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अंतर्वाणी-विद्या
इस मात्रा को बदलना पड़ेगा। स्वीकार बढ़ाना पड़ेगा, वॉइस, छोटी है आवाज-धीमी, नाजुक, सूक्ष्म। केवल वे ही सुन अस्वीकार कम करना पड़ेगा। जैसे-जैसे स्वीकार बढ़ेगा, वैसे-वैसे सकते हैं, जो उतनी सूक्ष्म आवाज को सुनने के लिए अपने को ट्रेन आस्तिकता बढ़ेगी। जैसे-जैसे अस्वीकार बढ़ेगा, वैसे-वैसे करते हैं, प्रशिक्षित करते हैं। नास्तिकता बढ़ेगी। नास्तिकता का अर्थ है, समस्त अस्तित्व के प्रति | इसलिए आज आप आंख बंद करके बैठ जाएंगे, तो भीतर की नकार का भाव, नो एटीटयूड ट्वर्डस दि टोटैलिटी, समस्त के प्रति | आवाज नहीं सुनाई पड़ेगी। आंख बंद करके भी बाहर की ही नकार का भाव। कछ भी नहीं है। आस्तिकता का अर्थ है. टोटल | आवाज सनाई पडती रहेगी। कल. परसों बैठते रहें. बैठते रहें. एक्सेप्टिबिलिटी, समग्र स्वीकार। सब है; और सब से मैं राजी हूं। जल्दी न करें, घबड़ाएं न। तेईस घंटे बाहर की दुनिया को दे दें, एक जो जैसा है, उससे मैं वैसे ही राजी हूं। यह राजीपन बढ़ता जाएगा, घंटा अपने को दे दें। बस, आंख बंद करें और सुनने की कोशिश जैसे-जैसे भीतर स्वधर्म के अनुकूल यात्रा होगी।
करें भीतर। सुनने की कोशिश, जैसे भीतर कोई बोल रहा है, उसे तीसरी बात, स्वधर्म के अनुकूल अगर जाना हो, तो सिर्फ बाहर सुन रहे हैं। की चीजों में उलझा रहकर कोई व्यक्ति कभी नहीं जा सकता। जैसे कि इतनी भीड़ है। यहां बहुत लोग बातचीत कर रहे हैं और दैनंदिन कामों में पता ही नहीं चलता कि स्वधर्म क्या है, परधर्म क्या | आपको किसी की बात सुननी है, तो आप सबकी बातों को छोड़कर है। दैनंदिन काम तो करीब-करीब एक जैसे हैं। ब्राह्मण का भी वही | अपनी पूरी चेतना और एकाग्रता को उस आदमी के ओठों के पास है, क्षत्रिय का भी वही है, शूद्र का भी वही है, वैश्य का भी वही लगा देते हैं। वह फुसफुसाकर भी बोलता हो, विस्पर भी करता हो, है। जहां तक दैनंदिन काम का संबंध है, रोटी-रोजी कमाना ही तो तो भी आप सुनने की कोशिश करते हैं और सुन पाते हैं। चेतना सबके लिए है। कैसे कोई कमाता है, यह दूसरी बात है। उससे सिकुड़कर सुनती है, तो सुन पाती है। एकाग्र हो जाती है, तो सुन बहुत अंतर नहीं पड़ता। दैनंदिन कामों से पता नहीं चलेगा कि मेरा | पाती है। स्वधर्म क्या है।
जल्दी न करें। एक घंटा तय कर लें स्वधर्म की खोज के लिए। जिसे स्वधर्म की खोज करनी हो, उसे बाहर की दुनिया से कम आपको पता नहीं, लेकिन आपकी अंतरात्मा को पता है कि क्या है से कम चौबीस घंटे में घंटेभर के लिए बिलकुल छुट्टी ले लेनी आपका स्वधर्म। आंख बंद करें। मौन हो जाएं। चुप बैठकर सुनें। चाहिए, और भीतर की दुनिया में डूब जाना चाहिए। कर देने चाहिए | मौन, सिर्फ भीतर ध्यान को करके, सुनने की कोशिश करें कि भीतर द्वार बंद बाहर के। कह देना चाहिए बाहर के जगत को बाहर, और कोई बोलता है! कोई आवाज! अब मैं होता भीतर। सब इंद्रियों के द्वार बंद करके भीतर घंटेभर के ___ बहुत-सी आवाजें सुनाई पड़ेंगी। पहचानने में कठिनाई न होगी लिए डूब जाना चाहिए। वहीं पता चलेगा उस रहस्य का जो स्व है,। कि ये बाहर की आवाजें हैं। मित्रों के शब्द याद आएंगे, शत्रुओं के जो निजता है। वहीं से सूत्र मिलेंगे, ध्वनि सुनाई पड़ेगी, वहीं से शब्द; दुकान, बाजार, मंदिर, शास्त्र-सब शब्द याद आएंगे। इशारे मिलेंगे। और धीरे-धीरे इशारे गहरे होते चले जाते हैं। पहले पहचान सकेंगे भलीभांति, बाहर के सुने हुए हैं। छोड़ दें। उन पर आवाज बड़ी छोटी होती है। यह आखिरी सूत्र सर्वाधिक महत्वपूर्ण ध्यान न दे। और भीतर! और प्रतीक्षा करते रहें। है, इसे ठीक से खयाल में ले लेंगे।
अगर तीन महीने कोई सिर्फ एक घंटा चुप बैठकर प्रतीक्षा कर स्वधर्म का पता अंतर की वाणी के अतिरिक्त और कहीं से नहीं | | सके धैर्य से, तो उसे भीतर की आवाज का पता चलना शुरू हो चलता है। पहले मैंने दो लक्षण की बात कहीं कि इससे आप पता | जाएगा। और एक बार भीतर का स्वर पकड़ लिया जाए, तो आपको लगा लेना कि जिंदगी ठीक मार्गों से जा रही है या नहीं। और तीसरे फिर जिंदगी में किसी से सलाह लेने की जरूरत न पड़ेगी। से मैं आपके स्वधर्म के केंद्र को ही छू लेने की सूचना देता हूं। | जब भी जरूरत हो, आंख बंद करें और भीतर से सलाह ले लें;
घंटेभर के लिए चौबीस घंटे में, बंद कर देना बाहर की दुनिया पूछ लें भीतर से कि क्या करना है। और स्वधर्म की यात्रा पर आप को, भूल जाना; छोड़ देना सब बाहर का बाहर; अपने भीतर डुबकी चल पड़ेंगे। क्योंकि भीतर से स्वधर्म की ही आवाज आती है। भीतर लगा जाना। उस डुबकी में धीरे-धीरे भीतर की अंतर्वाणी सुनाई से कभी परधर्म की आवाज नहीं आती। परधर्म की आवाज सदा पड़नी शुरू होगी। सबके भीतर छिपा है वह। दि स्टिल स्माल बाहर से आती है।
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