SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 179
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संन्यास की नई अवधारणा मित्र को निकट पाकर पुरुष की कामना से मुक्ति न मिली, तो फिर | अगर आप बीस आदमी पिकनिक को जाएं, तो आप पाएंगे कि छोड़कर कभी न मिल सकेगी। | पिकनिक पर आप पहुंचे, चार-पांच ग्रुप में टूट जाएंगे। बीस आदमी इस देश ने पति और पत्नी को सिर्फ काम के उपकरण नहीं | इकट्ठे नहीं रहेंगे। तीन-तीन, चार-चार की टुकड़ी हो जाएगी। सीमा समझा; सेक्स, वासना का साधन नहीं समझा है। इस मुल्क की | है। तीन-तीन चार-चार में टूट जाएंगे। अपनी-अपनी बातचीत गहरी समझ और भी, कुछ और है। और वह यह है कि पति-पत्नी | शुरू कर देंगे। दो-चार हिस्से बन जाएंगे। बीस आदमी इकट्ठे नहीं अंततः-प्रारंभ करें वासना से अंत हो जाएं निर्वासना पर। हो पाते। ऐसी आदमी की सीमा है। एक-दूसरे को सहयोगी बनें। स्त्री सहयोगी बने पुरुष को कि पुरुष सारी मनुष्यता एक है, यह साधारण आदमी की सीमा के बाहर स्त्री से मुक्त हो सके। पुरुष सहयोगी बने पत्नी को कि पत्नी पुरुष | है सोचना। सब मंदिर, सब मस्जिद उसी परमात्मा के हैं, यह की कामना से मुक्त हो सके। ये अगर सहयोगी बन जाएं, तो बहुत | सोचना मुश्किल है। साधारण की सीमा के लिए कठिन होगा। शीघ्र निर्वासना को उपलब्ध हो सकते हैं। लेकिन संन्यासी असाधारण होने की घोषणा है। लेकिन ये इसमें सहयोगी नहीं बनते। पत्नी डरती है कि कहीं | तो दूसरी बात, संन्यास धर्म में प्रवेश है-हिंदू धर्म में नहीं, पुरुष निर्वासना को उपलब्ध न हो जाए। इसलिए डरी रहती है। मुसलमान धर्म में नहीं, ईसाई धर्म में नहीं, जैन धर्म में नहीं-धर्म अगर मंदिर जाता है, तो ज्यादा चौंकती है; सिनेमा जाता है, तो में। इसका क्या मतलब हुआ? हिंदू धर्म के खिलाफ? नहीं। विश्राम करती है। चोर हो जाए, समझ में आता है; प्रार्थना, | | इस्लाम धर्म के खिलाफ? नहीं। जैन धर्म के खिलाफ? नहीं। वह भजन-कीर्तन करने लगे, समझ में बिलकुल नहीं आता है। खतरा | | जो जैन धर्म में धर्म है, उसके पक्ष में; और वह जो जैन है, उसके है। पति भी डरता है कि पत्नी कहीं निर्वासना में न चली जाए। | | खिलाफ। और वह जो हिंदू धर्म में धर्म है, उसके पक्ष में; और वह • अजीब हैं हम! हम एक-दूसरे का शोषण कर रहे हैं, इसलिए | जो हिंदू है, उसके खिलाफ। और वह जो इस्लाम धर्म में धर्म है, इतने भयभीत हैं। हम एक-दूसरे के मित्र नहीं हैं। क्योंकि मित्र तो | | उसके पक्ष में; और वह जो इस्लाम है, उसके खिलाफ। सीमाओं वही है, जो वासना के बाहर ले जाए। क्योंकि वासना दुख है और के खिलाफ, और असीम के पक्ष में। आकार के खिलाफ, और वासना दुष्पूर है! वासना कभी भरेगी नहीं। वासना में हम ही मिट निराकार के पक्ष में। जाएंगे, वासना नहीं मिटेगी। तो मित्र तो वही है, पति तो वही है, संन्यासी किसी धर्म का नहीं, सिर्फ धर्म का है। वह मस्जिद में पत्नी तो वही है, मित्र तो वही है, जो वासना से मुक्त करने में साथी ठहरे, मंदिर में ठहरे, कुरान पढ़े, गीता पढ़े। महावीर, बुद्ध, बने। और शीघ्रता से यह हो सकता है। लाओत्से, नानक, जिससे उसका प्रेम हो, प्रेम करे। लेकिन जाने कि __ इसलिए मैं कहता हूं, पत्नी को मत छोड़ो, पति को मत छोड़ो; | जिससे वह प्रेम कर रहा है, यह दूसरों के खिलाफ घृणा का कारण किसी को मत छोड़ो। इस प्रशिक्षण का उपयोग करो। हां, इसका नहीं, बल्कि यह प्रेम भी उसकी सीढ़ी बनेगी, उस अनंत में छलांग उपयोग करो परमात्मा तक पहुंचने के लिए। संसार को बनाओ लगाने के लिए, जिसमें सब एक हो जाता है। नानक को बनाए सीढ़ी। संसार को दुश्मन मत बनाओ; बनाओ सीढ़ी। चढ़ो उस सीढ़ी, बनाए। बुद्ध-मोहम्मद को बनाना चाहे, बुद्ध-मोहम्मद को पर; उठो उससे। उससे ही उठकर परमात्मा को छुओ। और संसार | बनाए। कूद जाए वहीं से। पर कूदना है अनंत में। सीढ़ी बनने के लिए है, इसलिए पहली बात। और इस अनंत का स्मरण रहे, तो इस पृथ्वी पर दो घटनाएं घट दूसरी बात, संन्यास अब तक सांप्रदायिक रहा है, जो कि दुखद | सकती हैं। संन्यासी जहां है वहीं रहे, तो करोड़ों संन्यासी सारी पृथ्वी है, जो कि संन्यास को गंदा कर जाता है। संन्यास धर्म है, संप्रदाय पर हो सकते हैं। संन्यासी छोड़कर भागे, तो ध्यान रखना, भविष्य नहीं। गृहस्थ संप्रदायों में बंटा हो, समझ में आता है। उसके कारण | | में, बीस साल, पच्चीस साल के बाद, इस सदी के पूरे होते-होते, हैं। जिसकी दृष्टि बहुत सीमित है, वह विराट को नहीं पकड़ पाता। संन्यास अपराध होगा, क्रिमिनल एक्ट हो जाएगा। वह हर चीजों में सीमा बनाता है, तभी पकड़ पाता है। हर चीज को | | रूस में हो गया, चीन में हो गया, आधी दुनिया में हो गया। खंड में बांट लेता है, तभी पकड़ पाता है। आदमी-आदमी की | | आज रूस और चीन में कोई संन्यासी होकर नहीं रह सकता। सीमाएं हैं। क्योंकि वे कहते हैं, जो करेगा मेहनत, वह खाएगा। जो मेहनत नहीं 153
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy