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ॐ मृत्यु का साक्षात ®
बात क्या है?
| अभिशाप भी वरदान हो जाते हैं। कृष्णमूर्ति जैसे आदमी को साफ पता है कि जहां भी प्रेम है; जहां । लेकिन अदभुत है मन! एक युवक ने कल संन्यास लिया। मां प्रेम की, सुख की झलक आई, वहां तत्काल पता लगता है कि जिसे | | को, पिता को, वरदान मालूम पड़ना चाहिए। लेकिन मां मेरे पास हम प्रेम कर रहे हैं, वह भी मरेगा; जो प्रेम कर रहा है, वह भी मर | आई। छाती पीटकर रोती है; कहती है, मैं जहर खाकर मर जाऊंगी; जाएगा; बीच में जो प्रेम बह रहा है, वह भी मर जाएगा। | ये कपड़े उतरवा दो! वह मां कहती है, मेरे तीन बच्चे पहले मर
प्रेम के सघन क्षण में मृत्यु बहुत प्रगाढ़ होकर दिखाई पड़ती है। चुके। मेरा मन उससे पूछने का होता है, लेकिन पूछता नहीं कि प्रेम सुख लाता है, पीछे से मृत्यु का स्मरण ले आता है। जहां-जहां तीन बच्चे मर गए, तब तूने जहर नहीं खाया! और इसने अभी कुछ सुख है, वहां-वहां मौत पीछे खड़ी हो जाती है। इसलिए तो सुख भी नहीं किया, गेरुआ वस्त्र ऊपर डाले हैं, तू जहर खाकर मर क्षणभंगुर है। हम ले भी नहीं पाते, और मौत उसे हड़प जाती है। | | जाएगी? यह तेरा लड़का चोर हो जाता, तब तू जहर खाकर मरती?
जिसको भीतर के अमृत का पता नहीं, वह परलोक में तो आनंद | | यह लड़का बेईमान हो जाता, तब तू जहर खाकर मरती? यह पा ही नहीं सकता, इस लोक में भी सिर्फ दुख पाता है। लड़का पोलिटीशियन हो जाता, तब तू जहर खाकर मरती?
दूसरी बात भी कह देने जैसी है कि जो परलोक में आनंद पाता | नहीं, तब अभिशाप भी वरदान मालूम होते हैं। अभी वरदान है, वह इस लोक में भी आनंद पाता है। ये जुड़े हुए हैं। जिसे भीतर | उतरा है इस लड़के के ऊपर, मां को नाचना चाहिए; पिता को
आनंद मिला, उसे बाहर भी आनंद ही आनंद हो जाता है। ध्यान | आनंद मनाना चाहिए। फिर यह कहीं जा नहीं रहा है छोड़कर; घर रखें, उसकी सारी दृष्टि बदल जाती है।
ही रहेगा। लेकिन नहीं; अज्ञान में वरदान भी अभिशाप मालूम पड़ते जिसे भीतर आनंद नहीं मिला, उसे वसंत में भी मृत्यु नजर आती | | हैं। ज्ञान में अभिशाप भी वरदान हो जाते हैं। वह छाती पीटती है, है, पतझड़ दिखाई पड़ता है। उसे बच्चे में भी बुढ़ापे की दृष्टि, बच्चे | | रोती है। नहीं; कुछ आकस्मिक नहीं है। बड़ा स्वाभाविक है। के पीछे भी बूढ़े का जीर्ण-जर्जर शरीर दिखाई पड़ता है। उसे जवानी | | अज्ञान बड़ा स्वाभाविक है, आकस्मिक नहीं है। की तरंगों में भी मौत का गिर जाना और मिट जाना दिखाई पड़ता | | बुद्ध जैसे व्यक्ति ने भी संन्यास लिया और जब बारह वर्ष के है। उसे सुख के क्षण में भी पीछे खड़े दुख की प्रतीति होती है। जिसे | | बाद ज्ञान के सूर्य को जगाकर घर वापस लौटे, तब भी बाप को अभी पता है कि मृत्यु है, अज्ञान में सब सुख दुख हो जाते हैं। । | दिखाई नहीं पड़ा कि बेटे का जीवन रूपांतरित हुआ है। बाप बारह
ज्ञान में सब दुख भी सुख हो जाते हैं। फिर उस तरह के व्यक्ति | साल बाद आए बुद्ध को...उन्हें दिखाई न पड़ा कि लाखों लोगों की को पतझड़ में भी आने वाले वसंत की पदचाप सुनाई पड़ती है। वृक्ष जिंदगी में बुद्ध से रोशनी पहुंची है। दस हजार भिक्षु बुद्ध के साथ से सूखे गिरते पत्ते में भी नए पत्ते के अंकुरित होने की ध्वनि का बोध पीछे खड़े हैं। उनके पीत वस्त्रों में उनके भीतर का प्रकाश झलकता होता है। सांझ डूबते हुए सूरज में भी सुबह के उगने वाले सूरज की है। लेकिन बाप ने गांव के दरवाजे पर यही कहा कि मैं तुझे अभी तैयारी का पता चलता है। विदा होते बूढ़े में भी पैदा होने वाले बच्चों | भी माफ कर सकता हूं; बाप हूं। वापस लौट आ। यह भूल छोड़। के जन्म की खबर मिलती है। मृत्यु का द्वार भी उसे जन्म का द्वार | बहुत हो चुका। यह नासमझी बंद कर। मुझ बूढ़े को इस बुढ़ापे में, बन जाता है। अंधेरा भी उसे प्रकाश की पर्व भूमिका मालम पड़ती मृत्यु के निकट होने में दुख मत दे! बाप को नहीं दिखाई पड़ सका है। सुबह अंधेरा जब गहन हो जाता है, तब भी वह जानता है, आने | कि किससे वे कह रहे हैं। वाली भोर निकट है। अंधेरा उसे भोर का स्मरण; मृत्यु उसे जन्म बुद्ध हंसने लगे। बुद्ध ने कहा, गौर से तो देखें। बारह वर्ष पहले का स्मरण; दुख भी उसे सुख को लाता हुआ मालूम पड़ता है। दृष्टि | | जो घर से गया था, वही वापस नहीं लौटा है। वह तो कभी का जा बदल जाती है; सब उलटा हो जाता है।
चुका। यह कोई और है। जरा गौर से तो देखें! अज्ञान में सुख भी दुख बन जाता है। ज्ञान में दुख भी सुख बन | लेकिन बाप ने कहा, तू मुझे सिखाएगा? मैं तुझे जानता नहीं? जाता है। अज्ञान में जन्म भी मृत्यु की ही खबर है। ज्ञान में मृत्यु भी मेरा खून बहता है तेरी नसों में। मैं तुझे जितना जानता हूं, उतना कौन जन्म की ही सूचना है। अज्ञान में वरदान भी अभिशाप ही होंगे; तुझे जान सकता है? वरदान नहीं हो सकते। ज्ञान में वरदान तो वरदान होते ही हैं, बुद्ध ने कहा, आप अपने को ही जान लें तो काफी है। मुझे जानने
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