
दूसरे का ज्ञान मुफ्त में मिल जाए, तो अपने ज्ञान को खोजने की मेहनत कौन करे, क्यों करे ! प्रमाद। मुफ्त मिल जाए, तो खरीदने कौन जाए! सड़क पर पड़ा हुआ मिल जाए !
लेकिन ज्ञान के साथ यह खराबी है कि सड़क पर पड़ा हुआ कभी नहीं मिलता। और मिलता हो, तो झूठा सिक्का होगा। ज्ञान मिलता स्वयं की चेष्टा से है, श्रम से है, तपश्चर्या से है। अन्यथा नहीं
मिलता है।
आलस्य मिथ्या ज्ञान को पकड़ा देता है। कहता है, क्या जरूरत! जब कृष्ण को पता है, तो हम और नाहक क्यों खोजें? कृष्ण का ही वाक्य रट लें, न हन्यमाने - रट लें कृष्ण को ही, न हन्यते हन्यमाने शरीरे नहीं मरता शरीर के मरने से कोई । कंठस्थ कर लें। नाहक ध्यान, तप, योग, इस उपद्रव में हम क्यों पड़ें? जब तुम्हें पता ही है, तुमने हमें बता दिया; हमने याद कर लिया। लेकिन यह होगी मेमोरी, ज्ञान नहीं । यह होगी स्मृति, याददाश्त, ज्ञान नहीं ।
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आलस्य कारण है मिथ्या ज्ञान का। और अहंकार कारण है मिथ्या ज्ञान का। और आलस्य और अहंकार एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। जहां-जहां अहंकार, वहां-वहां आलस्य । जहां-जहां आलस्य, वहां-वहां अहंकार । सघन हो गया आलस्य ही तो अहंकार है। फैल गया अहंकार ही तो आलस्य है।
अहंकार क्यों? क्योंकि मैं अज्ञानी हूं, ऐसा मानना अहंकार के लिए कठिन पड़ता है । और जो यह नहीं मान पाता कि मैं अज्ञानी हूं, वह तो ज्ञान के अंडे को ही, बीज को ही इनकार कर रहा है। मुर्गी तो कभी फिर पैदा नहीं होगी।
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इसलिए ज्ञान की पहली शर्त है, अज्ञान की स्वीकृति । और अज्ञान को बचाना हो, तो पहली शर्त है, अज्ञान का अस्वीकार । अज्ञान है ही नहीं; मैं जानता ही हूं; फिर बात ही समाप्त हो गई।
इसलिए उपनिषद कहते हैं, अज्ञानी तो भटकते ही हैं, ज्ञानी और भी बुरी तरह भटक जाते हैं । अज्ञानी तो अंधकार में पड़ते ही हैं, ज्ञानी महाअंधकार में पड़ जाते हैं। बड़ा अदभुत वचन है।
किन ज्ञानियों की बात हो रही है? उन ज्ञानियों की बात हो रही है, जो मिथ्या ज्ञानी हैं। मिथ्या ज्ञान का कारण है, आलस्य । मुफ्त मिले, हम क्यों श्रम करें! पचा- पचाया मिले, तो हम क्यों चबाएं ! हम ऐसे ही लील जाएं। यह नहीं हो सकता।
कारण है अहंकार । मन मानने को राजी नहीं होता कि मैं अज्ञानी हूं। कहता है, मैं जानता ही हूं। जो हम नहीं जानते, उसको भी हम कहते हैं कि हम जानते हैं। हम स्वीकार करने को तैयार ही नहीं होते कि हम अज्ञानी हैं। हम अपने अज्ञान को भी सिद्ध करने में लगे | रहते हैं कि यही ज्ञान है।
सारी दुनिया में जितने विवाद हैं, वे अज्ञान को सिद्ध करने के विवाद हैं। इस दुनिया में जितने झगड़े हैं, वे सत्य के झगड़े नहीं हैं; वे अज्ञानियों के अपने अज्ञान को सिद्ध करने के झगड़े हैं। और अज्ञानी अपने अज्ञान को सिद्ध करने के लिए ज्ञानियों कंधों तक पर बंदूक रख लेते हैं! उनके पीछे खड़े हो जाते हैं और