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________________ गीता दर्शन भाग-20 स्वाध्याय कहता है कि जिसने जाना जिस तथ्य को, वह उसके | जाएगा? असंभव है। तथ्य का पता–विसर्जन हो जाता है। यह बाहर हो जाता है। साफ दिख जाए कि यह मैंने क्या किया है, तो बेटे से भी माफी - लेकिन हम तथ्यों को जानते नहीं, झुठलाते हैं। हम अपनी ईर्ष्या | | मांगी जा सकती है। माफी मांगने का भी मौका नहीं आएगा। को ईर्ष्या नहीं कहते, कुछ और कहते हैं। हम अपनी घृणा को घृणा हम अपने आपको धोखा देने में बड़े कुशल हैं। कुछ होता है, नहीं कहते, कुछ और कहते हैं। हम अपने क्रोध को क्रोध नहीं | | कुछ हम उसको नाम देते हैं। कुछ और ही होता है भीतर, कुछ और कहते, कुछ और कहते हैं। हम अपनी मालकियत को, पजेशन के | | ही नाम देते हैं! भाव को, मालकियत नहीं कहते, कुछ और कहते हैं। औरंगजेब ने अपने बाप को बंद कर दिया था आखिरी दिनों में। एक मां है—मैं एक किताब में पढ़ रहा था, उसमें मां अपने बेटे तो उसके बाप ने खबर भेजी कि इतना इंतजाम कर दे कम से कम से कहती है कि बाहर जाओ और देखो कि पप्पू क्या कर रहा है। | | कि तीस बच्चे यहां भेज दे, तो मैं एक छोटी क्लास चलाता रहूं और जो भी कर रहा हो, कहो कि न करे। बाहर जाओ और देखो, | | जेलखाने में। औरंगजेब ने अपनी आत्म-कथा में लिखाया है कि पप्पू क्या कर रहा है। उसे पता नहीं कि पप्पू क्या कर रहा है। लेकिन | मेरे बाप को आज्ञा देने की इतनी खतरनाक आदत थी कि जब मैंने । जो भी कर रहा हो, कहो कि न करे। उसे जेलखाने में बंद कर दिया, तो उसने तीस बच्चे मांगे। और जब किसलिए? पप्पू गलत कर रहा हो, तब समझ में आ सकता है। | तीस बच्चे उसे दे दिए गए, तो वह छड़ी लेकर उनके बीच में पढ़ाने लेकिन मां को पता भी नहीं कि पप्प बाहर क्या कर रहे हैं। लेकिन का काम करने लगा! वह भेज रही है कि जाकर कहो कि पप्पू जो भी कर रहा हो, न करे। ___ एक स्कूल मास्टर अपनी क्लास में किसी बादशाह में कम नहीं अक्सर लगता है कि मां बच्चे के ठीक-ठीक हित के लिए सब होता। बादशाह भी इतना ताकतवर नहीं होता, जितना छोटे-छोटे कर रही है। लेकिन थोड़ा स्वाध्याय करे, तो पता चलेगा, डामिनेशन | प्राइमरी स्कूल के बच्चों में स्कूल मास्टर होता है। का मजा भी ले रही है, मालकियत का। इसलिए जब बच्चा पैदा हो | अभी मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि जो लोग भी शिक्षक होने के प्रति जाता है किसी पति-पत्नी को, तो पति-पत्नी की कलह थोड़ी हलकी | | उत्सुक होते हैं, उनमें सौ में से पचहत्तर प्रतिशत डामिनेशन की जाती है; क्योंकि डाइवर्शन हो जाता है। बच्चे पर निकलने लगता आकांक्षा से प्रेरित होते हैं। पचहत्तर प्रतिशत! दबाना, आज्ञा देना, है मां का, तो पति थोड़ा माफ हो जाता है। | सताना, कोअर्शन, टार्चर! इसलिए शिक्षक अगर छोटी-छोटी अगर बच्चा बीच में न हो...। मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि बच्चा | | चीज पर छड़ी चलाते रहे पुरानी दुनिया में, हाथ-पैर तोड़ते रहे स्केप गोट का काम करता है। बाप भी अकड़ दिखा लेता है उसको, । | बच्चों के, तो इसीलिए नहीं सिर्फ कि पढ़ाने के लिए बड़े आतुर थे। मां भी अकड़ दिखा लेती है उसको। वह किसी को अकड़ अभी पढ़ाने की आतुरता से हाथ-पैर तोड़ने का कोई कारण नहीं है। मैं दिखा नहीं सकता। दिखाएगा वक्त आने पर। लेकिन उसे प्रतीक्षा | ऐसे आदमियों को जानता हूं, जिनकी शिक्षकों ने चोट से आंख करनी पड़ेगी अभी। पत्नी पति को नहीं मार सकती. बेटे को पीट फोड़ दी! क्या बात रही होगी? देती है। काश, उन शिक्षकों को पता चल जाता कि यह जो छड़ी हम मार यहां विश्लेषण और स्वाध्याय की जरूरत है कि यह मैंने, बेटे रहे हैं इस बच्चे को, यह छड़ी पढ़ाने के लिए नहीं मारी जा रही है। ने कसर किया था, इसलिए मैंने मारा है. कि किसी और का चांटा | क्योंकि बिना छड़ी मारे पढ़ाया जा रहा है; कोई दिक्कत नहीं आ इस पर पड़ा जा रहा है? आमतौर से आप भलीभांति जानते हैं, सब | रही है। यह छड़ी मारने का मजा दूसरा है; इसका रस गहरा है। यह जानते हैं, और बच्चे तो बिलकुल भलीभांति जानते हैं। बच्चे बहुत | दूसरे को दबाने का और दूसरे पर हिंसा करने का रस है। काश, ही भलीभांति जानते हैं कि मां-बाप में कोई गड़बड़ हो, तो वहां से | यह शिक्षक को दिख जाए, तो हाथ में से छड़ी छूट जाएगी। लेकिन खिसक जाओ। क्योंकि पति तो नहीं पिटेगा; बेटा पिट जाएगा! | | नहीं छूटेगी, जब तक वह सोच रहा है कि मैं इसको शिक्षित करने __यह अगर स्वाध्याय से पता चल जाए कि यह क्या हो रहा है, के लिए मार रहा हूं, इसी के हित में इसी को मार रहा हूं, तब तक तो होना मुश्किल है। अगर मां को यह पता चल जाए कि मारना तो यह नहीं छूटेगी; तब तक वह धोखा जारी रहेगा। पति को था, मारा है बेटे को, तो क्या बेटे को मारना संभव रह तथ्य को जानना तथ्य से मुक्ति है। जो व्यक्ति अपने भीतर के 164
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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