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________________ ॐ मृत्यु का साक्षात उस तरफ झांकता है तो परलोक। बाहर सिर करता है तो लोक, जैसे एक आदमी अपने मकान के दरवाजे की देहली पर बैठ भीतर सिर करता है तो परलोक। परलोक अभी और यहीं है। | जाए आंख बंद करके, तो न घर दिखाई पड़े, न बाहर दिखाई पड़े। ब्रह्म कहीं दूर नहीं, आपके बिलकुल पड़ोस में, आपके पड़ोसी | फिर एक आदमी बाहर की तरफ देखे, तो भीतर का दिखाई न पड़े। से भी ज्यादा पड़ोस में है। आपके बगल में जो बैठा है आदमी, | | फिर एक आदमी मुड़कर खड़ा हो जाए, भीतर का दिखाई पड़े, तो उसमें और आपमें भी फासला है। लेकिन उससे भी पास ब्रह्म है। | बाहर का दिखाई न पड़े। ऐसी तीन स्थितियां हुईं। आपमें और उसमें फासला भी नहीं है। लोक की, जब हम बाहर देख रहे हैं, कांशसनेस, चेतना बाहर जब जरा गर्दन झुकाई देख ली की तरफ जाती हुई। परलोक, चेतना भीतर की तरफ जाती हुई। दिल के आईने में है तस्वीरे-यार। निद्रा, चेतना किसी तरफ जाती हुई नहीं, सो गई है। परलोक यहीं बस, इतना ही फासला है, गर्दन झुकाने का। यह भी कोई | है, अभी है। फासला हुआ! कृष्ण जब कहते हैं कि परलोक में ऐसा पुरुष आनंद को उपलब्ध बाहर लोक है, भीतर परलोक है। होता है, तो क्या इसका यह मतलब है कि जिस व्यक्ति ने ब्रह्म को तो ध्यान रखें, लोक और परलोक का विभाजन समय में नहीं जाना, आत्मा की अमरता को जाना, वह मरने के बाद आनंद को है, स्थान में है। इस बात को ठीक से खयाल में ले लें। लोक और उपलब्ध होगा? अभी नहीं होगा? नहीं, अभी हो जाएगा, यहीं हो परलोक का विभाजन टाइम डिवीजन नहीं है। कि मैं मरूंगा, मरने जाएगा। की घटना या विदा होने की घटना समय में घटेगी। आज से समझें लेकिन जो व्यक्ति इस अमृत को नहीं जानता, वह उस परलोक कल मरूंगा, दस साल बाद मरूंगा, घंटेभर बाद मरूंगा-समय | में, उस भीतर के लोक में, उस पार के लोक में, कैसे आनंद को में। समय, घंटा बीत जाएगा, तब मैं मरूंगा। फिर उस मरने के बाद उपलब्ध होगा? वह तो बाहर के लोक में भी आनंद को उपलब्ध जो होगा, वह परलोक होगा। नहीं हो पाता। वह संसार में भी दुख पाता है। वह बाहर भी दुख हमने अब तक परलोक को टेंपोरल समझा है, टाइम में बांटा | पाता है और भीतर भी दुख पाता है। इसे ठीक से समझ लें। है। परलोक भी स्पेसिअल है, स्पेस में बंटा है, टाइम में नहीं। बाहर इसलिए दुख पाता है कि जिसको यह खयाल है कि मृत्यु अभी-यहीं, लोक भी मौजूद है, परलोक भी मौजूद है। पदार्थ भी | | है, वह बाहर कभी सुख नहीं पा सकता। मृत्यु का खयाल बाहर के मौजूद है, परमात्मा भी मौजूद है। अभी-यहीं! फासला समय का | सब सुखों को विषाक्त कर जाता है, पायजनस कर जाता है। बाहर नहीं, फासला सिर्फ स्थान का है। | अगर सुख लेना है थोड़ा-बहुत, तो मृत्यु को बिलकुल भूलना और स्थान का भी फासला हमारी दृष्टि का फासला है, अटेंशन | | पड़ता है। इसलिए हम मृत्यु को भुलाने की कोशिश करते हैं। का फासला है। अगर हम बाहर की तरफ ध्यान दे रहे हैं, तो लेकिन ध्यान रहे, जिसे भी हम भुलाते हैं, उसकी और याद परलोक खो जाता है। अगर हम परलोक की तरफ ध्यान दें, तो | आती है। स्मृति का नियम है, भुलाएं, याद आएगी। करें कोशिश, लोक खो जाता है। जिसे भी भुलाने की, उसकी और भी याद आएगी। किसी को भूल रात आप सो जाते हैं, तब लोक खो जाता है; परलोक शुरू नहीं जाना चाहते हैं। किसी को प्रेम किया और अब स्मृति दुख देती है; होता, लोक खो जाता है। रात जब आप सोते हैं, तब आपको याद भूल जाना चाहते हैं। तो भुलाने की कोशिश करें, और याद रहता है कि बाजार में आपकी एक दुकान है ? कि आपका एक बेटा आएगी। क्यों? क्योंकि भुलाने की कोशिश में भी तो याद करना है? कि आपकी एक पत्नी है? कि आपका बैंक बैलेंस इतना है? पड़ता है। मैं चाहता हूं, किसी को भूल जाऊं। तो जब भी चाहता कि आप कर्जदार हैं ? कि लेनदार हैं? जब आप सोते हैं, तो लोक हूं भूल जाऊं, तब भी याद करना पड़ता है। और याद गहन होती खो जाता है एकदम; परलोक शुरू नहीं होता! निद्रा, लोक और चली जाती है। परलोक के बीच में है। निद्रा मूर्छा है। लोक भी खो जाता है। मृत्यु को हम सब भुलाने की कोशिश किए हुए हैं, इसलिए परलोक भी शुरू नहीं होता। ध्यान भी लोक और परलोक के बीच | मरघट हम गांव के बाहर बनाते हैं। बीच में बनाना चाहिए, में है। लोक खोता है, परलोक शुरू हो जाता है। | नियमानुसार; क्योंकि मृत्यु जीवन का केंद्रीय तथ्य है। तथ्य, सत्य 1191
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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