SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 211
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अंतर्वाणी-विद्या कहां तस्वीर फिल्म के पर्दे पर, कहां अभिनेत्री फिल्म के पर्दे पर तब कंकड़-पत्थर नहीं खाते! और कहां पत्नी घर की! घर की पत्नी एकदम फीकी-फीकी, | । नहीं; हमें खयाल नहीं है कि वह भी आहार है। बहुत सूक्ष्म एकदम व्यर्थ-व्यर्थ, जिसमें नमक बिलकुल नहीं, बेरौनक, | | आहार है। कान कुछ भी सुन रहे हैं। बैठे हैं, तो रेडिओ खोला हुआ साल्टलेस मालूम पड़ने लगती है। स्वाद ही नहीं मालूम पड़ता। | है! कुछ भी सुन रहे हैं! वह चला जा रहा है दिमाग के भीतर। पुरुष में भी नहीं मालूम पड़ता। | दिमाग पूरे वक्त तरंगों को आत्मसात कर रहा है। वे तरंगें दिमाग फिर दौड़ शुरू होती है। अब उस स्त्री की तलाश शुरू होती है, के सेल्स में बैठती जा रही हैं। आहार हो रहा है। जो पर्दे पर दिखाई पड़ी। वह कहीं नहीं है। वह पर्दे वाली स्त्री भी और एक बार भोजन इतना नुकसान न पहुंचाए, क्योंकि भोजन जिसकी पत्नी है, वह भी इसी परेशानी में पड़ा है। इसलिए वह के लिए परगेटिव्स उपलब्ध हैं। अभी तक मस्तिष्क के लिए कहीं नहीं है। क्योंकि घर पर वह स्त्री साधारण स्त्री है। पर्दे पर जो | परगेटिव्स उपलब्ध नहीं हैं। अभी तक मस्तिष्क में जब कब्ज पैदा स्त्री दिखाई पड़ रही है. वह मैन्यवर्ड है. वह तरकीब से प्रस्तत की हो जाए, और अधिक मस्तिष्क में कब्ज है-कांस्टिपेशन गई है, वह प्रेजेंटेड है ढंग से। सारी टेक्नीक, टेक्नोलाजी से, सारी दिमागी और उसके परगेटिव्स हैं नहीं कहीं। तो बस, खोपड़ी में नक व्यवस्था से कैमरे, फोटोग्राफी, रंग. सज्जा. सजावट. कब्ज पकडता जाता है। सड़ जाता है सब भीतर। और किसी को मेकअप—सारी व्यवस्था से वह पेश की गई है। उस पेश स्त्री को | होश नहीं है। कहीं भी खोजना मुश्किल है। वह कहीं भी नहीं है। वह धोखा है। __ संयमी या नियमी आहार वाले व्यक्ति से कृष्ण का मतलब है, लेकिन वह धोखा मन को आंदोलित कर गया। आहार हो गया। | ऐसा व्यक्ति, जो अपने भीतर एक-एक चीज जांच-पड़ताल से ले उस स्त्री का आहार हो गया भीतर। अब उस स्त्री की तलाश शुरू | | जाता है; जिसने अपने हर इंद्रिय के द्वार पर पहरेदार बिठा रखा है हो गई; अब वह कहीं मिलती नहीं। और जो भी स्त्री मिलती है, | | विवेक का, कि क्या भीतर जाए। उसी को भीतर ले जाऊंगा, जो वह सदा उसकी तुलना में फीकी और गलत साबित होती है। अब उत्तेजक नहीं है। उसी को भीतर ले जाऊंगा, जो शामक है। उसी को यह चित्त कहीं भी ठहरेगा नहीं। अब इस चित्त की कठिनाई हुई। भीतर ले जाऊंगा, जो भीतर चित्त को मौन में, गहन सन्नाटे में, शांति यह सारी की सारी कठिनाई बहुत गहरे में गलत आहार से पैदा हो में, विराम में, विश्राम में डुबाता है; जो भीतर चित्त को स्वस्थ करता रही है। है, जो भीतर चित्त को संगीतबद्ध करता है, जो भीतर चित्त को रास्ते परं आप निकलते हैं, कुछ भी पढ़ते चले जाते हैं, बिना | | प्रफुल्लित करता है। इसकी फिक्र किए कि आंखें भोजन ले रही हैं। कुछ भी पढ़ रहे हैं! | ऐसा व्यक्ति भी, अगर कोई व्यक्ति पूर्ण रूप से संयमी हो रास्ते भर के पोस्टर लोग पढ़ते चले जाते हैं। किसने आपको इसके | | आहार की दृष्टि से, समस्त आहार की दृष्टि से-छुए भी वही, लिए पैसा दिया है! काहे मेहनत कर रहे हैं? रास्ते भर के क्योंकि छूना भी भीतर जा रहा है; देखे भी वही, सुने भी वही, चखे दीवाल-दरवाजे रंगे-पुते हैं; सब पढ़ते चले जा रहे हैं। यह कचरा | भी वही, गंध भी उसकी ले-सब इंद्रियों से उसे ही भीतर ले जाए, भीतर चला जा रहा है। अब यह कचरा भीतर से उपद्रव खड़े करेगा। जो आत्मा के लिए शांति का मार्ग है, तो ऐसा व्यक्ति भी उस परम __ अखबार उठाया, तो एक कोने से लेकर ठीक आखिरी कोने | सत्य को उपलब्ध हो जाता है। इस योग से भी, कृष्ण कहते हैं, तक, कि किसने संपादित किया और किसने प्रकाशित किया, वहां अर्जुन! वहां पहुंचा जा सकता है। तक पढ़ते चले जाते हैं! और एक दफे में भी मन नहीं भरता। फिर ऐसा वह एक-एक कदम, एक-एक विधि की अर्जुन से बात दुबारा देख रहे हैं, बड़ी छानबीन कर रहे हैं। बड़ा शास्त्रीय अध्ययन | कर रहे हैं। मैं भी आपसे एक-एक विधि की बात कर रहा हूं। किसी कर रहे हैं अखबार का! कचरा दिमाग में भर रहे हैं। फिर वह कचरा | को कोई विधि जम जाए, किसी को कोई विधि खयाल में आ जाए, भीतर बेचैनी करेगा। घास खाकर देखें, कंकड़-पत्थर खाकर देखें, कहीं चोट हो जाए, किसी को कुछ ठीक पड़ जाए, और उसकी तब पता चलेगा कि पेट में कैसी तकलीफ होती है। वैसी खोपड़ी | जिंदगी में रूपांतरण हो जाए! में भी तकलीफ हो जाती है। लेकिन वह, हम सोचते हैं, आहार नहीं | | तो किसी भी विधि से, किसी भी बहाने से और किसी भी निमित्त है; वह तो हम पढ़ रहे हैं; ऐसी ही, खाली बैठे हैं। खाली बैठे हैं, | से व्यक्ति परमात्मा तक पहुंच सकता है। सिर्फ वे ही नहीं पहुंचते, 185
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy