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________________ गीता दर्शन भाग-2 करेगा, वह शोषक है, एक्सप्लायटर है; इसको हटाओ। वह अपराधी है। बिखर गई ! चीन में बड़ी गहरी परंपरा थी संन्यास की— बिखर गई, टूट गई। मोनेस्ट्रीज उखड़ गईं। तिब्बत गया। शायद पृथ्वी पर सबसे ज्यादा गहरे संन्यास के प्रयोग तिब्बत ने किए थे, लेकिन सब मिट्टी हो गया। हिंदुस्तान में भी ज्यादा देर नहीं लगेगी । लेनिन ने कहा था उन्नीस सौ बीस कि कम्यूनिज्म का रास्ता मास्को से पेकिंग, और पेकिंग से कलकत्ता होता हुआ लंदन जाएगा। कलकत्ते तक पैर सुनाई पड़ने लगे। लेनिन की भविष्यवाणी सही होने का डर है। संन्यास अब तो एक ही तरह बच सकता है कि संन्यासी स्वनिर्भर हो । समाज पर, किसी पर निर्भर होकर न जीए। तभी हो सकता है स्वनिर्भर, जब वह संसार में हो, भागे न । अन्यथा स्वनिर्भर कैसे हो सकता है ? थाईलैंड में चार करोड़ की आबादी है, बीस लाख संन्यासी हैं ! मुल्क घबड़ा गया है। लोग परेशान हो गए हैं। बीस लाख लोगों को चार करोड़ की आबादी कैसे खिलाए, कैसे पिलाए, क्या करे ! अदालतें विचार करती हैं कानून बनाने का । संसद निर्णय लेती है। कि कोई सख्त नियम बनाओ कि सिर्फ सरकार जब आज्ञा दे किसी आदमी को, तब वह संन्यासी हो सकता है। जब संन्यासी की आज्ञा सरकार से लेना पड़े, तो उसमें भी रिश्वत हो जाएगी ! उसमें भी जो रिश्वत लगा सकेगा, वह संन्यासी हो जाएगा। संन्यासी होने के लिए रिश्वत देनी पड़ेगी, कि सरकारी लाइसेंस लेना पड़ेगा, फिर संन्यास की सुगंध और संन्यास की स्वतंत्रता कहां रह जाएगी ! इसलिए मैं यह देखता हूं, भविष्य को ध्यान में रखकर भी, कि अब एक संन्यास का नया अभियान होना चाहिए, जिसमें कि संन्यासी घर में होगा, गृहस्थ होगा, पति होगा, पिता होगा, भाई होगा । शिक्षक, दूकानदार, मजदूर, वह जो है, वही होगा। सबका होगा। सब धर्म उसके अपने होंगे। सिर्फ धार्मिक होगा । धर्मों के विरोध ने दुनिया को बहुत गंदी कलह से भर दिया है। इतना दुखद हो गया है सब कि ऐसा लगने लगा है कि धर्मों से | और गीताएं; अब नहीं चाहिए - तो कुछ आश्चर्य तो नहीं है । स्वाभाविक है। यह बंद करना पड़े। यह बंद तभी हो सकता है, एक ही रास्ता है इसका, और वह रास्ता यह है कि संन्यास का फूल इतना ऊंचा उठे सीमाओं से कि सब धर्म उसके अपने हो जाएं और कोई एक धर्म उसका अपना न रहे। तो हम इस पृथ्वी को जोड़ सकते हैं। अब तक धर्मों ने तोड़ा, उसे कहीं से जोड़ना पड़ेगा। इसलिए मैं कहता हूं, हिंदू आए, मुसलमान आए, जैन आए, ईसाई आए। उसे चर्च में प्रार्थना करनी हो, चर्च में करे; मंदिर में, तो मंदिर में; स्थानक में, तो स्थानक में; मस्जिद में, तो मस्जिद में उसे जहां जो करना हो, करे। लेकिन वह अपने मन से संप्रदाय का विशेषण अलग कर दे, मुक्त हो जाए। सिर्फ संन्यासी हो जाए; सिर्फ धर्म | का हो जाए। यह दूसरी बात । और तीसरी बात, मेरे संन्यास में सिर्फ एक अनिवार्यता है, एक अनिवार्य शर्त है और वह है, ध्यान। बाकी कोई व्रत-नियम ऊपर से मैं थोपने के लिए राजी नहीं हूं। क्योंकि जो भी व्रत और नियम ऊपर से थोपे जाते हैं, वे पाखंड का निर्माण कर देते हैं। सिर्फ ध्यान की टेक्नीक संन्यासी सीखे ; प्रयोग करे; ध्यान में गहरा उतरे। और मेरी अपनी समझ और सारी मनुष्य जाति के अनुभव का सार-निचोड़ यह है कि जो ध्यान में गहरा उतर जाए, वह योगाग्नि | में ही गहरा उतर रहा है। उसकी वृत्तियां भस्म हो जाती हैं, उसके इंद्रियों के रस खो जाते हैं। वह धीरे-धीरे सहज-सहज, जबर्दस्ती नहीं, बलात नहीं - सहज रूपांतरित होता चला जाता है। उसके भीतर से ही सब बदल जाता है। उसके बाहर के सब संबंध वैसे ही | बने रहते हैं; वह भीतर से बदल जाता है। इसलिए सारी दुनिया उसके लिए बदल जाती है। शायद फायदा कम हुआ, नुकसान ज्यादा हुआ। जब देखो तब धर्म के नाम पर खून बहता है! और जिस धर्म के नाम पर खून बहता हो, अगर बच्चे उस धर्म को इनकार कर दें; और जिन पंडितों की बकवास से खून बहता हो, अगर बच्चे उन पंडितों को ही इनकार कर दें और कहें कि बंद करो तुम्हारी किताबें, तुम्हारे कुरान ध्यान के अतिरिक्त संन्यासी के लिए और कोई अनिवार्यता नहीं है। कपड़े आप देखते हैं गैरिक, संन्यासी पहने हुए हैं। यह मैंने सुबह जैसा कहा, गांठ बांधने जैसा इनका उपयोग है। चौबीस घंटे | याद रह सकेगा; स्मरण, रिमेंबरिंग रह सकेगी कि मैं संन्यासी हूं। | बस, यह स्मरण इनको रह सके, इसलिए इन्हें गैरिक वस्त्र दे दिए हैं। गैरिक वस्त्र भी जानकर दिए हैं; वे अग्नि के रंग के वस्त्र हैं। भीतर भी ध्यान की अग्नि जलानी है। उसमें सब जला डालना है। | भीतर भी ध्यान का यज्ञ जलाना है, उसमें सब आहुति दे देनी है। उनके गलों में आप मालाएं देख रहे हैं। उन मालाओं में एक सौ 154
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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