SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 203
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अंतर्वाणी-विद्या हवाई जहाज पंद्रह मिनट बाद उड़ा और गिर गया और सब यात्री समाप्त हो गए। ऐसा बहुत बार हुआ । मेहर बाबा कब रुक जाएंगे किस काम को करने से ऐन बीच में, नहीं कहा जा सकता था; अनप्रेडिक्टेबल था। वे खुद भी नहीं कह सकते थे, क्योंकि उनको खुद भी पता नहीं था। कब अंतर की आवाज क्या कहेगी, उन्हें भी पता नहीं। जो कहेगी, वही वे करेंगे, जो भी हो। यह भी पता नहीं कि क्या परिणाम होगा। हवाई जहाज से क्यों रोक रहा है अंतर - मन? लेकिन अंतर- मन कहता है, नहीं, तो फिर नहीं। हां, तो हां। मेहर बाबा की जिंदगी स्वधर्म की तलाश की जिंदगी है। भीतर स्वर की खोज की जिंदगी है। वह भीतर का स्वर क्या कहता है, उससे ही चलेंगे। कोई भी व्यक्ति अगर तेईस घंटे काम की दुनिया से हटाकर एक घंटा अपने लिए निकाल ले-ज्यादा निकाल सकें, और अच्छा। कभी वर्ष में पंद्रह दिन, तीन सप्ताह निकाल सकें इकट्ठे, तो और भी अच्छा। धीरे-धीरे भीतर की आवाज साफ होने लगे, तो आपकी जिंदगी में भूल-चूक बंद हो जाएगी। क्योंकि तब जिंदगी परमात्मा से चलने लगती है, आपसे नहीं चलती। फिर गुलाब का फूल गुलाब ही होता है, फिर कमल होने की कोई आकांक्षा नहीं होती । और जिस दिन भीतर की वाणी से चला हुआ जीवन पूरा खिलता है, उस दिन यज्ञ पूरा हो गया – स्वधर्मरूपी यज्ञ । प्रश्न: भगवान श्री इस श्लोक का चौथा और आखिरी यज्ञ योग यज्ञ कहा गया है। गीता प्रेस के अनुवाद में इसे अष्टांग योग यज्ञ कहा गया है। कृपया इसे भी स्पष्ट करें। यो ग यज्ञ। योग की अपनी साधना प्रक्रिया है । अष्टांग योग, योग के आठ अंगों की सूचना देता है। पतंजलि योग के आठ अंगक हैं, आठ चरण, आठ हिस्से, जिनसे मिलकर योग बनता है, जिनसे योग पूरा होता है। यदि योग एक शरीर है, तो आठ उसके अंग हैं। इसलिए अष्टांग योग । लेकिन अष्टांग योग के यदि एक-एक अंग पर मैं बात करूं, तो कठिनाई होगी। वह तो फिर कभी जब पतंजलि के शास्त्र पर पूरा | बोलूं, तभी खयाल में आ सकता है। तो अभी तो सिर्फ योग यज्ञ, इतनी ही बात कर लेनी उचित होगी। मूल बात समझ में आ जाएगी। मैंने कहा कि जैसे स्वाध्याय के लिए जे. कृष्णमूर्ति भाष्य हैं और | जैसे स्वधर्म के लिए, स्वधर्म की खोज के लिए, अंतर्वाणी की खोज के लिए मेहर बाबा भाष्य हैं, वैसे ही योग के लिए जार्ज गुरजिएफ भाष्य है - इस जीवित जगत में, जो अभी हमारे आस-पास खड़ा है। योग का अर्थ है, व्यक्ति जैसा है, वह बहुत ढीला-ढाला है, लूज एक्झिस्टेंस है । कहना चाहिए, आदमी कम है, होल्डाल ज्यादा | है | होल्डाल, बिस्तर, उसमें सब चीजें लपेटी हैं! अंग्रेजी का शब्द अच्छा है, होल्डआल; सब चीजें भरी हुई हैं, एक बोरिया-बिस्तर | की तरह है। सब कुछ भरा है; उल्टा-सीधा सब भरा है । साधारण व्यक्ति जैसा है, वह एक कास्मास नहीं है; उसके भीतर कोई संगीत नहीं है; उसके भीतर कोई हार्मनी, कोई लयबद्धता नहीं है। उसके भीतर, गुरजिएफ की भाषा में कहें, तो क्रिस्टलाइजेशन नहीं है। उसके भीतर कोई ठोस शक्ति नहीं है। उसके भीतर बहुत-सी शक्तियां हैं - आपस में विरोधी, एक-दूसरे से लड़ती, ढीली, अस्तव्यस्त । ऐसा समझ लें फर्क, बाजार भरा है एक; हजार आदमी हैं बाजार में। शोरगुल बहुत है, लेकिन व्यक्तित्व कोई भी नहीं है। हजार आदमियों के बाजार में व्यक्तित्व कोई नहीं होता । हजार आदमी होते हैं, हजार आवाजें होती हैं। हजार हित होते हैं, हजार स्वार्थ होते हैं। एक-दूसरे से विपरीत होते हैं, एक-दूसरे के दुश्मन होते हैं, एक-दूसरे से लड़ते होते हैं। हजार आदमी हैं बाजार में, लेकिन | बाजार के पास कोई क्रिस्टलाइज्ड इंडिविजुअलिटी नहीं है; बाजार के पास कोई व्यक्तित्व नहीं है, जिसमें एकस्वरता हो । फिर हजार आदमी मिलिट्री के जवान हैं। वे भी हजार हैं, लेकिन उनके पास एक व्यक्तित्व है। हजार आदमी के साथ पंक्तिबद्ध व्यक्तित्व है। एक से चलते हुए कदम हैं। एक आवाज, एक आज्ञा पर सारे प्राण आंदोलित होते हैं। एकस्वरता है। तो गुरजिएफ कहेगा कि बाजार में तो क्रिस्टलाइजेशन नहीं है, मिलिट्री के हजार लोगों में एक क्रिस्टलाइजेशन है। वे इकट्ठे हैं, एक आर्गेनिक यूनिटी है। एक शरीर की भांति हैं वे । बाजार भीड़ है, एक शरीर नहीं । हमारा व्यक्तित्व बाजार की भांति है । हजार चीजें हैं उसमें, हजार हित हैं। एक हिस्सा बाएं जाता है, दूसरा दाएं जाता है। एक ऊपर 177
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy