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________________ संन्यास की नई अवधारणा आठ हैं। 'एक' आठ ध्यान की विधियों के प्रतीक हैं। और उन्हें स्मरण रखने के लिए दिया है कि वे भलीभांति जानें कि चाहे अपने हाथ में एक ही गुरिया हो, लेकिन और एक सौ सात मार्गों से भी मनुष्य पहुंचा है, पहुंच सकता है। और एक सौ आठ कितने ही अलग हों, उनके भीतर पिरोया हुआ धागा एक ही है । उस एक का स्मरण बना रहे, एक सौ आठ विधियों में, ताकि कभी उनके मन में यह खयाल न आए और कोई एकांगीपन न पकड़ कि मेरा ही मार्ग, मैं जो हूं, वही रास्ता पहुंचाता है। नहीं; सभी रास्ते पहुंचा देते हैं। सभी रास्ते पहुंचा देते हैं। उनकी मालाओं में एक तस्वीर आप देख रहे हैं। शायद आपको भ्रम होगा कि मेरी है। मेरी बिलकुल नहीं है। क्योंकि मेरी तस्वीर उतारने का कोई उपाय नहीं है । तस्वीर किसी की उतारी नहीं जा सकती; सिर्फ शरीरों की उतारी जा सकती है। मैं उनका गवाह हूं, इसलिए उन्होंने मेरे शरीर की तस्वीर लटका ली है। मैं सिर्फ गवाह हूं, गुरु नहीं हूं। क्योंकि मैं मानता हूं कि गुरु तो सिवाय परमात्मा और कोई भी नहीं है। मैं सिर्फ विटनेस हूं, कि मेरे सामने उन्होंने कसम ली है इसे संन्यास की। मैं उनका गवाह भर हूं। और इसलिए वे मेरे शरीर की रेखाकृति लटकाए हुए हैं, ताकि उनको स्मरण रहे कि उनके संन्यास में वे अकेले नहीं हैं; एक गवाह भी है। और उनके डूबने के साथ उनका गवाह भी डूबेगा । बस, इतने स्मरण भर के लिए। ध्यान में वे गहरे उतरें। ध्यान के बहुत रास्ते हैं। अभी उनको दो रास्तों पर मैं प्रयोग करवा रहा हूं। दोनों रास्ते सिंक्रोनाइज कर सकें, इस तरह के हैं; तालमेल हो सकें, इस तरह के हैं। एक ध्यान की प्रक्रिया मैं उनसे करवा रहा हूं, जो कि प्रगाढ़तम प्रक्रिया है; बहुत विरस है और इस सदी के योग्य है । उस ध्यान की प्रक्रिया के साथ उनको कीर्तन और भजन के लिए भी कह रहा हूं; क्योंकि वह ध्यान की प्रक्रिया करने के बाद कीर्तन साधारण कीर्तन नहीं है, जो आप कहीं भी देख लेते । आप जब देखते हैं कीर्तन, आप सोचते होंगे कि ठीक है; कोई भी ऐसा कीर्तन कर रहा है; ऐसा ही यह कीर्तन भी है। इस भूल में आप मत पड़ना। क्योंकि जिस ध्यान के प्रयोग को वे कर रहे हैं, उस प्रयोग के बाद यह कीर्तन कुछ और ही भीतर रस की धार छोड़ देता है। आप भी उस प्रयोग को ध्यान के करके इसे करेंगे, तब आपको पता चलेगा कि यह कीर्तन साधारण कीर्तन नहीं है। यह कीर्तन एक ध्यान की प्रक्रिया का आनुषांगिक अंग है। और उस आनुषांगिक अंग में जब वे लीन और डूब जाते हैं, तब वे करीब-करीब अपने में नहीं होते, परमात्मा में होते हैं। और वह जो होने का अगर एक क्षण भी मिल जाए, चौबीस घंटे में, तो काफी है। उससे जो अमृत | की एक बूंद मिल जाती है, वह चौबीस घंटों को जीवन के रस से भर जाती है। जिन मित्रों को भी जरा भी खयाल हो, वे हिम्मत करें। और ध्यान रखें. 1 अभी कल ही कोई मेरे पास आया, उसने कहा कि सत्तर प्रतिशत तो मेरी इच्छा है कि लूं संन्यास; तीस प्रतिशत मन डांवाडोल होता है । इसलिए नहीं ! तो मैंने कहा, तीस प्रतिशत मन कहता है, मत लो, तो तुम नहीं लेते; तीस प्रतिशत की मानते हो। और सत्तर प्रतिशत कहता है, लो, और सत्तर प्रतिशत की नहीं मानते हो! तो | तुम्हारे पास बुद्धि है ? और कोई सोचता हो कि जब हंड्रेड परसेंट, सौ प्रतिशत मन होगा तब लेंगे, तो मौत पहले आ जाएगी। हंड्रेड परसेंट मरने के बाद होता है। इससे पहले कभी मन होता नहीं । सिर्फ मरने के बाद, जब आपकी लाश चढ़ाई जाती है चिता पर, | तब हंड्रेड परसेंट मन संन्यास का होता है। लेकिन तब कोई उपाय नहीं रहता। जिंदगी में कभी मन सौ प्रतिशत किसी बात पर नहीं होता । लेकिन जब आप क्रोध करते हैं, तब आप हंड्रेड परसेंट मन के लिए | रुकते हैं? जब आप चोरी करते हैं, तब हंड्रेड परसेंट मन के लिए रुकते हैं? जब बेईमानी करते हैं, तब हंड्रेड परसेंट मन के लिए रुकते हैं? कहते हैं कि अभी बेईमानी नहीं करूंगा, क्योंकि अभी मन का एक हिस्सा कह रहा है, मत करो; सौ प्रतिशत हो जाने दो! लेकिन जब संन्यास का सवाल उठता है, तब सौ प्रतिशत के लिए रुकते हैं! बेईमानी किसके साथ कर रहे हो ? आदमी अपने को धोखा देने में बहुत कुशल है। एक आखिरी बात, फिर सुबह लेंगे। फिर अभी कीर्तन-भजन में संन्यासी डूबेंगे, आपको भी निमंत्रण देता हूं। खड़े देखें मत। खड़े | देखकर कुछ पता नहीं चलेगा; लोग नाचते हुए दिखाई पड़ेंगे। डूबें उनके साथ, तो पता चलेगा, उनके भीतर क्या हो रहा है। उस रस का एक कण अगर आपको भी मिल जाए, तो शायद आपकी जिंदगी में फर्क हो । 155 संन्यास या शुभ का कोई भी खयाल जब भी उठ आए, तब देर मत करना। क्योंकि अशुभ में तो हम कभी देर नहीं करते। अशुभ को कोई पोस्टपोन नहीं करता। शुभ को हम पोस्टपोन करते हैं।
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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