________________
अंतर्वाणी-विद्या
लेकिन जब आप ठहराते हैं, तब ज्यादा देर नहीं ठहर सकती। | आपकी थी। और थोड़ी देर पहले किसी वृक्ष के पास थी, वृक्ष की श्वास भी निकलना चाहेगी और विचार भी हमला करना चाहेंगे। | थी। और थोड़ी देर पहले कहीं और थी। अभी मेरे भीतर है। मैं कह क्षणभर को ही गैप आएगा। लेकिन जब श्वास, प्रशिक्षित श्वास भी नहीं पाया कि मेरे भीतर है, कि गई बाहर। ध्यान के संयोग से अपने आप ठहर जाती है, तो कभी-कभी घंटों जो हमारे भीतर है, उसको अगर हम बाहर के प्राण-जगत में ठहरी रहती है।
समर्पित कर दें, जानें कि वह भी दे दी बाहर को, तो भीतर कुछ बच रामकृष्ण के जीवन में ऐसे बहुत मौके हैं। कभी-कभी तो ऐसा नहीं रह जाता। सब शून्य हो जाता है। एक समर्पण यह है। भीतर हुआ है कि वह छ:-छः दिन तक ऐसे पड़े रहते कि जैसे मर गए! की श्वास को, वह जो बाहर विराट प्राण का जाल फैला है प्रियजन घबड़ा जाते, मित्र घबड़ा जाते, कि अब क्या होगा, क्या वायुमंडल में, उसमें समर्पित कर दें, उसमें होम दे दें, उसमें चढ़ा नहीं होगा। सब ठहर जाता। उस ठहरे हए क्षण में. इन दैट स्टिल | दें। या इससे उलटा भी कर सकते हैं। वह जो बाहर का सारा मोमेंट, उस ठहरे हुए क्षण में, चेतना समय के बाहर चली जाती, | प्राण-जगत है, वह भी तो मेरे भीतर का ही हिस्सा है बाहर फैला कालातीत हो जाती।
हुआ। अगर हम उस बाहर के प्राण-जगत को इस भीतर के विचार के बाहर हुए, निर्विचार में गए, ब्रह्म के द्वार पर खड़े हैं। प्राण-जगत को समर्पित कर दें, तो भी एक ही घटना घट जाती है। विचार में आए, विचार में पड़े, कि संसार के बीच आ गए हैं। बूंद सागर में गिर जाए, कि सागर बूंद में गिर जाए। संसार और मोक्ष के बीच पतली-सी विचार की पर्त के अतिरिक्त बूंद का सागर में गिरना तो हमारी समझ में आता है, क्योंकि
और कोई फासला नहीं है। पदार्थ और परमात्मा के बीच पतले, | हमने सागर में बूंद को गिरते देखा है। सागर का बूंद में गिरना हमारी झीने विचार के पर्दे के अतिरिक्त और कोई पर्दा नहीं है। लेकिन यह | समझ में नहीं आता। लेकिन अगर आइंस्टीन के संबंध में कुछ भी विचार का पर्दा कैसे जाए?
खयाल हो, तो समझ आ में सकता है। दो तरह से जा सकता है। या तो कोई सीधा विचार पर प्रयोग __जब एक बूंद सागर में गिरती है, तो यह बिलकुल रिलेटिव बात करे ध्यान का, साक्षी-भाव का, तो विचार चला जाता है। जिस दिन | है, यह बिलकुल सापेक्ष बात है। आप चाहें तो कह सकते हैं कि विचार शून्य होता है, उसी दिन श्वास भी शांत होकर खड़ी रह जाती बूंद सागर में गिरी; और आप चाहें तो कह सकते हैं कि सागर बूंद है। या फिर कोई प्राणयोग का प्रयोग करे, श्वास का। श्वास को में गिरा। आप कहेंगे, कैसी बात है यह! गति दे, व्यवस्था दे, प्रशिक्षण दे; और ऐसी जगह ले आए, जहां __ मैं पूना आया। तो मैं कहता हूं, मैं पूना आया, ट्रेन बंबई से मुझे श्वास अपने आप ठहर जाती है-बाहर की बाहर, भीतर की पूना तक लाई। आइंस्टीन कहते हैं कि यह सापेक्ष है, यह भीतर, ऊपर की ऊपर, नीचे की नीचे। और बीच में गैप, अंतराल कामचलाऊ बात है। इससे उलटा भी कह सकते हैं कि ट्रेन मेरे पास आ जाता है; खाली, वैक्यूम हो जाता है, जहां श्वास नहीं होती। | पूना को लाई। ऐसा भी कह सकते हैं कि ट्रेन मुझे पूना तक लाई; वहीं से छलांग, दि जंप। उसी अंतराल में छलांग लग जाती है | ऐसा भी कह सकते हैं कि ट्रेन पूना को मुझ तक लाई। इन दोनों में परमसत्ता की ओर।
कोई बहुत फर्क नहीं है।
लेकिन हम छोटे-छोटे हैं, तो ऐसा कहना अजीब-सा लगेगा कि
| ट्रेन पूना को मुझ तक लाई; यही कहना ठीक मालूम पड़ता है कि प्रश्न: भगवान श्री, प्राण क्या है और अपान क्या है? | | मुझे ट्रेन पूना तक लाई। लेकिन दोनों बातें कही जा सकती हैं। कोई अपान में प्राण का हवन क्या है और प्राण में अपान | | अंतर नहीं है। ट्रेन जो काम कर रही है, वे दोनों ही बातें कही जा का हवन क्या है? इसे फिर से स्पष्ट करें। . सकती हैं।
तो या तो हम भीतर के प्राण को बहिर्माण पर समर्पित कर दें,
| बूंद को सागर में गिरा दें। या हम सागर को बूंद में गिरा लें, या हम हमारे भीतर है, वह भी बाहर का हिस्सा है। अभी मेरे | | बाहर के समस्त प्राण को भीतर गिरा लें। दोनों ही तरह हवन पूरा भीतर एक श्वास है। थोड़ी देर पहले आपके पास थी, | हो जाता है। दोनों ही तरह यज्ञ पूरा हो जाता है।
183