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________________ गीता दर्शन भाग-2 फूल अपनी पंखुड़ियों को बंद कर ले; जैसे पक्षी अपने पंखों को | | अमर है ही; किसी चीज से अमर करने की जरूरत नहीं है। चेतना सिकोड़कर और अपने घोंसले में बैठ जाए-ऐसे मैं सिकोड़ लेता | अमर है ही। हूं जीवन को भीतर, भीतर, वहां जहां तुम्हारे यंत्र नहीं पकड़ पाते।। और ऐसा मत सोचना आप कि पदार्थ मरता है और चेतना अमर होता तो मैं हूं ही, इसीलिए वापस लौट आता हूं। फिर खोल देता | | है। पदार्थ भी अमर है; चेतना भी अमर है। पदार्थ इसलिए अमर हूं पंखों को, फिर जीवन के आकाश में उड़ आता हूं-घोंसले के है कि वह जीवित ही नहीं है। जो जीवित हो, वह मर सकता है। बाहर। पदार्थ कैसे मरेगा? वह जीवित ही नहीं है। पदार्थ इसलिए अमर है हम सबके भीतर वह गुह्य स्थान है, जहां आत्मा सिकुड़ जाए, | कि वह जीवित ही नहीं, उसकी मृत्यु का कोई उपाय नहीं। आत्मा तो फिर यंत्र पता नहीं लगा पाते, इंद्रियां पता नहीं लगा पातीं। इसलिए अमर है कि वह जीवित है, जो जीवित है, वह मर कैसे असल में यंत्र इंद्रियों के एक्सटेंशन से ज्यादा नहीं हैं। यंत्र हमारी सकता है! ही इंद्रियों का विस्तार हैं। आंख है; तो हमने दूरबीन और खुर्दबीन जीवन की कोई मृत्यु नहीं हो सकती, मृत्यु का कोई जीवन नहीं बनाई। वह आंख का विस्तार है, आंख को मैग्नीफाई कर देती है, | हो सकता। पदार्थ का सिर्फ अस्तित्व है, जीवन नहीं। आत्मा का बढ़ा देती है। कान है; तो हमने टेलीफोन बनाया। वह कान का | जीवन भी है और अस्तित्व भी। इस बात को खयाल में रख लें, विस्तार है। मेरा हाथ है; यहां से बैठकर मैं आपको छू नहीं सकता। | एक्झिस्टेंस एंड लाइफ बोथ—आत्मा का। पदार्थ का एक्झिस्टेंस मैं एक डंडा हाथ में पकड़ लं और उससे आपको छऊ. तो डंडा मेरे | ओनली, सिर्फ अस्तित्व है। पदार्थ सिर्फ है। लेकिन पदार्थ को हाथ का विस्तार हो गया। अपने होने का पता नहीं है। आत्मा है भी और उसे अपने होने का सारे यंत्र हमारी इंद्रियों के विस्तार हैं। अब तक एक भी यंत्र नहीं | भी पता है। बस यह होने का पता उसे जीवन बना देता है। बना, जो हमारी इंद्रियों से अन्य हो, विस्तार न हो। सब एक्सटेंशंस लेकिन हम आत्मा तो हैं, हमें अपने होने का भी पता है, हम हैं। इंद्रियां जिसे नहीं पकड़ पाती, यंत्र कभी-कभी उसे पकड़ता, जीवित भी हैं; लेकिन हम क्या हैं, इसका हमें कोई भी पता नहीं है। सूक्ष्म होता तो, लेकिन जो अतींद्रिय है, उसे यंत्र भी नहीं पकड़ पाता। | होने का पता है, लेकिन क्या हैं, इसका कोई पता नहीं है। सूक्ष्म हो, इंद्रिय की पकड़ के बाहर हो, तो यंत्र पकड़ लेता है। __होने का पता हो और यह पता न हो कि क्या हैं, तो अज्ञान की लेकिन जो अतींद्रिय है, सूक्ष्म नहीं—अतींद्रिय, इंद्रियों के पार, । | स्थिति है। होने का पता हो और यह भी पता हो कि क्या हैं, तो ज्ञान पैरासाइकिक उसको फिर यंत्र भी नहीं पकड पाता। की स्थिति है। अज्ञानी में उतनी ही आत्मा है. जितनी ज्ञानी में जीवन-ऊर्जा पैरासाइकिक है, अतींद्रिय है, इसलिए कोई यंत्र रत्तीभर कम नहीं है। लेकिन अज्ञानी अपने प्रति बेहोश है। ज्ञानी उसकी गवाही नहीं दे सकता। इस जीवन-ऊर्जा को जानने का एक | अपने प्रति होश से भरा हुआ है। ही उपाय है; वह इंद्रियों के द्वारा नहीं, इंद्रियों के पीछे सरककर; | ऐसे व्यक्ति जो ज्ञान-अमृत को उपलब्ध हो जाते हैं, वे परलोक इंद्रियों के माध्यम से नहीं, इंद्रियों के माध्यम को छोड़कर। ज्ञानी | | में परम परात्पर ब्रह्म को पाते हैं। इंद्रियों के माध्यम को छोडकर स्वयं को जानता है। और एक क्षण | परलोक का क्या अर्थ? क्या मरने के बाद? भी यह झलक मिल जाए स्वयं की, तो वह अमृत उपलब्ध हो | खयाल है कि परलोक का अर्थ मरने के बाद है। लेकिन जब आत्मा जाता है, जिसकी कोई मृत्यु नहीं; वह सत्व दिखाई पड़ जाता है, | | मरती ही नहीं, तो मरने के बाद परलोक का अर्थ ठीक नहीं है। जिसका कोई प्रारंभ नहीं, कोई अंत नहीं। ज्ञानी अमृत को उपलब्ध परलोक इस लोक के साथ, यहीं और अभी मौजूद है, जस्ट बाई दि हो जाते हैं। कार्नर। परलोक कहीं मरने के बाद और नहीं है। परलोक यहीं और इसलिए कृष्ण ने कहा, ज्ञानरूपी अमृत। कह सकते हैं, | अभी मौजूद है। पर हमें उसका कोई पता नहीं है। जिसे अपना पता अज्ञानरूपी विष, अज्ञानरूपी मृत्यु; ज्ञानरूपी अमृत, ज्ञानरूपी | नहीं, उसे परलोक का पता नहीं हो सकता; क्योंकि परलोक में जाने अमृतत्व। का द्वार स्वयं का अस्तित्व है, स्वयं का ही होना है। वह जो अल्केमिस्ट कहते हैं कि हम खोज रहे हैं वह तत्व, | जिसे अपना पता है, वह एक ही साथ परलोक और लोक की जिससे आदमी अमर हो जाए। वे कभी न खोज पाएंगे। आदमी देहली पर, बीच में खड़ा हो जाता है। इस तरफ झांकता है तो लोक, | 190/
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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