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________________ गीता दर्शन भाग-2 जो कभी पहुंचने की कोशिश ही नहीं करते किसी भी विधि से। गलत विधि से भी कोई चले उसकी तरफ, तो भी पहुंच सकता है; क्योंकि गलत विधि से चलने वाला थोड़ी देर में गलत को ठीक कर लेता है। गलत पर ज्यादा तक नहीं चला जा सकता। लेकिन न चलने वाले के तो पहुंचने का कोई उपाय ही नहीं होता। वह गलत पर भी नहीं चलता। वह बैठा ही रह जाता है। वह बैठा देखता रहता है। जिंदगी सामने से बहती चली जाती है, वह बैठा देखता रहता है। कबीर ने कहा है, मैं बौरी खोजन गई, रही किनारे बैठ-मैं पागल खोजने गई और किनारे बैठ गई! जिन खोजा तिन पाइयां, गहरे पानी पैठ —खोजा तो उन्होंने, जो गहरे पानी में डूबे हैं। किनारे क्यों बैठ जाता है कोई? यह कबीर ने मजाक की है हमारे बाबत। कबीर गहरे पानी डूबे। हमारे बाबत मजाक की है कि किनारे पर बैठे हैं! किनारे पर कौन बैठ जाता है ? किनारे पर वही बैठ जाता है, जो सोचता है, कोई भूल-चूक न हो जाए। पता नहीं, करेंगे तो परिणाम आएगा कि नहीं आएगा? पता नहीं, परिणाम होता भी है या नहीं होता? पता नहीं, जो कहा जा रहा है, वह कभी हुआ भी है ? कभी होगा भी? ऐसा ही सोच-विचार करता जो बैठा रहता है किनारे पर... । बड़ा मजा है कि वह यह कभी नहीं सोचता कि किनारे पर बैठे-बैठे क्या हो जाएगा! गहरे पानी पैठने वाले कहते हैं कि मिला उन्हें । एक अवसर उनको भी परीक्षा का देना चाहिए। और किसी भी विधि और किसी भी तट से कूदकर देखना चाहिए। बैठे-बैठे तो किसी ने भी नहीं कहा कि मिल गया-किनारे पर बैठे-बैठे। कुछ भी नहीं मिला। सिर्फ जीवन हाथ से खो जाता है। कृष्ण एक-एक बात कर रहे हैं कि कोई बात मेल खा जाए अर्जुन को और वह छलांग के लिए तैयार हो जाए। आपसे भी कहता हूं, कोई बात मेल खा जाए, तो किनारे मत बैठे रहें, छलांग लगाएं, खोज पर निकलें। जो खोज पर निकलता है, वह जरूर एक दिन पहुंच जाता है। गलत भी कूदे, तो भी पहुंच जाता है। क्योंकि गलत कूदने वाले की आकांक्षा तो कम से कम सही होती ही है, पहुंचने की। गलत विधि का उपयोग करे, तो भी पहुंच जाता है। क्योंकि गलत विधि वाले की भी प्यास तो होती है, पाने की ही । और जो प्रभु को पाने को प्यासा है, वह गलत से भी पा लेता है । और जो प्रभु को पाने का प्यासा नहीं है, उसके सामने ठीक विधि भी पड़ी रहे, तो वह कुछ भी नहीं पाता है। अब संन्यासी हमारे भजन-कीर्तन में लगेंगे। आप भी - जो मित्र हिम्मत करें – कूदें | किनारे मत खड़े रहें, सम्मिलित हों। और | जो देखना चाहें, वे देखें। देखने से भी तरंग पकड़ती है। दस मिनट इस कीर्तन में सम्मिलित होकर फिर विदा हों। यहां थोड़ी जगह बना लेंगे, थोड़े पीछे हट जाएं। 186
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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