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गीता दर्शन भाग-2
कोई आदमी कहे कि आपके मन में कामवासना है, तो आप कहते करा देता है; ठीक-ठीक तथ्य का बोध करा देता है। और तथ्य के हैं, यह आदमी मित्र नहीं, दुश्मन मालूम पड़ता है। और इस तरह बोध के साथ ही आपमें रूपांतरण शुरू हो जाता है। तथ्य के बोध के आदमी से फिर आप बचते हैं कि यह कहीं मिल न जाए। के साथ ही! हम तथ्य का बोध नहीं करते। उदाहरण एक-दो लें तो
कबीर ने कहा है, निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छबाय। जो खयाल में आ जाए। निंदा करता हो, उससे भागिए मत; आंगन और कुटी छवाकर __ और यह स्वाध्याय का सूत्र भविष्य में महत्वपूर्ण होता चला उसको पास में ही ठहरा लीजिए कि वह सुबह से सांझ तक आपकी | जाएगा। और अगर आने वाली सदी में लोग गीता को पढ़ेंगे, तो निंदा करता रहे। स्वाध्याय! स्वाध्याय का सूत्र है वह। शायद स्वाध्याय के सूत्र के कारण ही पढ़ेंगे। यद्यपि गीता में वह
जो निंदा करे, वह मित्र है। अगर वह गलत कहता है, तो कोई | बहुत स्पष्ट और प्रखर नहीं है, क्योंकि उस क्षण उसका कोई बहुत हर्ज नहीं लेकिन अगर वह सही कहता है, तो वह आपके दबे हुए | उपयोग नहीं था। असल में लोग इतने सरल थे कि दमन बिलकुल हिस्सों को आपके सामने लाता है। अगर गलत कहता है, तो | | कम था। और जब दमन कम होता है, तो स्वाध्याय का कोई मतलब मेहनत करता है, तो भी अनगहीत होने की जरूरत है। आपके लिए नहीं होता। जब दमन बहुत ज्यादा हो जाता है, तब स्वाध्याय का श्रम उठा रहा है। अगर सही कहता है, तब तो उसके चरण पकड़ | मतलब होता है। लोग इतने सरल थे कि जो ऊपर थे, वही भीतर लेने की जरूरत है। क्योंकि उसको कोई जरूरत न थी; आपके लिए | थे। इसलिए बहुत भीतर जाकर देखने की कोई जरूरत न थी। मेहनत उठाई।
__ अभी भी, आज से पचास साल पहले तक, अंग्रेज मजिस्ट्रेट्स इसलिए कबीर कहते हैं, निंदक नियरे राखिए।
| ने बस्तर रियासत के अपने संस्मरणों में कहा है-पचास साल लेकिन निंदक को पास रखना मुश्किल है चौबीस घंटे। पहले के, उन्नीस सौ दस के संस्मरण में—कि बस्तर में अगर कोई स्वाध्याय का सूत्र कहता है, आप खुद ही अपने घावों को उघाड़ने आदमी किसी की हत्या कर दे, तो वह खुद अदालत में चला आता वाले बन जाइए। दूसरा कितना उघाड़ पाएगा? और दूसरा उघाड़ेगा था, उन्नीस सौ दस तक! और आकर कह देता था कि मैंने हत्या भी तो ऊपरी घाव उघाड़ेगा, भीतरी घावों का उसे भी पता नहीं है। कर दी है, मेरी क्या सजा है? मजिस्ट्रेट्स ने लिखा है कि हम नासूर गहरे हैं, कैंसर गहरा है और क्रानिक है, कई जन्मों का है। | मुश्किल में पड़ते थे कि इस आदमी को सजा दें तो कैसे दें! पुलिस एक-दो दिन की बीमारियां नहीं हैं भीतर। लेकिन स्वाध्याय का सूत्र | | भेजनी नहीं पड़ती थी। पुलिस भेजकर बहुत देर लगाती; वह खुद कहता है, जानो और बाहर हो जाओ।
ही आ जाता था। कोई आदमी चोरी कर लेता, उन्नीस सौ दस तक अब पश्चिम में मनोविज्ञान और मनोविश्लेषण का जो इतना | | भी बस्तर में, तो वह आकर अदालत में खड़ा हो जाता कि मैंने चोरी प्रभाव है, उसका कल एक कारण है। छोटा-सा स्वाध्याय का कर ली है; मेरी सजा क्या है? हिस्सा है और वह यह कि वह व्यक्ति को उसकी बीमारियों का | एक मजिस्ट्रेट ने लिखा है कि मैंने एक चोर को कहा भी कि साक्षात्कार करा देते हैं। इसके लिए व्यक्ति को पैसे चुकाने पड़ते | | तुमको जब हमने पकड़ा नहीं, हमें पता नहीं चोरी का; चोरी की कोई हैं। लंबे और महंगे! और गरीब आदमी नहीं चुका सकता है। सिर्फ | | रिपोर्ट नहीं की गई है, तो तुम किसलिए आए हो? उसने कहा, अमीर आदमी मनोविश्लेषण से गुजर सकते हैं।
जिसकी चोरी की गई है, उसका इतना नुकसान नहीं हुआ है; कुछ आज तो हालत ऐसी है अमेरिका में कि फैशनेबल स्त्रियां | | पैसे ही चोरी गए हैं। मैंने चोरी की, मेरा बहुत नुकसान हो गया। एक-दूसरे से पूछती हैं, कितनी बार साइकोएनालिसिस करवाई? | | और जब तक मुझे दंड न मिले, तब तक मैं बाहर कैसे होऊंगा उस कितनी बार मनोविश्लेषण करवाया? क्योंकि जिसने नहीं करवाया, | नुकसान से! वह आधुनिक नहीं है, आउट आफ डेट है। जो अभी मनोविश्लेषण __अब ऐसे व्यक्ति अगर रहे हों, और थे, क्योंकि आज उन्नीस सौ से नहीं गुजरा, जिसने दो-तीन साल किसी मनोचिकित्सक को | | दस में बस्तर जैसा था, कृष्ण के जमाने में पूरी पृथ्वी वैसी थी; तो हजारों डालर नहीं दिए, वह आदमी पुराने जमाने का है। | उस दिन स्वाध्याय के सूत्र का सिर्फ उल्लेख किया है कृष्ण ने,
एक अर्थ में बात भी ठीक है। क्योंकि मनोचिकित्सक के पास चलते हुए। उसका कोई बहुत मूल्य नहीं था। हां, कोई जटिल, कोई होता कुल इतना ही है कि वह आपको आपकी स्थिति से परिचित बहुत चालाक, कोई बेईमान, कोई बहुत धोखेबाज आदमी सदा थे।