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________________ गीता दर्शन भाग-2 के भ्रम में मत पड़ें। क्योंकि दूसरे को जानने के भ्रम में वही पड़ता है, जो स्वयं को नहीं जानता है। बाप की तो आग भड़क गई। क्रोध भारी हो गया। और कहा, यह मैंने सोचा भी न था कि तू अपने ही बाप से इस तरह की बातें बोलेगा ! बुद्ध जैसा बेटा भी घर में हो, तो बाप के लिए अभिशाप मालूम पड़ता है! अज्ञान सब वरदानों को अभिशाप कर लेता है, सब फूलों को कांटा बना लेता है। ज्ञान कांटों को भी फूल बना लेता है । दृष्टि बदली कि सब बदल जाता है। जिसे परलोक में आनंद है, अंतःलोक में आनंद है, उसे बाहर जगत में दुख की कोई रेखा भी शेष नहीं रह जाती। और जिसे बाहर के लोक में दुख है, उसे भीतर के लोक का कोई पता ही नहीं होता है, आनंद की तो बात मुश्किल है। इसलिए कृष्ण कहते हैं अर्जुन से कि ज्ञानरूपी अमृत को पाकर आनंद की वर्षा हो जाती है। अज्ञानरूपी विष में जीते हुए सिवाए दुखों के गहन सागर, अतल सागर के अतिरिक्त कुछ भी हाथ नहीं लगता है। प्रश्न : भगवान श्री, आपने अभी कहा कि ज्ञानी अपने प्रति जागा हुआ है और अज्ञानी अपने प्रति सोया हुआ है, बेहोश है। कृपया बताएं कि अज्ञानी की बेहोशी के क्या-क्या कारण हैं? अ ज्ञानी की बेहोशी और निद्रा का कारण क्या है? ज्ञानी होश और जागरण का भी कारण क्या है? तीन बातें हैं। एक, अज्ञान अकारण है। पहली बात, कठिन पड़ेगी समझनी, अज्ञान अकारण है। अकारण क्यों ? क्योंकि अज्ञान स्वाभाविक है, नेचुरल है। स्वाभाविक क्यों ? जागने के पहले निद्रा स्वाभाविक है। होश के पहले बेहोशी स्वाभाविक है। जन्म के पहले गर्भ स्वाभाविक है। युवा होने के पहले बचपन स्वाभाविक है। बूढ़े होने के पहले जवानी स्वाभाविक है। अज्ञान, ज्ञान का विरोध ही नहीं है, ज्ञान की पूर्व अवस्था भी है। जब हम अज्ञान को ज्ञान के विरोधी की तरह लेते हैं, तब कठिनाई शुरू होती है। अज्ञान ज्ञान का विरोध नहीं है। ज्ञान का विरोध, मिथ्या ज्ञान है । यह जरा कठिन पड़ेगा। फाल्स नालेज, मिथ्या ज्ञान, ज्ञान का विरोध है। अज्ञान ज्ञान का अभाव मात्र है। एक आदमी सोया है। सोना जागने के विपरीत नहीं है; सिर्फ | जागने की पूर्व अवस्था है। जो भी सोया है, वह जाग सकता है। सोने में से जागना निकलता है। सोना बीज है; जागना अंकुर है। | बीज दुश्मन नहीं है अंकुर का; बीज अंकुर की भूमि है, वहीं से तो पैदा होगा। लेकिन हम आमतौर से अज्ञान को ज्ञान के विपरीत मान लेते हैं। इसलिए कठिनाई में पड़ते हैं। हम मान लेते हैं, अज्ञान विरोध है। अगर अज्ञान बुरा है, उसे मिटाना है, तो फिर है ही क्यों ? उसका कारण क्या है ? नहीं; अज्ञान विपरीत नहीं है ज्ञान अज्ञान ज्ञान का पहला चरण है। अज्ञान ज्ञान का बीज है । और परमात्मा भी सीधा ज्ञान नहीं ला सकता, अज्ञान से ही ला सकता है। वह भी सीधा वृक्ष नहीं ला सकता, बीज से ही ला सकता है। असल में बीज वृक्ष का बिल्ट-इन-प्रोग्रैम है। बीज जो है, वह होने वाले वृक्ष का ब्लूप्रिंट है। अब वैज्ञानिक कहते हैं कि बीज को अगर हम पूरा जान सकें, तो हम चित्र बनाकर बता सकते हैं कि वृक्ष की शाखा कितनी बाएं घूमेगी, कितनी शाखाएं होंगी, कितने पत्ते होंगे, कितने फल लगेंगे, | कितने फूल कितने बीज । अगर हम बीज का पूरा रहस्य जान सकें, | तो हम वृक्ष की पूरी तस्वीर बनाकर रख देंगे कि ऐसा होगा । और वैसा ही होगा। लेकिन बीज को तोड़ना पड़ता है वृक्ष होने के पहले। अगर बीज बीज ही रहने की जिद करे, तब खतरा है। बीज के होने में खतरा है। बीज तो सहयोगी है वृक्ष के लिए। अगर ठीक से समझें | तो बीज छिपा हुआ वृक्ष है। अज्ञान छिपा हुआ ज्ञान है; दुश्मन नहीं, मित्र। लेकिन बीज अगर जिद करे कि मैं बीज ही रहूंगा, तब | दुश्मन हुआ। बीज कह दे कि मैं अपनी खोल को तोडूंगा नहीं, मैं मिट्टी मिलूंगा नहीं, मैं मिटूंगा नहीं, मैं तो रहूंगा, तब फिर | बिल्ट-इन-प्रोग्रैम की दुश्मनी शुरू हो गई। अज्ञान अपने में विरोध नहीं है। अज्ञान तो तब विरोध बनता है, | जब अज्ञान कहता है कि मैं रहूंगा। और कब कहता है अज्ञान ? जब मिथ्या ज्ञान से भरता है तब कहता है कि मैं रहूंगा। अज्ञान तब कहता है कि मैं मिटूंगा नहीं, क्योंकि मैं तो खुद ही ज्ञान हूं। गीता पढ़ ली किसी ने । कृष्ण ने जो कहा, कंठस्थ कर लिया। पता नहीं कुछ मालूम नहीं कुछ। जाना नहीं कुछ। कहने लगे, 194
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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