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स्वाध्याय-यज्ञ की कीमिया (
हम कहेंगे, वह पागल थी। हम आईने नहीं फोड़ते, साधारण | | स्वाध्याय के यज्ञ की प्रक्रिया है। तो वे कहेंगे, बेकार है सब। बदलने आईने हम नहीं फोड़ते। लेकिन बहुत गहरे में, असली जो आईना | के लिए कुछ भी करना नहीं है; सिर्फ जानना पर्याप्त है, टु नो इज़ है स्वाध्याय का, वह हम कभी उठाकर नहीं देखते। क्योंकि वहां | इनफ। और जानने के अलावा कुछ भी करना जरूरी नहीं है। हमारा असली रूप प्रकट होगा, और जो बहुत अग्ली है, कुरूप, हम कहेंगे, यह कैसे! अगर हम अपने पैर के घाव को जान लें, बहुत भयानक है।
| तो क्या घाव मिट जाएगा? मनोवैज्ञानिक कहते हैं, ऐसा आदमी खोजना मुश्किल है, नहीं; पैर का घाव नहीं मिटेगा। जान लेंगे, तो भी नहीं मिटेगा। जिसके भीतर मन ने वे सब पाप न किए हों, जो किसी भी आदमी | | हां, जानने से जहां मिट सकता है, वहां जाने का खयाल आएगा। ने कभी भी पृथ्वी पर किए हैं। ऐसा आदमी खोजना मुश्किल है, | चिकित्सक के पास जा सकते हैं। इलाज, दवा कर सकते हैं। जिसके मन ने ऐसा कोई अपराध न किया हो, जो पृथ्वी पर कभी | लेकिन सिर्फ जानने से पैर का घाव नहीं मिटेगा। जानने के बाद कुछ भी किया गया है।
करना भी पड़ेगा, तब पैर का घाव मिटेगा। सिर में दर्द है, तो जानने हां, बाहर नहीं किया होगा। बाहर नहीं किया होगा। बाहर जो से नहीं मिट जाएगा; कुछ करना भी पड़ेगा। करते हैं, वे तो पकड़े जाते हैं। भीतर हम करते रहते हैं। वहां न कोई | | लेकिन मन के साथ एक बड़ी खूबी की बात है कि मन के घाव अदालत, न कोई कानून, न कोई व्यवस्था, कोई भी नहीं पहुंचती।। | जानने से ही मिट जाते हैं। जानने के अतिरिक्त कुछ भी नहीं करना लेकिन परमात्मा की आंख वहां भी पहुंचती है।
पड़ता है। स्वाध्याय का समस्त यज्ञ इसी रहस्य के ऊपर खड़ा है, स्वाध्याय का मूल्य यही है कि हम अपने से तो अपने को छिपा | इसी मिस्ट्री पर कि जान लो और बाहर हो जाओ। सकते हैं, लेकिन परम सत्य से हम अपने को कैसे छिपाएंगे? परम __इसे प्रयोग करें, तो ही खयाल में आ सकता है। ऐसा क्यों होता सत्ता के सामने हम अपने को कैसे छिपाएंगे? ये प्रतिमाएं हमें छोड़ | | है, कहना कठिन है। ऐसा होता है, इतना ही कहना संभव है। देनी पड़ेंगी, जब हम प्रभु के साक्षात में पहुंचेंगे। इसलिए स्वाध्याय | करीब-करीब स्थिति ऐसी है, जैसे कि दीया लेकर हम घर के भीतर से पहले ही इन्हें जानकर तोड़ देना उचित है।
चले जाएं और अंधेरा समाप्त हो जाए। दीया ले जाने के बाद फिर और बड़े आश्चर्य की बात तो यह है कि जो व्यक्ति अपनी अंधेरे को समाप्त करने के लिए और कछ नहीं करना पड़ता है। समस्त कुरूपता को जानने में समर्थ हो जाता है, वह उससे मुक्त ऐसा नहीं है कि दीया ले गए, फिर अंधेरे को देख लिया कि यह होने में समर्थ हो जाता है। स्वाध्याय का जो सबसे गहरा सीक्रेट, रहा; फिर उसको समाप्त करने के लिए तलवार उठाई; काटकर राज है, वह मैं आपसे कहता हूं। वह यह है कि स्वाध्याय के यज्ञ बाहर किया; ऐसा कुछ नहीं करना पड़ता। दीया भीतर ले गए, में जानना ही मुक्ति है; नोइंग, जानना ही मुक्ति है।
अंधेरा नहीं है। ऐसे ही, जानने को जो व्यक्ति अपने गहन मन के स्वाध्याय की जो प्रक्रिया है, उसमें स्वाध्याय के अतिरिक्त और | तलों में ले जाता है, जानने के प्रकाश को, वह पाता है कि अज्ञान कुछ भी नहीं करना पड़ता। आप सिर्फ जान लें अपने रोग को और | के कारण ही सब रोग थे। रोग के बाहर हो जाते हैं। और रोग को न जानें, तो रोग बढ़ता जाता __ और हम उलटा कर रहे हैं। जो-जो रोग होता है, उसके प्रति हम है और गहन होता चला जाता है। स्वाध्याय की प्रक्रिया सिर्फ | | अज्ञानी हो जाते हैं। यह बहुत मजे की बात है। अगर कोई आदमी साक्षात्कार से, स्वयं के साक्षात्कार से ट्रांसफार्मेशन की प्रक्रिया है। | आपसे कहे कि आपके पैर में घाव है, तो आप उस पर नाराज नहीं आत्म-साक्षात से आत्मक्रांति, स्वयं को जानने से स्वयं की होते। आप कहते हैं, धन्यवाद, आपने बताया! कोई आदमी कहे, बदलाहट।
आपको खयाल नहीं, शायद आपके पैर में कांटा गड़ गया है, खून इसलिए स्वाध्याय को जो लोग मानते हैं, वे अक्सर हंसी उड़ाते | | बह रहा है। तो आप कहते हैं, आभारी हूं, बड़ी कृपा की कि हुए मिलेंगे इस बात की कि तप की क्या जरूरत है? तपश्चर्या की | | बताया। मैं किसी दूसरी धुन में लगा था; मुझे पता नहीं चला। क्या जरूरत है? ध्यान की क्या जरूरत है? मेडिटेशन की क्या | | लेकिन कोई आदमी कहे कि आपके मन में क्रोध है, तो आप कभी जरूरत है?
| फिर आभार प्रकट नहीं करते हैं उस आदमी का। आप कहते हैं, कृष्णमूर्ति निरंतर यही कहते हुए मिलेंगे। कृष्णमूर्ति की प्रक्रिया गलत बोलते हो। क्रोध और मुझे! कभी नहीं। भ्रांति हो गई तुम्हें।
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