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________________ गीता दर्शन भाग-28 गांधी जीवनभर सत्य की खोज में रहे, प्रयोग में रहे, उपलब्धि की स्वीकृति नहीं करेगा। में कभी भी नहीं आ पाए। पर आदमी ईमानदार हैं, क्योंकि बहुत-से जरूरी नहीं है; कि न किए हों तो भी स्वीकृति करे। ऐसा नहीं है। लोग बिना उपलब्धि के उपलब्धि की घोषणा कर सकते हैं। गांधी | क्योंकि दूसरी भूल भी सदा हो जाती है। ऐसी भी किताबें हैं ईसाइयत ने वह कभी नहीं की। इसलिए एक्सपेरिमेंट्स विद ट्रथ! आत्मकथा | के पास, और ऐसे पापों की स्वीकृतियां हैं, जो उन लोगों ने कभी को नाम दिया, सत्य के प्रयोग; सत्य का अनुभव नहीं, सिर्फ | किए ही नहीं। लेकिन वही संत बड़ा हो सकता है, जिसने बहुत पाप प्रयोग; अंधेरे में टटोलना। | किए, स्वीकार किया, और आगे गया। तो लोगों ने झूठे पाप तक लेकिन गांधी की आत्मकथा स्वाध्याय में सहयोगी हो सकती है। अपनी किताबों में लिख दिए, जो उन्होंने कभी किए नहीं थे। क्योंकि वह असत्य की घाटियों में चलने वाले एक आदमी की __ आदमी का मन कितने धोखे में जा सकता है। यानी पुण्य का साहसपूर्ण स्वीकृतियां हैं—कैसा है मन! कैसे धोखा दे जाता है! | दावा तो कर ही सकता है, पाप का दावा भी कर सकता है, जो उसने कैसे-कैसे भटकाता है! | न किया हो! आदमी की बेईमानी की कोई सीमा नहीं है; और अगर गांधी का मन, इतने सिंसियर और प्रामाणिक आदमी | | आत्मवंचना का कोई अंत नहीं है। का मन इतने धोखे देता है, तो आपको भी अपने धोखे देखने में | स्वाध्याय में शास्त्र सहयोगी हो सकता है, लेकिन शास्त्र वैसा, सुविधा बनेगी। आपको ऐसा नहीं लगेगा कि मैं अपने को धोखा दे | | जो स्वीकार देता हो, जो बताता हो कि भीतर आदमी के क्या-क्या रहा हूं, तो कोई बहुत बुरा काम कर रहा हूं। गांधी तक दे रहे हैं, तो | घट सकता है। इसलिए कभी तो वास्तविक शास्त्रों से भी ज्यादा मैं भी अपने को दे रहा हूं, तो जरा देख सकता हूं आंख खोलकर। | उपन्यास शास्त्र का काम कर सकते हैं। जैसे दोस्तोवस्की के टाल्सटाय का अगर जीवन पढ़ेंगे, तो वह शास्त्र है। अगर | | उपन्यास, क्राइम एंड पनिशमेंट-अपराध और दंड, या ब्रदर्स अगस्टीन के कन्फेशंस पढ़ेंगे, तो अर्थपूर्ण है। कर्माजोव, बाइबिल और गीता से भी ज्यादा कीमती हो सकते हैं ईसाइयत ने स्वाध्याय के लिए पश्चात्ताप, प्रायश्चित्त और उस आदमी के लिए, जो स्वाध्याय के पथ से चल रहा है। कन्फेशन की प्रक्रिया विकसित की। हिंदुस्तान में ऐसी कोई प्रक्रिया | | टाल्सटाय के उपन्यास, वार एंड पीस—युद्ध और शांति, डेथ विकसित नहीं हुई, इसलिए ईसाइयत के पास कन्फेशंस का बहुत | आफ इवान इलोविच—इलोविच की मृत्यु; या सार्च, काम, ' बड़ा भंडार है। और गांधी भी कर सके कन्फेस, तो गीता पढ़कर | काफ्का इनके उपन्यास। कभी न कर सकते थे; ईसाइयत के प्रभाव में कर सके। भारत का कोई नाम नहीं ले रहा, जानकर; क्योंकि भारत के पास आज तक पृथ्वी पर अपराध की जो गहरी स्वीकृतियां हैं, वे | | अब भी ऐसी उपन्यास की संपदा नहीं है। अब भी नहीं है। ईसाइयत के प्रभाव में फलित हुई हैं। ईसाइयत ने आदमी को एक | उपन्यास भी, जो किसी व्यक्ति के गहरे प्राणों से निकले हों, जैसे साहस दिया इस बात का कि जो भी है गलत, उसे कह पाओ। इतना दोस्तोवस्की के सभी उपन्यास, जिनमें ब्रदर्स कर्माजोव तो ऐसा है साहस न तो हिंदू जुटा पाए, न मुसलमान जुटा पाए, न जैन जुटा | | जिसकी कि इज्जत बाइबिल, गीता और कुरान की तरह होनी पाए, न बौद्ध जुटा पाए। क्राइस्ट की सबसे बड़ी देन इस पृथ्वी पर | | चाहिए, जिसमें आदमी के चित्त का सब अंधेरा खोलकर रख दिया प्रायश्चित्त है, जो किया उसके स्वीकार का भाव, उसे कन्फेस करने | | गया है, जिसमें आदमी के भीतर के सब गह्वर, सब खाइयां उघाड़ की सामर्थ्य। दी हैं; जिसमें आदमी के भीतर के सब घाव की मलहम-पट्टी तोड़ तो ईसाई संतों के जीवन इसमें बड़े उपयोगी हो सकते हैं। सेंट दी है; जिसमें आदमी को पहली दफे पूरा नग्न, जैसा आदमी थेरेसा या जेकब बोहमे या इकहार्ट, इनकी जो स्वीकृतियां हैं, वे | | है—वे भी उपयोगी हो सकते हैं। पर उपयोगी, गौण, सेकेंडरी; बड़ी अर्थपूर्ण हो सकती हैं। भारत के पास ऐसा साहित्य न के | प्राइमरी, प्राथमिक तो स्वयं का अध्ययन है। जो स्वयं का अध्ययन बराबर है। भारत के पास दंभ का साहित्य बहुत है, लेकिन पाप के कर पाए, पर्याप्त है। लेकिन सहयोग इनसे मिल सकता है। स्वीकार का साहित्य न के बराबर है। एक अर्थ में गांधी की किताब | - ईश्वर-जप भी कृष्ण ने एक सूत्र उसमें गिनाया है। ईश्वर-जप! एक बहुत बड़ी शुरुआत है। लेकिन शुरुआत ही है, उसके बाद इसे भी थोड़ा समझ लेना जरूरी है। दसरी किताब भी नहीं आ सकी। भारत का कोई साध अपने पापों ईश्वर-जप का क्या अर्थ है स्वाध्याय के संदर्भ में? क्योंकि जन जुटा जिससमा उपन्यास, जिनमें न गए। क्राइस्ट की सलान 166
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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